Bihar News: अब केंद्र की राशि का इंतजार नहीं, अपने फंड से योजनाओं को पूरा कराएगी सरकार; बना लिया पूरा प्लान
बिहार सरकार ने अब अपनी योजनाओं को पूरा कराने के लिए केंद्र के भरोसे बैठना छोड़ दिया है। राज्य सरकार ने तय किया है क वो अब केंद्र की राशि का इंतजार नहीं करेगी बल्कि अपने ही फंड से योजनाओं को पूरा कराएगी। इसके लिए बिहार सरकार ने प्लान तैयार कर लिया है। जल्द ही इसे धरातल पर लागू कर दिया जाएगा।

दीनानाथ साहनी, पटना। Bihar Government News बिहार सरकार अब केंद्र से राशि मिलने के इंतजार में बैठी नहीं रहेगी, बल्कि राज्य व केंद्र संपोषित शैक्षणिक योजनाओं को समय से पूरा कराने को प्राथमिकता देगी। इसके लिए राज्य योजना निधि से पैसे का प्रबंध सुनिश्चित होगा। इसके मद्देनजर राज्य सरकार ने शिक्षा पर खर्च की जटिलता को कम करने के लिए प्रक्रिया बदल दी है। इससे दो लाभ होंगे। पहला, खर्च के लिए केंद्रांश की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। दूसरा, खर्च की जटिल प्रक्रिया के चलते अब राशि सरेंडर करने की नौबत नहीं आएगी।
बीते तीन वर्षों में 3,605 करोड़ रुपये सरेंडर
शिक्षा विभाग को इस प्रक्रियागत जटिलता के चलते ही बीते तीन वर्षों में 3,605 करोड़ रुपये सरेंडर करने पड़े हैं। शिक्षा विभाग के योजना अधिकारी ने बताया कि राज्य में शिक्षा बजट की 15 प्रतिशत राशि ही केंद्र से मिलती है। शेष 85 प्रतिशत राशि राज्य सरकार वहन करती है। जब बजट का 85 प्रतिशत भाग बिहार सरकार को ही खर्च करना है तो केंद्रांश मिलने के इंतजार में योजनाओं को देर से क्यों शुरू किया जाए।
उन्होंने कहा कि इसपर गहन मंथन के बाद शिक्षा विभाग ने तय किया है कि अप्रैल-मई से ही योजनाओं के क्रियान्वयन कराने से ससमय इसे पूरा किया जा सकेगा। विभाग में केंद्रीयकृत तरीके से योजनाओं की स्वीकृति की प्रक्रिया उसकी जटिलता के कारण बदली गई है। प्रक्रिया की जटिलता के कारण अधिसंख्य योजनाएं समय से प्रारंभ नहीं हो पा रही थीं।
प्रक्रिया बदलने से हेडमास्टर से लेकर डीएम तक के बढ़े अधिकार
शिक्षा विभाग के संयुक्त सचिव स्तर के एक अधिकारी ने बताया कि खर्च की पुरानी प्रक्रिया से शिक्षा विभाग की बड़ी राशि व्ययगत हो जा रही थी। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विद्यालयों में फर्नीचर खरीदने की केंद्रीयकृत प्रक्रिया के कारण पिछले तीन वर्षों में 160 करोड़ रुपये की राशि सरेंडर हो गई, जबकि कई विद्यालयों में फर्नीचर का अभाव है और बच्चे फर्श पर बैठ रहे हैं।
सरकारी स्कूलों में चल रही मॉनिटरिंग
राज्य में गत जुलाई से सरकारी स्कूलों की स्थायी रूप से गहन मॉनिटरिंग चल रही है। इससे शिक्षकों एवं छात्रों की उपस्थिति में आशातीत सुधार हुआ है और कई मध्य और माध्यमिक विद्यालयों में द्वितीय पाली चलाने की आवश्यकता आन पड़ी है। इसके मद्देनजर युद्धस्तर पर प्रीफेब स्ट्रक्चर का निर्माण, अधूरे पड़े कमरों का निर्माण तथा अतिरिक्त कमरों की व्यवस्था और फर्नीचर की उपलब्धता आवश्यक है।
इन आधारभूत संरचना के सुदृढ़ीकरण के लिए अब तक परंपरागत तरीके से शिक्षा विभाग राशि या तो बीईपी (बिहार शिक्षा परियोजना परिषद) अथवा बीएसईआइडीसी (बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम) को देता था। ये दोनों संस्थाएं केंद्रीयकृत तरीके से प्रशासनिक स्वीकृति प्राप्त करते हुए टेंडर निकालती थी और काम करती थीं।
केंद्रीयकृत तरीके से प्रशासनिक स्वीकृति विभाग द्वारा दी जाती है। इसकी प्रक्रिया जटिलताओं से भरी है। इसी प्रकार केंद्रीयकृत टेंडर प्रणाली भी जटिलताओं से भरी है। इससे पिछले तीन वर्षों से विद्यालयों में कक्ष निर्माण, फर्नीचर, लैब इत्यादि मदों में योजना एवं गैर योजना शीर्ष विभाग से 3,445 करोड़ रुपये की राशि सरेंडर की गई, क्योंकि ससमय पूरी प्रशासनिक एवं निविदा प्रक्रियाओं का पालन करते हुए निर्णय लिया जाना संभव नहीं हो सका।
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