Caste Census: जातीय गणना पर केंद्र के फैसले के पीछे क्या है CM नीतीश का रोल? चुनाव से पहले सामने आई अंदर की बात!
केंद्र सरकार ने बिहार की कई योजनाओं को अपनाया है जिसमें जातीय जनगणना भी शामिल है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पुरानी मांग को केंद्र ने स्वीकार कर लिया है। राज्य में जाति आधारित गणना के बाद 94 लाख गरीब परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दो लाख रुपये देने का निर्णय लिया गया। दूसरी तरह विपक्ष भी इस फैसले को लेकर अपना श्रेय दे रहा है।

राज्य ब्यूरो, पटना। केंद्र सरकार ने बिहार की कई योजनाओं और उपलब्धियों को अंगीकार किया है। उसके जातीय जनगणना कराने के निर्णय की जड़ को देखें तो इसमें भी बिहार है।
केंद्र ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस पुरानी मांग को न सिर्फ स्वीकार किया, बल्कि आगे बढ़ कर इसे जमीन पर भी उतारने का निर्णय किया।
क्या कह रहे लालू?
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद कह रहे हैं कि उनके कहने पर 1996-97 में संयुक्त मोर्चा की केंद्र सरकार ने जाति आधारित गणना कराने का निर्णय लिया था। बाद के वर्षों में एनडीए की सरकार ने इसे लागू नहीं किया।
यह इतिहास का अध्याय हो सकता है। लेकिन, जाति आधारित गणना के लिए चले हाल के अभियान का श्रेय नीतीश कुमार को ही जाता है। नीतीश ने राज्य में इसके लिए वातावरण बनाया। सर्वदलीय बैठक बुलाई।
सभी दलों को तर्कों के आधार पर सहमत कराया। सबकी सहमति मिलने के बाद मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य के सभी दलों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला।
प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद प्रतिनिधिमंडल में शामिल नेताओं ने मीडिया को बताया कि केंद्र सरकार जाति आधारित गणना के लिए सिद्धांत रूप से तो सहमत है। लेकिन, अभी वह इसके लिए राजी नहीं है। हां, राज्य सरकार चाहे तो अपने साधनों के बल पर जाति आधारित गणना करा सकती है।
मुख्यमंत्री ने वही किया। बिहार में जाति आधारित गणना हो गई। उसके आंकड़े के आधार पर सरकारी सेवाओं में आरक्षण का दायरा 65 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया।
सर्वोच्च न्यायालय की रोक के कारण बढ़े हुए आरक्षण का लाभ राज्य के लोगों को नहीं मिल रहा है। लेकिन, गणना के अन्य आंकड़े पर राज्य सरकार काम कर रही है।
गणना से इस बात की हुई जानकारी
गणना से पता चला कि राज्य में अत्यंत गरीब परिवारों की संख्या 94 लाख है। राज्य सरकार ने इन परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दो लाख रुपये देने का निर्णय लिया। इसका कार्यान्वयन हो रहा है।
इस प्रकरण में एक दिलचस्प घटना भी गौर करने लायक है। नीतीश कुमार जब विरोधी दलों के गठबंधन में शामिल हुए थे।
तय हुआ कि 2024 के चुनाव में अगर विरोधी दलों के गठबंधन आइएनडीआइए को सरकार बनाने का अवसर मिलता है तो न्यूनतम साझा कार्यक्रम में देश व्यापी जाति आधारित गणना को सूची में पहले स्थान पर रखा जाए।
संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बुधवार को बताया कि बैठक में नीतीश कुमार के इस प्रस्ताव का कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुला विरोध किया था। संयोग देखिए कि राहुल गांधी ही आज सबसे आगे बढ़ कर इसका श्रेय ले रहे हैं।
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