Bihar Politics: पीके ही नहीं, अब केके भी बढ़ा रहे तेजस्वी की चिंता; बिहार में शुरू हुआ सियासी 'खेल'
विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बिहार की राजनीति में तेजस्वी यादव की चिंता बढ़ती जा रही है। पहले प्रशांत किशोर ने उन्हें चुनौती दी थी अब कृष्णा अलावरू और कन्हैया कुमार भी उनके लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं। कांग्रेस कन्हैया को बेगूसराय से लोकसभा चुनाव में उतारना चाहती थी लेकिन लालू प्रसाद की अनिच्छा के कारण उन्हें दिल्ली जाना पड़ा।
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। तेजस्वी यादव की चिंता अभी तक जन सुराज पार्टी के सूत्रधार पीके (प्रशांत किशोर) बढ़ाए हुए थे, लेकिन अब केके (कृष्णा अल्लावरु और कन्हैया कुमार) भी छकाने लगे हैं। पीके की जुगत तो सीधे राजद के वोट बैंक में सेंध लगाने की है, जबकि केके संभावना वाली उन सीटों को झटकना चाह रहे, जिनसे कांग्रेस को राजद अभी तक वंचित रखे हुए है।
ऐसी लगभग चार दर्जन सीटें हैं, जिन पर राजद की संभावना कांग्रेस से गठजोड़ के बाद और मजबूत हो जाती है। इस मजबूती में कांग्रेस अपने जनाधार की छवि देख रही, जो उसे उन सीटों पर दावे के लिए बाध्य किए हुए है। बिहार कांग्रेस के प्रभारी का दायित्व मिलने के बाद से ही कृष्णा की बढ़ी सक्रियता राजद को बेचैन किए हुए है।
आरा में स्वामी सहजानंद सरस्वती के जयंती समारोह में वे स्पष्ट कह चुके हैं कि कांग्रेस विधानसभा का चुनाव ए-टीम की तरह लड़ेगी, वह राजद की बी-टीम नहीं। उनके इस बयान से पहले ही पटना में कन्हैया की प्रशंसा मेंं पोस्टर लग चुके थे। चर्चा है कि विधानसभा चुनाव में कन्हैया कांग्रेस के प्रमुख चेहरों में होंगे।
लालू के कारण कन्हैया को दिल्ली जाना पड़ा!
लोकसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस बेगूसराय के मैदान में उतारना चाहती थी, लेकिन लालू प्रसाद की अनिच्छा के कारण दिल्ली जाना पड़ा। लालू नहीं चाहते कि तेजस्वी के सामने महागठबंधन में कोई दूसरा युवा चेहरा आगे हो। संयोग से कन्हैया के साथ कृष्णा भी युवा ही हैं। तेजस्वी की चिंता स्वाभाविक है, क्योंकि विधानसभा की 70 सीटों की मांग कर चुकी कांग्रेस ''नौकरी दो यात्रा'' निकालने जा रही है। इसके सूत्रधार कृष्णा हैं तो नायक कन्हैया।
''नौकरी दो यात्रा'' 16 मार्च से 14 अप्रैल के बीच 20 जिलों से होकर गुजरेगी। कभी उन क्षेत्रों में कांग्रेस का मजबूत जनाधार था। समय के साथ उस जनाधार के अधिसंख्य सवर्ण भाजपा के साथ हो लिए और मुसलमान आदि राजद के। अनुसूचित जाति के साथ कांग्रेस उस वोट को दोबारा पाना चाहती है। महागठबंधन में सीट बंटवारे में भी उन क्षेत्रों में उसे अब तक हुई अपेक्षा की टीस है। ऐसे में इस यात्रा को राजद अधिक सीटों पर दावेदारी के लिए माहौल बनाने का उपक्रम मान रहा।
दरअसल, इस यात्रा के जरिये कांग्रेस का प्रयास शिक्षा, रोजगार और पलायन आदि मुद्दों पर जनमत बनाने का होगा। इन मुद्दों पर तेजस्वी भी मुखर हैं। समग्रता मेंं यह महागठबंधन की आवाज लग रही, लेकिन अंदरखाने की राजनीति वर्चस्व की है।
नाम नहीं छापने की शर्त पर राजद के एक पदाधिकारी का कहना है कि कांग्रेस का यह उपक्रम सीट और समीकरण के साथ मुद्दों पर भी राजद से बढ़त लेने का है। फिर भी उन्हें इत्मीनान है कि समय रहते गठबंधन के पचड़े सुलझा लिए जाएंगे, अन्यथा विधानसभा चुनाव का हश्र उप चुनाव से भी बदतर होगा।
उल्लेखनीय है कि विधानसभा की चार सीटों पर हुए उप चुनाव मेंं महागठबंधन उन तीन सीटों को भी गंवा बैठा था, जिन पर 2020 में उसे सफलता मिली थी। जसुपा के खाते में गए लगभग 10 प्रतिशत वोट ने महागठबंधन की मिट्टी पलीद कर दी थी।
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