बिहार में जाति आधारित गणना पर फैसला आज: सरकार का पक्ष- यह सिर्फ एक सर्वे, कास्ट बताने को बाध्य नहीं किया
इससे पहले बुधवार को सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया कि दोनों सदन में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर जाति आधारित गणना कराने का निर्णय लिया गया था। यह राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है। इसके लिए बजटीय प्रावधान किया गया है।

राज्य ब्यूरो, पटना: पटना हाई कोर्ट ने जाति आधारित गणना को चुनौती देने वाली लोकहित याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई पूरी कर ली थी। मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन एवं न्यायाधीश मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ आज यानी गुरुवार को फैसला सुनाएगी।
इससे पहले बुधवार को सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया कि दोनों सदन में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर जाति आधारित गणना कराने का निर्णय लिया गया था। यह राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है। इसके लिए बजटीय प्रावधान किया गया है। इसके लिए आकस्मिक निधि से पैसे की निकासी नहीं की गई है।
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 37 का हवाला देकर कहा, ''राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के बारे में डेटा इकट्ठा करे ताकि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ विभिन्न वर्गों तक पहुंचाया जा सके। राज्य सरकार ने साफ नीयत से लोगों को उनकी हिस्सेदारी के हिसाब से लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से यह शुरू की। जातीय गणना का पहला चरण समाप्त हो चुका है और दूसरे चरण का 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। केवल चुनिंदा लोगों के अलावा किसी ने भी अपनी शिकायत दर्ज नहीं कराई है। इसलिए इस पर अब रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं है।''
यह सिर्फ एक सर्वे, जाति बताने को बाध्य नहीं
पीके शाही ने कहा कि बिहार सरकार स्थानीय निकाय चुनाव में केवल 20 प्रतिशत आरक्षण अति पिछड़ा वर्ग को देती है। 16 प्रतिशत एससी एवं एक प्रतिशत एसटी के लिए आरक्षण। सुप्रीम के फैसले के मुताबिक में 13 प्रतिशत आरक्षण अभी भी दिया जाना है। सरकार ऐसी कोई जानकारी नहीं मांग रही है, जिससे निजता के अधिकार का हनन होगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को नीतिगत निर्णय के तहत गणना कराने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि यह एक सर्वे है और किसी को भी जाति बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा रहा है।
याचिकाकर्ता ने क्या कहा?
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव ने कहा था कि राज्य सरकार को जाति आधारित गणना कराने का अधिकार नहीं है। राज्य सरकार अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर लोगों का डाटा इकट्ठा कर रही है, जो नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने बताया कि बगैर किसी बजटीय प्रावधान किए राज्य सरकार द्वारा गणना कराई जा रही है जोकि असंवैधानिक है।
उन्होंने दलील देते हुए कहा कि अगर राज्य सरकार को ऐसा करने अधिकार है तो कानून क्यों नहीं बनाया गया? उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का भी हवाला दिया और कहा कि जातीय आधारित गणना पर तुरंत रोक लगाई जाए। अधिवक्ता दिनु कुमार ने कहा कि जातीय गणना पर पांच सौ करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं, जो आम नागरिकों का पैसा है। राज्य सरकार यह राशि आकस्मिक निधि से कर रही है, जिसका कोई औचित्य नहीं है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।