बिहार-झारखंड परमिट व्यवस्था में देरी से वाहन मालिक परेशान, बस मालिकों को हो रहा भारी नुकसान
बिहार और झारखंड के बीच बस परमिट की स्वीकृति में देरी से वाहन मालिक परेशान हैं। बिहार मोटर ट्रांसपोर्ट फेडरेशन ने परिवहन आयुक्त को पत्र लिखकर समस्या का समाधान करने की मांग की है। परमिट प्रक्रिया में छह महीने से एक साल तक का समय लगने से निजी बस मालिकों को भारी नुकसान हो रहा है। महासंघ ने बिहार-झारखंड के बीच परमिट व्यवस्था को सरल बनाने की मांग की है।

जागरण संवाददाता, पटना। बिहार और झारखंड के बीच अंतरराज्यीय बस परिचालन के लिए परमिट की स्वीकृति और नवीकरण की प्रक्रिया में हो रही देरी ने वाहन मालिकों की चिंता बढ़ा दी है। बिहार मोटर ट्रांसपोर्ट फेडरेशन ने राज्य परिवहन आयुक्त को पत्र भेजकर समस्याओं के समाधान की मांग की है।
परिवहन विभाग को सौंपे ज्ञापन में बताया गया है कि परमिट की प्रक्रिया में छह माह से एक साल तक का समय लग रहा है, जिससे निजी बस मालिकों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। ज्ञापन में कहा गया है कि परमिट की स्वीकृति के बाद भी संबंधित वाहन मालिकों तक मूल दस्तावेज नहीं पहुंच रहे हैं।
इसके अलावा मुख्यालय से पत्र जारी होने के बावजूद वाहन मालिकों को इसकी जानकारी भी नहीं मिल रही है। फेडरेशन के अध्यक्ष उदय शंकर प्रसाद सिंह ने बताया कि चालकों की समस्याओं को लेकर 10 अगस्त को पटना में एक बड़ी बैठक आयोजित की गई है।
बैठक में राज्यव्यापी चक्का जाम और अनिश्चितकालीन हड़ताल पर विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि एक और बड़ी समस्या यह सामने आई है कि बिहार द्वारा हस्ताक्षरित परमिट को झारखंड में मान्यता नहीं मिल रही है, जिससे बसों को वहां सीमा पर खड़ा रखना पड़ रहा है और यात्री परेशान हैं।
वाहन मालिकों का कहना है कि पहले की परमिट व्यवस्था में 0-5 साल पुराने वाहनों के लिए 600 किलोमीटर और 5-10 साल पुराने वाहनों के लिए 400 किलोमीटर तक की सीमा थी। अब नई बसों की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है, लेकिन पुरानी व्यवस्था में अभी भी कोई बदलाव नहीं किया गया है।
महासंघ ने राज्य सरकार से माँग की है कि बिहार-झारखंड के बीच परमिट व्यवस्था को सरल और पारदर्शी बनाया जाए। साथ ही, दोनों राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच समन्वय स्थापित कर इस समस्या का शीघ्र समाधान किया जाए।
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