Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Navratri Special: कौआकोल में 18वीं सदी से हो रही मां कामाख्या की पूजा, तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं भक्त

    Updated: Wed, 24 Sep 2025 11:40 AM (IST)

    कौआकोल में दुर्गा मंडप स्थित माता कामाख्या की पूजा तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए प्रसिद्ध है। नवरात्र में तांत्रिक विधि से पूजा होती है जहाँ दूर-दूर से भक्त सिद्धि पाने आते हैं और नौ दिनों तक आराधना करते हैं। कलश स्थापना से खीर का भोग लगता है। मान्यता है कि यहां मन्नतें पूरी होती हैं। अठारहवीं सदी से पूजा हो रही है और जमींदारों ने जमीन दान की थी।

    Hero Image
    कौआकोल में 18वीं सदी से हो रही मां कामाख्या की पूजा

    नवीन कुमार, कौआकोल। कौआकोल प्रखंड मुख्यालय स्थित दुर्गा मंडप में माता कामाख्या की पूजा की जाती है। यहां की पूजा तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां नवरात्र में तांत्रिक पद्धति से माता की पूजा होती है।

    नवरात्र के दौरान तंत्र-मंत्र की सिद्धि प्राप्त करने के लिए काफी दूर-दूर से लोग माता की आराधना के लिए पहुंचते हैं। लोग सिद्धि प्राप्ति के लिए नौ दिनों तक लगातार आराधना में लीन रहते हैं। कलश स्थापना के दिन से ही माता को खीर का भोग लगाया जाता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ऐसी मान्यता है कि कौआकोल स्थित माता की दरबार में मन्नतें लेकर पहुंचे याचक कभी भी खाली हाथ नहीं लौटते हैं। माता ने सभी की मुरादें पूरी की है। जानकार लोग बताते हैं कि यहां अठारहवीं सदी से ही माता की पूजा हो रही है।

    क्षेत्रीय जमींदार ने कामख्या से माता की पिंडी की मिट्टी व शिला लाकर शुरू की थी पूजा

    उस वक्त यहां के क्षेत्रीय जमींदार लोकनाथ सिंह तथा उनके ही परिवार के सरस्वती कुंवर एवं झालो कुंवर द्वारा कामाख्या से वहां की माता की पिंडी की मिट्टी एवं शिला लाकर माता की स्थापना की गई थी।

    उस वक्त माता को कामाख्या के विधान के अनुसार ही खीर का भोग लगाया गया था। भक्ति जागरण के दिन महाअष्टमी को सभी तरह के कच्चे अनाज का भोग लगाया गया था। वही परंपरा आज तक चली आ रही है।

    उस वक्त के तत्कालीन जमींदार लोकनाथ सिंह तथा जामताड़ा की रानी द्वारा 72 बीघा जमीन माता की पूजा तथा देखरेख के लिए दान स्वरूप भेंट की गयी थी।

    जागृत अवस्था में है यहां की देवी माता

    यहां के संरक्षक धर्मेंद्र भूषण पाठक ने बताया कि यहां की पूजा खास तरीके से होती है। पूजा के शुरू दिन से लेकर अंतिम दिन यानी मूर्ति विसर्जन के दिन दशमी तक प्रत्येक दिन एक पाठे (बकरे) की बलि चढ़ाई जाती है। यहां की माता पूरी तरह से जागृत अवस्था में हैं। माता सबकी मनोकामना पूर्ति करती हैं।

    कौआकोल की माता कामाख्या अपनी महिमा एवं प्रसिद्धि के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। नवरात्र के आठवें दिन माता की गोद भराई करने तथा नवमी के दिन पाठे यानी बकरे की बलि चढ़ाने की रस्म निभाते हैं। यहां के अध्यक्ष एसडीओ, सचिव अजीत वर्मा, कोषाध्यक्ष वीरेंद्र कुमार, संरक्षक धर्मेंद्र भूषण पाठक हैं।