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    RJD Result 2024: उपचुनाव के मैदान में फिसड्डी साबित हुई RJD, 'माय-बाप' फैक्टर भी हो रहा फेल

    Updated: Mon, 25 Nov 2024 03:16 PM (IST)

    बिहार विधानसभा चुनाव में राजद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई थी लेकिन 2025 विधानसभा चुनाव से पहले दूसरे नंबर पर खिसक गई। इसकी सबसे बड़ी वजह 4 साल में 10 सीटों पर हुए उपचुनाव हैं। हाल ही में 4 सीटों पर हुए उपचुनाव में राजद एक भी सीट नहीं जीत सकी। वहीं इसके पहले 6 सीटों में हुए उपचुनाव में राजद को एक सीट में सफलता मिली।

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    10 में से 9 सीटों पर हुए उपचुनाव में हारी RJD

    विकाश चंद्र पाण्डेय, पटना। विधानसभा में नंबर एक की पार्टी रहा राजद अब दूसरे पायदान पर खिसक गई है। इसका सबसे बड़ा कारण इसी महीने चार सीटों (रामगढ़, तरारी, बेलागंज, इमामगंज) पर हुए उपचुनाव में पराजय भी है। राजद के लिए उप चुनाव का मैदान पहले भी सहज नहीं रहा है और इस बार तो उसके हाथ केवल निराशा लगी है। अगले साल राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, जिसके लिए राजद को इस हार से उभरकर आगे की तैयारी करनी होगी। हालांकि, पिछले चुनाव की कमियों-खामियों से सीखने की उसने जहमत उठाई हो, इसका दावा उचित नहीं।

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    10 सीटों में केवल एक पर मिली जीत

    बिहार में 2020 के चुनाव के बाद से अब तक विधानसभा के दस क्षेत्रों में उपचुनाव हो चुका है। राजद और उसके नेतृत्व वाला महागठबंधन उनमें से नौ सीटों पर पटखनी खा चुका है। एकमात्र बोचहां की ही सीट रही, जिसमें उपचुनाव के नतीजे राजद के पक्ष में रहे। बची 9 सीटों को जीतने के लिए राजद ने चाहे जितना भी प्रयास किया हो, लेकिन प्रदर्शन अपेक्षा के विपरीत ही रहा।

    उपचुनाव वाले क्षेत्र और नतीजे

    तारापुर, कुशेश्वरस्थान, कुढ़नी, बोचहां, रूपौली, गोपालगंज, रामगढ़, तरारी, बेलागंज, इमामगंज में विधानसभा चुनाव के बाद उप चुनाव हुआ। इनमें से तीन सीटें (कुढ़नी, रामगढ़, बेलागंज) राजद की थीं, जहां वह हार गया।

    राजद की उपलब्धि अवसर-जनित

    वीआइपी के विधायक मुसाफिर पासवान के अकाल निधन के बाद बोचहां में उप चुनाव हुआ। मुसाफिर के पुत्र अमर पासवान राजद के प्रत्याशी रहे। रमई राम की पुत्री गीता देवी वीआइपी से प्रत्याशी थीं। त्रिकोणीय संघर्ष में राजद से भाजपा की बेबी कुमारी हार गईं और ये सीट राजद के खाते में आ गई।

    गढ़ में भी हारी RJD

    राजद को उपचुनाव में उन सीटों पर भी हार का सामना करना पड़ा जो कई साल से उसका गढ़ रहे हैं और कुछ क्षेत्रों में वह पिछले चुनावों तक काबिज रही थी। इसके बावजूद अगर पार्टी चूक गई तो अपनी रणनीतिक कमजोरी और इतिहास के कारण ही। सत्ता और सियासत के लिए राजद ने माय (मुसलमान-यादव) समीकरण पर इतनी निर्भरता बना ली कि उसके बाप (बहुजन-अगड़ा-अति पिछड़ा) वाले दांव पर किसी को यकीन ही नहीं हो रहा।

    इस बार तो उससे 'माय' ने भी कुछ 'खेल' किया है। बेलागंज और रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र इसके शानदार उदाहरण हैं। तरारी का परिणाम बता रहा कि चाहत मात्र से 'बाप' किसी का नहीं हो जाता। राजद के नेता भी इसे स्वीकार कर रहे, लेकिन संगठन में अपनी संभावना के कारण कोई मुखर नहीं हो रहा।

    क्षोभ अभी मौन है

    राजद नेताओं का ही मानना है कि कुढ़नी और रूपौली, दो ऐसे क्षेत्र थे, जहां हार से सबक लेना चाहिए था। हालांकि, उसने कुछ सीखने के बजाय पुरानी गलतियां ही दोहराई गईं। व्यक्तिवाद और परिवारवाद से मोह के कारण भी पार्टी की मिट्टी पलीद हो रही। वर्षों से जमे-जमाए नेताओं को तो इससे कोई फर्क नहीं, लेकिन राजनीति की नई पौध के लिए प्रतीक्षा अंतहीन होती जा रही। कई चेहरों पर इसका क्षोभ उभर आता है।

    प्रतिकार और पुरस्कार का द्वंद्व

    कुढ़नी में लगभग दो वर्ष पहले उप चुनाव हुआ था और रूपौली में तो चार माह पहले ही। कुढ़नी राजद की सीट थी, जिसे उप चुनाव में उसने भाजपा के उसी केदार प्रसाद गुप्ता को सौंप दिया, जिनसे 2020 में उस सीट को राजद ने झटका था। केदार अब पंचायती राज मंत्री हैं। भाजपा में बदले का पुरस्कार कुछ ऐसे मिलता है।

    दूसरी तरफ राजद को देखिए, रूपौली का उदाहरण उचित होगा। जिस बीमा भारती के कारण 2010 में उसे यह सीट सहयोगी दल के हवाले कर देनी पड़ी, उन्हीं को राजद उप चुनाव के मैदान में लेकर आया। ऐसा तब जबकि दो माह पहले हुए लोकसभा चुनाव में राजद के टिकट पर पूर्णिया की जनता ने बीमा की जमानत तक जब्त करा दी थी।

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