पश्चिम चंपारण के वीटीआर के हाथियों को दो भाषाओं का ज्ञान, कन्नड़ व हिंदी समझते
बाघों की सुरक्षा के लिए कर्नाटक से मंगाए गए थे चार हाथी। कन्नड़ भाषा की थी जानकारी हिंदी की लगी पाठशाला। देश के टॉप टेन व्याघ्र परियोजना में शुमार वीट ...और पढ़ें

पश्चिम चंपारण, [विनोद राव]। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) में बाघों की सुरक्षा के लिए जिन हाथियों से वनकर्मी गश्त लगा रहे। उन्हें हिंदी के अलावा कन्नड़ भाषा का भी ज्ञान है।इसके लिए उन्हें दो महीने तक पाठशाला लगाई गई। तब उनकी हिंदी भाषा पर पकड़ बनी। देश के टॉप टेन व्याघ्र परियोजना में शुमार वीटीआर की सीमा उत्तर प्रदेश एवं नेपाल से लगती है। जिस कारण यह रिजर्व बेहद संवेदनशील है। यहां शिकारियों के घुसने की संभावना हमेशा बनी रहती है। बाघों की सुरक्षा के लिए यहां पैदल व हाथी गश्त का सहारा लिया जा रहा है। कर्नाटक से वीटीआर में आए चार हाथियों को यहां टूरिज्म को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी दी गई है। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के कालेश्वर स्थित हाथी शाला में गजराज के लिए हिंदी की पाठशाला चलाई गई थी। कर्नाटक से लाए गए हाथियों को हिंदी का ज्ञान दिया गया। दरअसल, ये सभी हाथी कन्नड़ भाषा समझते थे, जबकि यहां हिंदी भाषी महावत थे। इस कारण हाथियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने में परेशानी हो रही थी। ये हाथी धीरे-धीरे हिंदी समझने लगे। असम से बुलाए गए महावतों के द्वारा हाथियों को हिंदी मैं ट्रेनिंग दी गई।
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हाथियों को किया गया है प्रशिक्षित
कर्नाटक से आए हाथियों को वीटीआर में ट्रेंड किया गया है। चारों हाथी वीटीआर के माहौल में घुल-मिल गए हैं। इन्हे वीटीआर की आबोहवा रास आने लगी है। फिलहाल इन्हें वीटीआर में गश्त करने का जिम्मा मिला है। इस समय वीटीआर में कुल चार हाथी हैं। हालांकि इनसे पेट्रोलिंग का काम लिया जा रहा है। आने वाले दिनों में जब जंगल सफारी में ये हाथी शिरकत करेंगे तो सैलानी वीटीआर की हसीन वादियों का दीदार करने बड़े पैमाने पर आएंगे। महावत जितेन्द्र ने बताया, कि ''हमने हिंदी भाषा और कन्नड़ को एक साथ ही बोलना शुरू किया। धीरे-धीरे कन्नड़ में कमांड देना बंद कर दिया। हालांकि इनके ''टीचिंग का कोई फॉर्मेट नहीं है। बस बेसिक कमांड से जुड़ा रहना होता है। किसी हाथी को घूमने के लिए कन्नड़ में जहां ''सरद'' बोला जाता था, तो वहीं हिंदी में इसके लिए''चेगम''कहा जाता है। वहीं पीछे हटने के लिए हिंदी में ''हट पीछे''तथा कन्नड़ में''धाक पीछे''कहते हैं। ऐसे ही लेटने के लिए''तीयर''बोला जाता है।''
कर्नाटक से मंगाए गए थे चार हाथी
कर्नाटक में हाथी अच्छी तादाद में पाए जाते हैं। वहीं से चारों हाथियों को मंगाया गया था। हाथियों के मामले में कर्नाटक पूरे देश में तीसरे स्थान पर आता है। वहां हाथियों को टूरिज्म के साथ बहुत अच्छी तरह से जोड़ा गया है, जो सैलानियों को न सिर्फ लुभाते हैं बल्कि उन्हें देखने के लिए ही दूर दराज के पर्यटक वहां पहुंचते हैं । इस तरह से कर्नाटक के हाथियों का वीटीआर में आना कई मायनों में खास है। हाथी फुटबाल खेलने, हैंडशेक करने समेत कई अन्य तरह के करतब बेहद अच्छे से दिखाने में सक्षम हैं।
सैलानी भी कर सकेंगे भ्रमण हाथियों का प्रयोग गश्त एवं सैलानियों को भ्रमण कराने में भी किया जा सकेगा। जिससे वीटीआर में पर्यटन को पंख लगने की संभावना है। भविष्य में जब भी कहीं बाघ सहित अन्य वन्य जीवों की रेस्क्यू की बात आएगी तो इन हाथियों की मदद ली जाएगी। वीटीआर में हाथी की मौजूदगी को सैलानी एक अच्छी पहल के तौर पर देख रहे हैं। इन हाथियों के माध्यम से वीटीआर को एक नई पहचान मिली है। फिलहाल वीटीआर महकमा का पूरा ध्यान इन हाथियों की देखभाल करने और उन्हें हर खतरे से बचाने पर है, जिसके लिए पूरी ताकत से वीटीआर प्रशासन जुटा हैं।

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