इनके उपर था 2 करोड़ का इनाम, आज संत बन बच्चों को दे रहे ज्ञान
कभी चंबल के बीहड़ों में दहशत का दूसरा नाम था डाकू पंचम सिंह। इनके उपर 100 से अधिक हत्या का आरोप लगा है। आज ये बच्चों को जीवन जीने का ज्ञान दे रहे हैं।
नालंदा [जेएनएन]। कभी चम्बल के बीहड़ में डाकू पंचम सिंह का दहशत था। लोग इनके बारे में कहानियां और किस्से सुनाते थे। आज से लगभग 4 दशक पहले इनके उपर सरकार ने 2 करोड़ रुपए का इनाम रखा था। 556 डाकुओं का सरदार और 100 से भी अधिक हत्या के आरोपी पंचम सिंह की जिंदगी आज पूरी तरह बदल चुकी है।
कहा जाता है कि महर्षि वाल्मिकी भी एक डाकू थे। लेकिन आज हर कोई जानता है कि बाद में वे एक बड़े संत बने और उन्होंने रामायण तक लिख डाला। डाकू पंचम सिंह की कहानी भी उसी तरह की है। आज वे संत बन कर बच्चों को एक बेहतर व सफल नागरिक बनने का गुर सिखा रहे हैं।
कभी अपने क्रोध की अग्नि को प्रज्ज्वलित रखने के लिए चंबल का दामन थामने वाले पंचम आज संत बन गए है। उन्होंने अपनी कहानी अपनी जुबानी सुनाते हुए कहा कि अच्छे पथ पर शांति और सुकून है। जिस व्यक्ति ने सत्य, दृढ़ निश्चय और समर्पित होकर काम किया है वो महान बना है।
उन्होंने शिक्षा के प्रति बच्चों को प्रेरित करते हुए कहा कि शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है जो हर परिस्थिति से हमें लडऩें की सीख देता है। उन्होंने कहा दस्यु से संत तक के सफर में उन्होंने कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। इस कारण आज भी सम्मानित हैं।
पंचम सिंह ने बताया कि कोई जान-बूझकर डकैत नहीं बनता। परिस्थितियां उसे मजबूर कर देती है। क्लास चार तक पढ़ाई के बाद सिर्फ 14 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। साल 1958 में पंचायत चुनाव की रंजिश के चलते दूसरी पार्टी के लोगों ने उनकी खूब पिटाई की थी। इसके बाद पंचम के पिता उन्हें बैलगाड़ी से हॉस्पिटल ले गए। इलाज के बाद जब वे वापस घर लौटे तो फिर उनके और उनके पिता से साथ मारपीट की गई।
इस घटना के बाद पंचम बदला लेने के लिए डकैतों से जाकर मिल गए और एक दिन डकैत साथियों के साथ गांव पहुंच कर छह लोगों की हत्या कर दी। इसके बाद वे चंबल के बिहड़ों में भाग गए और फिर 14 साल तक यहां डकैत के रूप में जीवन बिताया।
पंचम सिंह ने बताया कि कभी चम्बल के बीहड़ों में बन्दूक की नोक पर समानांतर सत्ता चलती थी। उनके उपर 125 से भी अधिक कत्लों का आरोप लगा है। जमींदारों के सताने पर परिवार का बदला लेने के लिए डाकू बने थे। 15 साल तक बीहड़ में उनका दहशत बना रहा। 1970 में सरकार ने उन पर 2 करोड़ रुपये का इनाम रखा था।
उन्होंने इंदिरा गांधी को भी चैलेंज कर दिया था कि आपकी सरकार बनेगी या मेरी, जिस पर इंदिरा जी नाराज हो गयी थी। उन्होंने चम्बल में बमबारी कर डाकुओं का सफाया करने का आदेश जारी कर दिया था, जिसके बाद वेश बदलकर अपना काम करने लगे।
आखिरकार इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को इनके सरेंडर कराने का जिम्मा सौंपा और उनकी पहल पर आठ मांगों की शर्त पर साथियों के साथ सरेंडर के लिए तैयार हुए। साथियों के साथ बैठक की और 1972 में आत्मसमर्पण कर दिया।
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आत्मसमर्पण के बाद खुला जेल में सजा काटने के दौरान ब्रह्म कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुख्य संचालिका जेल आयी थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें डाकुओं का मन बदलने की चुनौती दी थी। दादी जी ने प्रेरित किया तो मन बदल गया और आज राज योगी बनकर संत का जीवन जी रहे हैं।
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