Bihar Politics: विधायकों को अब सताने लगा बेटिकट होने का डर, समर्थकों के साथ पटना में डाला डेरा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा के बाद विधायकों में टिकट कटने का डर बढ़ गया है। कई विधायक अपने समर्थकों के साथ पटना में डेरा डाले हुए हैं जबकि राजनीतिक दल उम्मीदवारों के चयन के लिए सर्वे करा रहे हैं। पिछले चुनावों में बड़ी संख्या में विधायकों को जनता ने नकार दिया था जिसके चलते दल इस बार सतर्कता बरत रहे हैं।

दीनानाथ साहनी, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) की तिथियों का एलान हो चुका है। विधायकों को अब बेटिकट होने का डर सताने लगा है। बिहार में विधानसभा की कुल 243 सीटें हैं। जाहिर है, वर्तमान तमाम विधायकों की चुनाव लड़ने की चाहत है, लेकिन यह चाहत तभी पूरी होगी जब उनके दल के नेतृत्व उन्हें टिकट देंगे।
वैसे 60-65 प्रतिशत विधायकों को टिकट मिलने का पक्का भरोसा भी है। बाकी 35-40 प्रतिशत विधायकों को खुद पर तो भरोसा है, लेकिन उन्हीं के दल का नेतृत्व उनके दावे पर आंख बंद कर भरोसा नहीं कर पा रहा है।
यह स्थिति राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और आईएनडीआईए (महागठबंधन) के अलावा उन पार्टियों में भी है जो किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं।
रोचक यह कि बेटिकट होने या छंटनी के डर से ऐसे विधायकों ने अपने समर्थकों के संग पटना में डेरा डालना शुरू कर दिया है। वहीं टिकट के दावेदारों को भीड़ भी लगनी शुरू हो गई है। उधर, विधानसभा क्षेत्रों में सन्नाटा पसरा हुआ है। इक्का-दुक्का विधायक क्षेत्र में जा रहे हैं। उनसे हिसाब मांगा जा रहा है। इस बार जनता भी मुखर होकर तीखे सवाल पूछ रही है। यह स्थिति उम्मीदवारों और उनके दलों के नेतृत्व की चिंता बढ़ा रही है।
जीत की गारंटी की रणनीति बनाने में जुटा हर राजनीतिक दल
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो पिछले चुनावों का रिकार्ड यह अनुभव कराता है कि हर बार के चुनाव में 35 से 40 प्रतिशत सीटिंग विधायकों को जनता नकार देती है। इसलिए हर राजनीतिक दल पिछले चुनाव के अनुभव के आधार पर चुनाव जीतने की रणनीति बनाते हैं। मुद्दे भी उसी आधार पर तय होते हैं। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 107 विधायक हार गए थे।
इसी प्रकार 2015 के चुनाव का परिणाम यह था कि 2010 में जीते सौ विधायक चुनाव हार गए थे। मतलब लगभग 40 फीसद विधायक नकार दिए गए थे। 143 विधायक ऐसे थे, जिन्होंने दूसरी बार जीत हासिल की थी। उनमें भी कई ऐसे थे, जिन्हें 2010 के चुनाव में जनता ने ब्रेक दे दिया था।
जाहिर है, इन्हीं चुनाव परिणामों के आधार पर राजनीतिक दलों के नेतृत्व उम्मीदवारों को टिकट देता है और जीत की संभावना पर गौर करता है। इसमें विधानसभा के कार्यकर्ताओं से फीडबैक को भी एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है।
इस बार भी दलों के नेतृत्व द्वारा एक-एक विधायक के कार्य क्षेत्र और उम्मीदवारी से लेकर दावेदारी का फीडबैक लिया जा रहा है। बात इतने से नहीं बन रही है तो निजी सर्वे एजेंसियों को क्षेत्र में भेजकर रिपोर्ट कार्ड तैयार करवाया जा रहा है। इस मामले में एनडीए सबसे आगे है जिसने विधानसभावार एजेंसियों से संभावित उम्मीदवारों के नाम के साथ लोगों से उनकी जीत की गुंजाइश के बारे में आकलन कराया है।
वैसे राजद और कांग्रेस भी निजी एजेंसियों की सेवा लेने में पीछे नहीं है। इसी प्रकार जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने भी अपनी सर्वे टीम से हर विधानसभा क्षेत्र पर सर्वे रिपोर्ट तैयार कराया है। दिलचस्प यह कि कुछ राजनीतिक दल तो एक एजेंसी से मिली रिपोर्ट की जांच दूसरी एजेंसी से करवा रही हैं।
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