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    इस्‍तीफा दें नीतीश के मंत्री डॉ. अशोक चौधरी; RJD ने कर दी बड़ी मांग, बताया क्‍यों है इसकी जरूरत

    By Vikash Chandra PandeyEdited By: Vyas Chandra
    Updated: Wed, 31 Dec 2025 03:47 PM (IST)

    बिहार सरकार के मंत्री डॉ. अशोक चौधरी की डिग्री को लेकर विवाद गहरा गया है। राजद प्रवक्ता नवल किशोर यादव ने उनकी पीएचडी और असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्ति म ...और पढ़ें

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    सीएम नीतीश कुमार के साथ मंत्री डॉ. अशोक चौधरी। जागरण आर्काइव

    राज्‍य ब्‍यूरो, पटना। बिहार सरकार के मंत्री डॉ. अशोक चौधरी की डिग्री से जुड़ा विवाद थमता नहीं दिख रहा है। राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता नवल किशोर यादव ने अब मंत्री से इस्‍तीफे की मांग कर दी है। 

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    राज्‍यपाल को पत्र लिखकर राजद नेता ने कहा है कि बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग 2020 में 52 विषयों में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए विज्ञापन जारी किया गया, जिसमें राजनीति विज्ञान विषय भी शामिल है।

    राजनीति विज्ञान विषय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए आयोग ने 17 से 22 जून, 2025 तक साक्षात्कार लिया और 24 जून, 2025 को परिणाम जारी किया गया।

    परिणाम सूची में कुल 274 अभ्यर्थी शामिल थे, जिसमें अनुसूचित जाति (SC) वर्ग में 10वें स्थान पर अशोक चौधरी का नाम था और उन्हें पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय आवंटित किया गया।

    डोजियर भेजने में लग गए छह महीने 

    परिणाम जून, 2025 में जारी हुआ लेकिन विश्वविद्यालय में नियुक्ति के लिए डोजियर भेजने में उच्च शिक्षा विभाग को लगभग छह माह लग गए। 

    निदेशक ने 15 दिसंबर 2025 को जारी किया जबक‍ि शिक्षा, संगीत, संस्कृत एवं अर्थशास्त्र विषय का परिणाम बाद में जारी हुआ और पहले नियुक्ति हो चुकी है।

    राजनीति विज्ञान विषय की नियुक्ति सभी विश्वविद्यालय में अभी भी नहीं हो पाई है, जारी है। 52 विषयों में अधिकांश विषयों के असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति हो चुकी है, जिसमें  BSUSC ने जो परिणाम सूची शिक्षा विभाग को भेजी।

    वही सूची शिक्षा विभाग द्वारा विश्वविद्यालय को भेजी गई, लेकिन इकलौता विषय राजनीति विज्ञान में एकलौते अभ्यर्थी अशोक चौधरी हैं, जिनका नाम पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में नहीं भेजा गया।

    शिक्षा व‍िभाग ने केवल 18 की सूची भेजी

    आयोग द्वारा 19 अभ्यर्थी को पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय आवंटित किया गया था, लेकिन शिक्षा विभाग ने सिर्फ 18 अभ्यर्थी के नामों की सूची ही विश्वविद्यालय को भेजी गई।

    इस संबंध में दिनांक 29 दिसंबर को शिक्षा मंत्री सुनील कुमार से प्रेस-वार्ता के समय पत्रकारों द्वारा सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि उनके दस्तावेज में तकनीकी विसंगतियाँ हैं।

    राजद प्रवक्‍ता ने मांग की है कि तत्काल माननीय मंत्री अशोक चौधरी इस्तीफा दें ताकि निष्पक्ष जांच हो, यदि वे मंत्री के पद पर बने रहेंगे तो निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती है।

    उन्‍होंने कहा है, मीडिया में ख़बर है कि उनकी पीएचडी अशोक कुमार के नाम से है जबकि उनके अन्य सारे कागजात अशोक चौधरी के नाम से है।

    किसी भी डॉक्टरेट व्यक्ति से ऐसी चूक नहीं हो सकती है, यह बहुत संदिग्ध मामला है। हो सकता है किसी अन्य अशोक कुमार के शोध-प्रबंध का दुरूपयोग किया गया हो, इसलिए निष्पक्ष जांच जरूरी है। 

    आयोग साक्षात्कार से पहले अभ्यर्थी के सभी कागजातों का सत्यापन करता है तो क्या अशोक चौधरी के कागजातों का सत्यापन नहीं हुआ?

    सत्‍यापन हुआ तो साक्षात्‍कार में कैसे बैठे

    यदि सत्यापन हुआ तो उन्हें साक्षात्कार में बैठने कैसे दिया गया? यदि आयोग की नजर में सब सही था तो फिर शिक्षा विभाग क्यों रोका? साक्षात्कार में वे शामिल हुए या नहीं, यह भी संदेहास्पद है और जांच होनी चाहिए। 

    मंत्री अपने शपथ पत्र में दावा करते हैं कि वे मगध विश्वविद्यालय, गया से 2003 में पीएचडी किए हैं। मीडिया में कई खबरें प्रकाशित हुई हैं जिनमें उनके डिग्री पर सवाल उठाए गए है। मंत्री रहते अशोक चौधरी के पीएचडी एवं अन्य कागजातों की निष्पक्ष जांच संभव नहीं है।

    यूजीसी एक्ट 2009 के पहले जिनका पीएचडी पूरा हुआ है उनको असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली में फाइव प्‍वाइंट सर्टिफिकेट जमा करना था।

    यह सर्टिफिकेट अशोक चौधरी को विश्वविद्यालय द्वारा दिया गया था या नहीं। यदि दिया गया था तो किस आधार पर दिया गया था और उस एवज में उन्होंने कौन-सा शोध लेख तथा संगोष्ठी प्रमाण पत्र जमा किया है, उसकी भी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।