Bihar News: 'बलिदान देने को तैयार रहें', बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ने क्यों कही ये बात
बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खां ने कहा कि अमेरिका भारत पर आधिपत्य जमाना चाहता है। युवाओं को देश के लिए बलिदान देने को तैयार रहना चाहिए। गंगा देवी महिला महाविद्यालय में जनजातीय लोगों का उपनिवेशीकरण उलगुलान में बिरसा मुंडा विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ। वक्ताओं ने जनजातीय संस्कृति को संरक्षित करने और उनके इतिहास को समझने की आवश्यकता पर बल दिया।

जागरण संवाददाता, पटना। बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खां ने सोमवार को देश पर लगाए गए भारी टैरिफ पर नागरिकों को आगाह करते हुए कहा कि अमेरिका भारत पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है। हम सशक्त देश बनकर उभरें, ये लोगों को स्वीकार नहीं है। भारत को दबाव में लाने के लगातार प्रयास हो रहे हैं। उन्होंने युवाओं को सचेत करते हुए कहा कि ऐसे में अगर जरूरत पड़े, तो देश के लिए त्याग और बलिदान देने को तैयार रहें।
इसके पहले गंगा देवी महिला महाविद्यालय में 'जनजातीय लोगों का उपनिवेशीकरण: उलगुलान में बिरसा मुंडा' विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी का राज्यपाल, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. उपेंद्र प्रसाद सिंह, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव प्रो. धनंजय सिंह, टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज मुंबई के कुलपति प्रो. बद्रीनारायण, राष्ट्रीय जनजातीय आयोग की सदस्य आशा लकड़ा, गंगा देवी महिला महाविद्यालय की प्राचार्य विजय लक्ष्मी और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रो. संजय पासवान ने उद्घाटन किया।
राज्यपाल ने कहा कि खाल का रंग, भाषा और संस्कृति का भेद करने वाली मानसिकता अभी भी है। अब उसके आकार और रूप बदल गए हैं।
स्वतंत्रता के लिए शाश्वत रूप से जागरूक होना जरूरी
राज्यपाल ने कहा कि स्वतंत्रता या कोई भी अधिकार वन टाइम एक्ट नहीं है। जब तक हम शाश्वत रूप से जागरूक नहीं रहेंगे, स्वतंत्रता को बचाकर नहीं रख सकेंगे। राज्यपाल ने कहा कि हमें अपने आप को याद दिलाने की जरूरत है कि किसी भी कठिनाई से निकलने के लिए सबसे ज्यादा नैतिक और आत्मबल की आवश्यकता होती है। खुद के लिए ही नहीं, औरों के लिए हमें जीना है।
हमें अपने विशेष गुण का प्रयोग समाज और देश के लिए करना चाहिए। इसमें प्राथमिकता सबसे कमजोर और सीढ़ी के आखिरी पायदान पर रहने वाले को देना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज जब हम संकल्प ले रहे हैं कि 2047 तक अपने स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को साकार करना चाहते हैं, तो पुरानी जमींदारी प्रथा सामने आने लगी है।
बिरसा मुंडा ने आजादी की लड़ाई को नई दिशा दी
राज्यपाल ने कहा कि बिरसा मुंडा ने पूरे देश में आजादी की लड़ाई को नई दिशा दी। उन्होंने आदिवासियों को ब्रिटिश शासन और जमींदारी प्रथा के शोषण से लड़ने के लिए प्रेरित किया। वह जनजातीय समाज के लिए आशा की किरण थे। उनका अत्याचार, शोषण और अन्याय के खिलाफ किया गया कार्य आज भी प्रेरणादायक है। उनकी कल्पना थी कि आने वाली पीढ़ी प्रतिष्ठा-सम्मान के साथ आजाद होकर चल सके।
जनजातियों की संस्कृति की जाए संरक्षित
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. उपेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि महाविद्यालयों में ऐसे आयोजन होने चाहिए। हमारी तरफ से जो भी सहयोग होगा हम करेंगे। टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज मुंबई के कुलपति प्रो. बद्रीनारायण ने कहा कि विकसित भारत का सपना तभी पूर्ण होगा, जब हम अपने दायरे को बढ़ाएं। उन्होंने युवाओं से अपील की कि आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले बिरसा मुंडा एवं अन्य महापुरुषों के जीवन पर अध्ययन करें।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की सहायक प्राध्यापक डा. फिरमी बोडो ने जनजातियों के उपनिवेश मुक्तिकरण के बारे में चर्चा की। साथ ही असम, अरुणाचल प्रदेश तथा देश भर के जनजातियों के इतिहास को समझने और जानने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि किस तरह से जनजातियों का समाजशास्त्रीय अध्ययन होना चाहिए एवं उनकी संस्कृति को संरक्षित किया जाना चाहिए।
जनजातियां खुद लिखें अपनी कहानियां
दिल्ली विश्विद्यालय के इतिहास विभाग के प्रो. निर्मल कुमार ने सिनेमा की दृष्टि से जनजातीय विमर्श पर बात की। उन्होंने मधुमती, नागिन एवं ये गुलिस्तां हमारा जैसी फिल्मों के माध्यम से आदिवासी जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जब किसी जाति का प्रतिनिधित्व नहीं होता है, तो कहीं न कहीं भारतीय सिनेमा भी उसे दिखाने में कम रुचि रखता है।
अतः उन्हें अपनी कहानी स्वयं लिखनी चाहिए। ललित नारायण मिथिला विश्विद्यालय के सेवानिवृत्त प्रो. ने कहा उद्योगों की वजह से उनकी जमीन उनकी संस्कृति छीनी जा रही है, जिसे बचाने का भरपूर प्रयास करना चाहिए। सत्र का संचालन डा. दीक्षा सिंह समाजशास्त्र विभाग के द्वारा किया गया।
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