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    Bihar News: बिहार के बच्चों में बढ़ रहा ठिगनापन, वजन और दुबलेपन को लेकर भी सामने आई नई रिपोर्ट

    बिहार में बच्चों के स्वास्थ्य पर नई रिपोर्ट आई है। इसके अनुसार राज्य में बच्चों में ठिगनापन बढ़ रहा है लेकिन दुपलापन और वजन में कमी की शिकायतें कम हो रही हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री साबित्री ठाकुर ने राज्यसभा में यह जानकारी दी। बताया गया कि बच्चों के लिए केंद्र सरकार की तरफ से कई अभियान चलाए जा रहे हैं।

    By Arun Ashesh Edited By: Mukul Kumar Updated: Wed, 26 Mar 2025 03:43 PM (IST)
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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

    राज्य ब्यूरो, पटना। बिहार के बच्चों में ठिगनापन बढ़ रहा है। लेकिन, दुपलापन और वजन में कमी की शिकायत दूर हो रही है।

    केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री साबित्री ठाकुर ने बुधवार को राज्यसभा में यह जानकारी दी। वह राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा के एक अतारांकित प्रश्न का उत्तर दे रही थीं।

    उन्होंने बताया कि एनएफएचएस (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण) और पोषण ट्रेकर के आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि पूरे देश में बच्चों के कुपोषण के संकेतकों में सुधार हो रहा है।

    क्या कहती है एनएफएचएस की रिपोर्ट

    • बिहार में एनएफएचएस-5 (2019-21) रिपोर्ट के अनुसार, पांच वर्ष से कम उम्र के 42.9 प्रतिशत बच्चे ठिगनापन के शिकार थे।
    • दुबलापन और कम वजन के बच्चों का प्रतिशत क्रमश: 22.9 और 41 था, लेकिन इस साल फरवरी के पोषण ट्रैकर का विश्लेषण बताता है कि इस राज्य के पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में दुबलेपन की शिकायत कम हुई है।
    • यह पांच साल पहले के 22.9 प्रतिशत से कम होकर 9.58 प्रतिशत पर आ गया है। इसी तरह कम वजन के बच्चों का प्रतिशत भी 41 से घटकर 24.9 प्रतिशत पर आ गया है। लेकिन, ठिगनेपन में कमी नहीं आई है।
    • यह पांच साल पहले 42.9 प्रतिशत था। बढ़ कर 47.09 प्रतिशत पर आ गया है।
    • उन्होंने बताया कि बच्चों को पोषणयुक्त आहार देने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से कई अभियान चलाए जा रहे हैं और इसका स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव भी देखा जा रहा है।

    चार शिशु रोग विशेषज्ञ के सहारे जिले के लाखों बच्चे

    उधर, अरवल जिले में लाखों बच्चों की स्वास्थ्य सुरक्षा चार शिशु रोग विशेषज्ञों के भरोसे है। जिले में शिशु रोग विशेषज्ञों की भारी कमी है यहां पांचों प्रखंडों के सरकारी अस्पतालों के अलावा सदर अस्पताल में भी शिशु रोग विशेषज्ञ की कमी हैं।

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    एसएनसीयू में तीन शिशु रोग विशेषज्ञ है, जहां केवल जन्म से 29 दिन के ही बच्चे को इलाज होता है। जिले के सभी अस्पतालों में कोल्ड डायरिया, हाइपोथर्मिया, वायरल बुखार, डायरिया, सर्दी, खांसी से पीड़ित 100 बच्चे रोजाना स्वास्थ्य जांच व इलाज के लिए आ रहे हैं।

    सदर अस्पताल में प्रतिदिन 40 से 50 बच्चे इलाज करने आते हैं। सदर अस्पताल की एसएनसीयू इकाई में भी प्रतिदिन 8 से 10 नवजात भर्ती किए जा रहे हैं।

    वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार जिले में 0 से 12 वर्ष आयु उम्र के बच्चों की आबादी ढाई लाख से ज्यादा है। इन बच्चों के स्वास्थ्य की जांच व इलाज के लिए सदर अस्पताल में मात्र एक शिशु रोग विशेषज्ञ कार्यरत हैं। जबकि जिले में बाल रोग विशेषज्ञों के 15 पद स्वीकृत हैं।

    सदर अस्पताल सहित विभिन्न अस्पतालों के ओपीडी के रजिस्ट्रेशन व दवा काउंटर पर मरीजों की लंबी कतार लग रही है।

    सिर्फ सदर अस्पताल में उल्टी, हाइपोथर्मिया, वायरल बुखार व डायरिया से पीड़ित औसतन 20 बच्चे रोजाना स्वास्थ्य जांच व इलाज के लिए आ रहे हैं।

    सदर अस्पताल में आने वाले बच्चों का इलाज शिशु रोग विशेषज्ञ के अभाव में एमबीबीएस चिकित्सक अंदाज से ही करते हैं। जिससे बच्चों को बीमारी बढ़ने का खतरा बना रहता है।

    11 महीने में एसएनसीयू में हुई 28 नवजात की मौत

    पिछले साल अप्रैल माह से इस साल फरवरी माह तक सदर अस्पताल के एसएनसीयू में 686 नवजातों का भर्ती कराया गया। जिसमें 588 स्वस्थ होकर अपने घर चले गए। 28 नवजातों की मौत हो गई और 32 भर्ती नवजातों के स्वजन बिना रेफर के ही निजी अस्पताल लेकर चले गए।

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