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    मुफलिसी से हार नहीं मानी, बेटियों को दी ऊंची उड़ान

    By Kajal KumariEdited By:
    Updated: Wed, 08 Mar 2017 10:32 PM (IST)

    'महावीर सिंह फोगाट’, जिसने खुद मुफलिसी का जीवन जिया, लेकिन बेटियों को हौसला और परवाज देने में कसर नहीं छोड़ी।परिवार से अलग रहकर आटा चक्की चलाकर बेटि ...और पढ़ें

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    मुफलिसी से हार नहीं मानी, बेटियों को दी ऊंची उड़ान

    नवादा [कुमार गोपी कृष्ण]। मेरी बेटियां आज इतनी आगे बढ़ गईं, जितना मैंने सोचा भी ना था। बेशक मैंने बेटियों के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया, परंतु इन्हीं के कारण मुझे भी पहचान मिली।  समाज में मेरा मान-सम्मान बढ़ा है। कल तक दुत्कारने वाले लोग साथ उठते-बैठते हैं।

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    ये शब्द बिहार के उस 'महावीर सिंह फोगाट’ के हैं, जिसने खुद मुफलिसी का जीवन जिया, लेकिन बेटियों को हौसला और परवाज देने में कसर नहीं छोड़ी। वर्षों परिवार से अलग रहकर आटा चक्की चलाकर दो बेटियों को बुलंदियों पर पहुंचाया।
    पटेल नगर निवासी अनिल सिंह की बड़ी बेटी सोनी कुमारी बीएसएफ में एएसआइ है, केरल के कोयम्बटूर में पदस्थापित है। दूसरी बेटी खुशबू कुमारी हैंडबॉल की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में देश-विदेश में परचम लहरा रही है।
    सोनी की शादी बीएसएफ में ही कम्युनिकेशन इंजीनियर समीर कुमार सिंह से हुई है। वहीं खुशबू नवादा जिला पुलिस बल की जवान है, फिलवक्त पटना में डीजी टीम में प्रतिनियुक्त है।
    संघर्ष भरा रहा जीवन
    दो बेटियों के जीवन का मार्ग प्रशस्त करने वाले अनिल का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा। 1984 में शादी हुई। इसके दो साल बाद घर छोड़ दिया और शिक्षित बेरोजगार के रूप में 25 हजार रुपये का ऋण लेकर पकरीबरावां में कोयला गुल (जलावन के लिए काम आता है) फैक्ट्री खोली।
    किस्मत ने दगा दे दी और 1988 में कच्चा माल नहीं मिलने से फैक्ट्री बंद हो गई। दो साल तक बेरोजगार रहे। 1990 में बोकारो गए और झोपड़ी डालकर आटा चक्की लगाई। काम को रफ्तार मिली, लेकिन किस्मत ने एक बार फिर दगा दे दी।
    1999 में बोकारो स्टील प्लांट ने अतिक्रमण हटाया तो झोपड़ी में चल रही चक्की बंद करनी पड़ी। इसके बाद नवादा वापस आ गए और गल्ला का व्यवसाय शुरू किया। सफलता नहीं मिली तो दोबारा आटा चक्की शुरू की। हिसुआ में पोल्ट्री फॉर्म भी खोला। दो वर्ष बाद तबीयत काफी बिगड़ गई और दो बार हृदय का ऑपरेशन कराना पड़ा।
       
    पत्नी का भरपूर साथ
    अनिल बताते हैं कि पिता तंज कसा करते थे कि जीवन में सफल नहीं हो सकूंगा। बेटे-बेटियां भी कुछ नहीं कर सकेंगे। उनके तंज के बाद मन में ठान ली थी कि जहर खा लूंगा, लेकिन पिता से रुपये नहीं मांगूगा।
    इसके बाद बेटी सोनी, खुशबू और बेटे दीपक को मुकाम दिलाने के लिए जीवन समर्पित कर दिया। परिवार से दूर रहना काफी खटकता था, पर पत्नी ने पूरा साथ दिया। कर्ज लिया तो बेटियों ने चुकता कर दिया। दोनों बेटियों से आज मुझे पहचान मिली। बेटा भी सरकारी नौकरी में है।
    खुद इंटर पास, बेटियों को दिलाई उच्च शिक्षा
    अनिल खुद इंटर पास हैं, लेकिन अपनी बेटियों को उन्होंने उच्च शिक्षा दिलाई है। बड़ी बेटी सोनी ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से पीजी किया। छोटी बेटी खुशबू ने कृषक कॉलेज धेवधा से स्नातक तक पढ़ाई की है। अनिल कहते हैं कि बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं है।
    बेटियों को पिता पर है गर्व
    खेल में सफलता की उड़ान भर रही खुशबू कहती है कि मुझे अपने पिता पर गर्व है। गरीबी के चलते कमाने बाहर चले गए और बचपन में उनका प्यार-स्नेह नहीं मिल सका। पिता के बलिदान की बदौलत इस मुकाम पर हूं। खुशबू हैंडबॉल की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी है। 2015 में बांग्लादेश में हुए अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में गोल्ड मिला है।
    इसके बाद 2016 में वियतनाम में भी भारतीय टीम की तरफ से खेलने का मौका मिला। राष्ट्रीय स्तर पर वह कई गोल्ड, सिल्वर व कांस्य पदक जीत चुकी हैं। जिला व राज्य स्तर पर अनगिनत मेडल प्राप्त किए। बड़ी बेटी बीएसएफ में एएसआइ सोनी कहती है कि पिता के संघर्षों के कारण ही आज वे इस मुकाम पर है।