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    Bihar News: बेउर जेल अधीक्षक की नौकरी खतरे में, गृह विभाग ने किया सस्पेंड; सामने आई बड़ी वजह

    Updated: Wed, 22 Jan 2025 09:12 PM (IST)

    बेउर जेल अधीक्षक विधु कुमार को आय से अधिक संपत्ति मामले में तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। ईओयू की प्रारंभिक जांच में उनके पास आय से 146 प्रतिशत अधिक संपत्ति पाई गई है। उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू हो गई है। विधु कुमार पर आरोप है कि उन्होंने अवैध कमाई से कई बड़े शहरों में जमीन खरीदी है।

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    बेउर जेल अधीक्षक विधु कुमार निलंबित। फाइल फ़ोटो

    राज्य ब्यूरो, पटना। आय से अधिक संपत्ति मामले के आरोपित बेउर जेल अधीक्षक विधु कुमार को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। गृह विभाग (कारा) ने इससे संबंधित आदेश बुधवार को जारी कर दिया है।

    निलंबन अवधि में विधु कुमार का मुख्यालय केंद्रीय कारा, बक्सर निर्धारित किया गया है। निलंबन अवधि में उन्हें जीवन निर्वाह भत्ता दिया जाएगा।

    विभाग ने निलंबित जेल अधीक्षक के विरुद्ध आरोप पत्र गठित कर विभागीय कार्यवाही संचालित करने का निर्देश दिया है।

    कई जगहों पर खरीदी है जमीन

    • मालूम हो कि इसी माह आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने राजधानी के आदर्श केंद्रीय कारा, बेउर के अधीक्षक विधु कुमार के पटना और मोतिहारी के आठ ठिकानों पर छापामारी की थी।
    • ईओयू की प्रारंभिक जांच में विधु कुमार के पास आय से 146 प्रतिशत अधिक संपत्ति पाई गई है। आरोप है कि विधु कुमार ने अवैध कमाई से पटना, मोतिहारी, शिवहर, पूर्णिया और कटिहार में एक दर्जन से अधिक जमीनें खरीदीं हैं।

    तथ्य छुपाने के आरोप में बर्खास्त एसआई को पुनः सेवा में बहाल करने का निर्देश

    पटना हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले से तथ्य छुपाने के आरोप में बर्खास्त बेनीपट्टी थाने (दरभंगा) में कार्यरत एसआई को पुनः सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया।

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    न्यायाधीश पुर्णेंदु सिंह की एकलपीठ ने समस्तीपुर निवासी सोनू कुमार की याचिका पर स्वीकृति देते हुए उसकी बर्खास्तगी आदेश को रद कर दिया।

    सोनू कुमार ने 2017 में बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग द्वारा एसआई पद के लिए निकाली गई भर्ती प्रक्रिया में आवेदन किया था। आवेदन पत्र में उसने अपने खिलाफ लंबित एक आपराधिक मामले का उल्लेख नहीं किया था।

    सोनू पर वर्ष 2015 में धारा 302 (हत्या) एव अन्य धाराओं के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के बाद 2019 में उसे नियुक्ति दी गई।

    नियुक्ति के समय उन्होंने सत्यापन फार्म में उक्त मामले का उल्लेख किया। इस बीच, सत्र न्यायालय ने 2022 में उसे आपराधिक मामले में बरी कर दिया।

    इसके बावजूद, विभाग ने आवेदन पत्र में जानकारी छुपाने का आरोप लगाते हुए उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कुमार कौशिक ने कोर्ट को तर्क दिया कि याचिकाकर्ता पर मुकदमा एक झूठे आरोप पर आधारित था और सत्र न्यायालय ने पूरी तरह से निर्दोष पाया।

    इसके अलावा, आवेदन पत्र में जानकारी छुपाने की गलती उनके युवा होने कारण हुई, चूंकि फॉर्म भरने के समय उनकी उम्र मात्र 21 वर्ष की थी।

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