अब रात में क्यों नहीं सुनाई देती 'जागते रहो' की आवाज, क्या पहले आपके मोहल्ले में भी आते थे चौकीदार?
Bihar News क्या आपके मोहल्ले में भी पहले जागते रहो की आवाज आती थी? आपने नोटिस किया होगा कि पिछले कुछ समय से यह आवाज आनी बंद हो गई है। चौकीदारी खत्म नहीं हुई है लेकिन चौकीदार अब कहीं थाने की शोभा बढ़ा रहे हैं तो कहीं साहब के बंगले की। गांव की गलियों में अब रात की चौकीदारी की प्रथा समाप्त हो गई।
मो. फजल मोआज, खुदागंज : पहले जब पुलिसिया तंत्र आज की तरह विकसित नहीं था। उस समय पुलिस के नाम से लोग भय खाते थे। उस वक्त गांव, टोले, मोहल्ले में पुलिस के सबसे छोटे कर्मी रातभर जागते रहो की आवाज लगाते थे।
उनपर भरोसा इतना होता था कि लोग बेखौफ आराम की नींद सो जाते थे। क्या आपने भी ऐसी आवाजें सुनी हैं? क्या आपके मोहल्ले में अभी भी जागते रहो की आवाज आती है? मुमकिन है कि अधिकतर लोगों का जवाब नहीं में होगा।
ऐसा नहीं है कि चौकीदारी ही खत्म कर दी गई। आज भी अधिकांश गांव में चौकीदार मौजूद हैं, लेकिन अब उनके काम बदल गये हैं। चौकीदार अब कहीं ये थाने की शोभा बढ़ाते होते हैं तो कहीं साहब के बंगले की।
ये थाने की मुखबिर की भूमिका भी निभाते हैं। यानी मुख्य कार्य से ही विमुख हो गई है चौकीदारी। गांवों की गलियों में जागते रहो की आवाज के साथ लोगों को रात के प्रहर चौकीदारों द्वारा सजग रहने की पहरेदारी अब बीते जमाने की बात दिखाई देने लगी है।
गांव के गली-मोहल्लों में गांव के बड़े बुजुर्गो का नाम लेते हुए ये चौकीदार आवाज लगाकर कहते थे कि अरे ओ रामू काका, हरिमोहन दादा ,बच्चु भैया जागते रहो। इस आवाज को सुनकर जहां एक तरफ लोग जग जाते थे वहीं दूसरी तरफ चोर एवं अपराधी भी सजग हो जाते थे।
गहरी नींद में सोए लोगों को चौकीदारों द्वारा की जा रही पहरेदारी न सिर्फ उनकी हिफाजत के लिए सजग होने को कहता था बल्कि यह नियमित रूप से लोगों को समय की जानकारी भी देता था। चौकीदारों को समाज के हर वर्ग के लोगों के बारे में विस्तृत जानकारी होती थी।
ये समाज की हर गतिविधियों की निगरानी रखते थे। थानाध्यक्षों को सूचना उपलब्ध कराने का एक बेहतर जरिया हुआ करते थे। थानाध्यक्ष भी चौकीदारों से प्राप्त सूचना का बेहतर इस्तेमाल किया करते थे।
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किसी भी घटना पर अग्रेतर कार्रवाई से पूर्व वे चौकीदारों से इसकी विस्तृत जानकारी प्राप्त करते थे, जिससे गलतियों के कम होने की आशंका रहती थी, परन्तु वक्त के साथ-साथ चौकीदारों की भूमिका भी बदल गई।
बैंकों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों की पहरेदारी कर रहे चौकीदार
अब ये चौकीदार के लिए सिमट कर रह गये। गांव की गलियों में अब रात की चौकीदारी की प्रथा समाप्त हो गई। प्रतिदिन पहरेदारी की प्रथा की समाप्ति का परिणाम भी सामने आ रहा है।
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लगातार गांवों और शहरों में चोरी की घटना बढ़ती जा रही है। समाज के बड़े बुजुर्गो का कहना है कि चौकीदारों द्वारा की जाने वाली रात्रि पहरेदारी से चोरी की घटना कम होती थी। लोग इनकी आवाज सुनकर सजग हो जाया करते थे और अपराधी प्रवृति के लोग भी सहम जाते थे। आज भी इस आवाज की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
चौकीदार से पहरेदारी से चोरी में आयेगी कमी
अगर ग्रामीण क्षेत्रों में रात में चौकीदार से पहरेदारी कराई जाय तो चोरी की घटनाओं में काफी कमी आयेगी। - मो० कलाम आलम, सरपंच, ग्राम कचहरी सुढ़ी
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