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    Bihar Politics: एनडीए और महागठबंधन को अपने गढ़ों को सुरक्षित रखने की चुनौती, PK कर सकते हैं 'खेला'

    Updated: Wed, 24 Sep 2025 07:00 AM (IST)

    आगामी बिहार चुनावों में एनडीए और महागठबंधन दोनों को अपने गढ़ों को सुरक्षित रखने की चुनौती है। पिछली बार का करीबी मुकाबला और जसुपा की उपस्थिति मुकाबला कड़ा कर सकती है। एनडीए को आठ जिलों में पिछली हार को सुधारना है जबकि महागठबंधन को सीमांचल में वोटों के विभाजन से बचना है। दोनों गठबंधनों की निगाहें एक-दूसरे के गढ़ों पर हैं।

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    दूसरे के किलों में सेंधमारी से पहले अपने गढ़ोंं को बचाने की चुनौती

    राज्य ब्यूरो, पटना। विरोधी के किलों में सेंध लगाने का प्रयास कर रहे आमने-सामने के दोनों गठबंधनों (एनडीए और महागठबंधन) के लिए अपने गढ़ों को बचाए रखने की चुनौती इस बार बढ़ गई है। इसके दो कारण प्रमुख हैं। पिछली बार का नजदीकी मुकाबला और जन सुराज पार्टी (जसुपा) की सशक्त उपस्थिति। किलों में सेंधमारी की जुगत सत्तारूढ़ एनडीए को कुछ अधिक करनी है, जो पिछले चुनाव में आठ जिलों में खाली हाथ रहा था।

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    महागठबंधन को यह निराशा दो जिलों में मिली थी। हालांकि, बाद में हुए उपचुनाव में एनडीए ने महागठबंधन के कुछ किलों में सेंधमारी कर भी दी। ऐसे में महागठबंधन के लिए अपने किलोंं को बचाए रखने की चुनौती है, क्योंकि सीमांचल आदि में वोटों को बांटने के लिए जसुपा और एआइएमआइएम भी तत्पर हैं।

    पिछली बार दोनों गठबंधनों में मात्र 11150 मतों का फासला रहा था। इतने मतों से ही 15 सीटों का अंतर हो गया। मतदाता-सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर आपत्ति का एक बड़ा कारण यह भी है। एक-दूसरे की रणनीतिक चुतराई और कोताहियों से दोनों खेमे अवगत हैं, इसलिए तगड़ी घेराबंदी हो रही।

    एनडीए में भाजपा की देखादेखी महागठबंधन में कांग्रेस भी दूसरे प्रदेशों से अपने रणनीतिकारों को बिहार बुलाने लगी है। संगठनात्मक स्तर पर राज्य को कई हिस्सों में बांटकर चुनावी चक्रव्यूह की रचना हो रही। कांटे की टक्कर का संकेत चुनाव पूर्व के सर्वेक्षणों से भी मिल रहा है।

    एकतरफा जीत की संभावना नहीं, लिहाजा सरकार को बनाने-बिगाड़ने के लिए अपना वोट बचाने और दूसरे का वोट बिगाड़ने की जुगत है। ऐसे में अपने किलों को सुरक्षित रखना ही होगा। इसके बाद जीत का अंतर बढ़ाने के लिए दूसरों के गढ़ों में सेंधमारी करनी होगी।

    भाजपा द्वारा बिहार को पांच परिक्षेत्र (पटना, मगध-शाहाबाद, कोसी-सीमांचल, सारण-चंपारण, मिथिलांचल) में बांटकर बनाई जा रही चुनावी रणनीति का यही कारण है। इसी कारण राजद ने भी पर्दे के पीछे पेशेवर रणनीतिकारों की पूरी टीम लगा रखी है। एनडीए के घटक दलों की तैयारी भी लगभग भाजपा की अनुगामी है और वाम दलों की अधिकाधिक निर्भरता राजद पर।

    पिछले तीन चुनावों (2010, 2015, 2020) में सत्ता स्थिर नहीं रही। वह एनडीए से महागठबंधन और महागठबंधन से एनडीए के हाथ में आती-जाती रही। हालांकि, इस दौरान प्रमुख दलों के कुल किले स्थायी भाव वाले रहे। तिरहुत प्रमंडल में भाजपा का दबदबा रहा है, जबकि कोसी प्रमंडल जदयू का गढ़ बना रहा।

    मगध-सारण में राजद का जलवा है तो सीमांचल में कांग्रेस का बोलबाला। पिछली बार सारण प्रमंडल के परिणाम ने ही राजद को नंबर एक पार्टी बनाया था। अभी राजद मिथिलांचल में पैठ के लिए व्याकुल है तो भाजपा शाहाबाद और मगध को जीतने के लिए हाथ-पैर मार रही। भाजपा बूथ सशक्तीकरण से लेकर विधानसभा क्षेत्र स्तर तक रणनीति तय कर रही।

    दूसरे प्रदेशों के वरिष्ठ नेताओं के अतिरिक्त विभिन्न राज्यों की लगभग डेढ़ सौ महिला नेताएं भी घर-घर घूम रही हैं। उन्हें 121 विधानसभा क्षेत्रों में महिलाओं से संवाद और उन्हें साधने का दायित्व मिला है। उनमें से कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां पिछली बार एनडीए को जीत मिली थी, लेकिन बदली परिस्थिति में अपेक्षाकृत अधिक सतर्कता व अतिरिक्त रणनीति की आवश्यकता है।

    एक के काट में दूसरा विकल्प, तैयारी दोनों ओर बराबर की

    पूर्व में सीमांचल एक कोना है और पश्चिम में शाहाबाद दूसरा। भाजपा के लिए ये दोनों कोने अपेक्षाकृत दुरूह हैं। पिछली बार तो चार जिलों वाले शाहाबाद के कैमूर, बक्सर और रोहतास जिला में भाजपा क्या एनडीए का खाता तक नहीं खुला था।

    एकमात्र भोजपुर जिला में उसे दो सीटें मिली थीं। चार जिलों वाले सीमांचल के किशनगंज में भी एनडीए खाली हाथ रहा था। इसीलिए इस बार भाजपा दोहरी रणनीति पर आगे बढ़ रही। 15 सितंबर को सीमांचल के पूर्णिया में प्रधानमंत्री कई योजनाएं दे गए हैं तो दो दिन बाद 17 सितंबर को शाहाबाद के डेहरी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जीत की रणनीति बना गए।

    इसके काट में राजद भी मिथिलांचल में पैठ का प्रयास कर रहा, जहां कभी उसका ठीकठाक प्रभाव था। राजद की चाल-ढाल के कारण सवर्ण और अति-पिछड़ा वर्ग की बहुलता वाला मिथिलांचल कालांतर में बिदक गया। एनडीए के शासन-काल में ढांचागत विकास के साथ वहां की सांस्कृतिक अपेक्षाएं भी लगभग पूरी हुई हैं।

    अब इन सांस्कृतिक अपेक्षाओं में विकास की राष्ट्रवादी अवधारणा का मिश्रण कर भाजपा सीमांचल में भी जन-मन को प्रभावित करने का प्रयास कर रही। हालांकि, वहां की सामाजिक संरचना में भाजपा की यह अपेक्षा तब तक पूरी नहीं हो सकती, जब तक कि वोटों का धुव्रीकरण नहीं होता।

    इसी डर से राजद ने एआइएमआइएम से हाथ नहीं मिलाया, लेकिन अब वोटों के बिखराव की आशंका बढ़ गई है। हालांकि, वक्फ कानून और एसआइआर के विरुद्ध मुखर होकर महागठबंधन ने अपने को मुसलमानों का हितैषी सिद्ध करने का भरसक प्रयास किया है।

    पांच परिक्षेत्र : पांच परिक्षेत्र का दायित्व भाजपा ने झारखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मणिपुर, तेलंगाना और उत्तराखंड के प्रदेश संगठन महामंत्रियों को दिया है। दो संगठन महामंत्रियों को सीमांचल-कोसी परिक्षेत्र का दायित्व मिला है। अन्य चार को चार अन्य परिक्षेत्रों में लगाया गया है।

    प्रमंडलवार चुनाव परिणाम

    प्रमंडल कुल सीटें 2020 2015
    एनडीए महागठबंधन अन्य एनडीए महागठबंधन अन्य
    तिरहुत प्रमंडल 49 33 16 00 19 27 03
    सारण प्रमंडल 24 09 15 00 05 18 01
    दरभंगा प्रमंडल 30 22 08 00 04 26 00
    कोसी प्रमंडल 13 10 03 01 12 00 00
    पूर्णिया प्रमंडल 24 12 07 05 05 18 01
    भागलपुर प्रमंडल 12 09 03 00 02 10 00
    मुंगेर प्रमंडल 22 11 09 02 02 20 00
    मगध प्रमंडल 26 06 20 00 07 19 00
    पटना प्रमंडल 43 13 29 01 09 32 02
    कुल 243 125 110 08 178 58 07

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