बिहार में एक ऐसा स्कूल जहां दो कमरों में पढ़ते करीब 200 बच्चे, पढ़ाने का अंदाज भी अनोखा
Darbhanga news इस स्कूल में ब्लैकबोर्ड दो-दो भाग में बांट होती पढ़ाई। मध्य विद्यालय घनश्यामपुर में 198 बच्चों के पठन-पाठन के लिए महज दो कक्ष। स्थापना के 77वें साल में भी नहीं बदल पाई सूरत बीईओ ने कहा- जमीन के अभाव में नहीं बना भवन।
दरभंंगा (घनश्यामपुर), जासं। बिहार के दरभंंगा जिले में एक स्कूल ऐसा भी जहां बच्चे पढ़ने तो आते हैं, लेकिन पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। इस स्कूल में 198 बच्चे व 11 शिक्षक हैं, जबकि कमरे सिर्फ दो ही हैं। एक कक्षा में बच्चों के बीच विद्यालय के प्रधानाध्यापक का दफ्तर भी चलता है। क्लास में लगे ब्लैकबोर्ड को अलग-अलग भागों में बांट शिक्षक पढ़ाते हैं। बताते चलें कि दरभंगा जिले के राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय घनश्यामपुर में वर्ग कक्ष के अभाव में पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है। यहां नामांकित 198 बच्चों के पढऩे के लिए महज दो कक्ष हैं। एक कमरे में दो-तीन कक्षाओं का संचालन होता है। कुल दो वर्ग कक्ष वाले स्कूल की एक कक्षा में बच्चों के बीच विद्यालय के प्रधानाध्यापक का दफ्तर भी चलता है। विद्यालय 71 साल पहले स्थापित आधारभूत संरचनाओं पर ही संचालित हो रहा है।
यहां शिक्षक हो जाते असहज
दरअसल, इस विद्यालय की स्थापना 1945 में प्राथमिक शिक्षा के लिए हुई। 2003 में सरकार की नजर पड़ी और विद्यालय मध्य विद्यालय में उत्क्रमित हो गया। सरकार की इस कोशिश के बीच भवन का निर्माण कक्षा व बच्चों की संख्या के अनुरूप नहीं किया जा सका। नतीजा पहली से लेकर सातवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए दो ही कमरों का भवन रह गया। धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ी और वर्तमान में यहां कुल 198 बच्चे अध्ययनरत हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए कुल 11 शिक्षक यहां पदस्थापित हैं। फिर भी शिक्षा दे पाने में वो स्वयं को असहज महसूस करते हैं। कारण साफ है- स्कूल के बरामदे पर पहली व दूसरी कक्षा का संचालन होता है। एक कमरे में तीसरी से लेकर पांचवीं तक के विद्यार्थी पढ़ते हैं। जबकि दूसरे में छठी व सातवीं के विद्यार्थियों को शिक्षा देने के साथ-साथ प्रधानाध्यापक का दफ्तर भी संचालित होता है। उस समय बेहद असहज स्थिति हो जाती है जब विद्यालय के खुले परिसर में मवेशी आ जाते हैं। उस समय ब'चों को जैसे-तैसे इस स्थिति से शिक्षक उबारते हैं।
बच्चों को नहीं दे पाते समुचित शिक्षा
विद्यालय की शिक्षिका पूजा कुमारी बताती हैं- एक ही बोर्ड पर दो कक्षा के ब'चों को पढ़ाना काफी परेशानी भरा होता है। वजह यह एक कक्षा में एक तरफ बैठे ब'चों को एक शिक्षक पढ़ा रहे होते हैं, उसी समय कक्षा के दूसरे हिस्से में बैठे ब'चों को दूसरे शिक्षक ज्ञान दे रहे होते हैं। बोर्ड बांटकर पढ़ाना होता है। शिक्षक राम दयाल ठाकुर कहते हैं- गणित को पढ़ाने के लिए एक समग्र बोर्ड की जरूरत होती है, लेकिन बंटे बोर्ड पर गणित पढ़ाने का नतीजा नहीं मिल पाता। बच्चों का ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता है।
छात्राओं ने कहा कि, विषय वस्तु पर ध्यान करना होता मुश्किल
कक्षा छह की छात्रा काजल कुमारी ने बताया कि एक वर्ग में दो शिक्षक एक साथ अलग-अलग वर्ग के बच्चों को पढ़ाते हैं हमें समझ नहीं आता कि किस शिक्षक के विषय वस्तु पर ध्यान केंद्रित करें। वहीं सातवीं की रानी कुमारी कहती हैं बरामदे पर दो तथा दो कमरों में तीन वर्ग व विद्यालय प्रधान का कार्यालय संचालित होने के कारण बस पढ़ाई का कोरम पूरा किया जाता है।
बैजू महतो ने कहा कि, बच्चों में पढाई के प्रति जागरूकता बढ़ी है। वो नियमित विद्यालय आते हैं, लेकिन पर्याप्त संसाधन के अभाव में शिक्षण कार्य सुचारू रूप से नहीं हो पाता। चहारदीवारी नहीं होने कारण बेसहारा पशु इधर उधर घूमते रहते हैं। इस कारण बच्चों की सुरक्षा को लेकर खतरा बना रहता है।
प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी लक्ष्मीकांत तिवारी ने बताया कि, भवन निर्माण के लिए जमीन उपलब्ध कराने के लिए प्रखंड विकास पदाधिकारी समेत अन्य सभी संबंधित अधिकारियों को सूचना दी गई है। जमीन नहीं रहने के कारण भवन निर्माण नहीं हो पा रहा।
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