हौसले को सलाम: मजदूर नहीं, अब ये कहलातीं हैं महिला राजमिस्त्री, जानिए
मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी प्रखंड की महिलाओं ने मर्दों के कंधे-से-कंधा मिलाकर चलना सीख लिया है। ये महिलाएं पीसीसी सड़क व अन्य निर्माण कार्य को सीख मजदूर से राजमिस्त्री बन गई हैं।
मुजफ्फरपुर [प्रेम शंकर मिश्र]। ग्रामीण परिवेश, ऊपर से अशिक्षा व गरीबी। मगर, कुछ अलग करने की चाहत। इसी चाह की वजह से 15 महिला मजदूर बन गईं राजमिस्त्री। अब इन्हें रोजाना डेढ़ सौ के बदले तकरीबन चार सौ रुपये मिल रहे हैं। ये अन्य महिला मजदूरों को भी इस काम में पारंगत करेंगी।
जी हां, कुढऩी प्रखंड की महंत मनियारी पंचायत की कुछ महिलाओं ने अब खुद को पुरुषों के मुकाबले खड़ा कर लिया है। मनरेगा वॉच से जुड़ीं ये महिलाएं पीसीसी सड़क व अन्य निर्माण कार्य के गुर सीख मजदूर से राजमिस्त्री बन गई हैं। डेढ़ सौ रुपये प्रतिदिन की मजदूरी को भटकने वाली ये महिलाएं तकरीबन चार सौ रुपये कमा रही हैं। अब इनके पास काम की कमी नहीं है।
इन्हीं महिलाओं में से एक मदीना कहती हैं, 'रतनौली पंचायत में पीसीसी सड़क का निर्माण हो रहा था। सोचा क्यों न निर्माण कार्य सीखा जाए? 15 महिलाओं की टीम बनी। कुछ मिक्सर मशीन पर लग गईं।
कई ने करनी उठाईं तो कई ने पाटा। फिर क्या था सड़क निर्माण पूरा होते ही सभी हो गईं ट्रेंड। इस काम के लिए कोई 'मजूरी' नहीं ली। मगर, हुनर मिल गया। अब नियमित रूप से काम मिलेगा।'
इंदू देवी कहती हैं, मनरेगा में सौ दिन काम दिया जाना है। मगर, इतना भी नहीं मिल पाता। वर्ष में बमुश्किल से 60 से 70 दिन ही काम मिल पाता है। ऐसे में परिवार चलना मुश्किल है। अब 'टेंडर' (ट्रेनिंग) मिल गया तो कुछ अच्छा कमाएंगे। किसी के मोहताज भी नहीं रहेंगे। गांव की अन्य महिलाओं को भी काम सिखाएंगे। यह सिलसिला आगे बढ़ेगा।
समूह की मंदेश्वरी देवी, सुमित्रा देवी, नीलम देवी, गुलाब देवी, सावित्री देवी, सुधा देवी, लालपरी देवी, चंद्रकला देवी, लालती देवी, अनिता देवी, देवंती देवी, मुन्नी देवी ने भी निर्माण कार्य का काम सीखा है। ये भी अन्य महिलाओं को प्रशिक्षण देंगी।
आत्मनिर्भरता के साथ भ्रष्टाचार पर भी लगाम :
मनरेगा वॉच के संजय सहनी कहते हैं, इन महिलाओं के निर्माण कार्य में जुडऩे से सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार पर भी लगाम कसने की कोशिश होगी। जिस सड़क के निर्माण के दौरान महिलाओं ने काम सीखा उसमें एक-एक चीज को बारीकी से देखा भी।
मसलन, कहीं मानक से कम मेटेरियल तो इस्तेमाल नहीं हो रहा। लंबाई व मोटाई सही है या नहीं। इससे प्राक्कलन से कम लागत में काम पूरा हो गया। साथ ही इसकी गुणवत्ता भी बेहतर है। यानी, आत्मनिर्भरता के साथ गुणवत्ता भी।
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