Sharad Purnima 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त कब है? खीर बनाकर चांदनी में रखने का क्या है महत्व?
Sharad Purnima 2025 सनातन परंपरा को मानने वालों के लिए शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इसके पीछे न केवल धार्मिक वरन वैज्ञानिक मान्यताएं भी हैं। इस वर्ष 6 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन खीर बनाकर चांदनी में रखने की विशेष परंपरा है। यह आश्विन की पूर्णिमा का दिन भी है।

डिजिटल डेस्क, मुजफ्फरपुर। अमृत की बारिश का पर्व शरद पूर्णिमा इस वर्ष 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएं हैं। सनातन परंपरा से जुड़े लोगों के लिए इसका विशेष महत्व है।
शरद पूर्णिमा का महत्व
इस बारे में आचार्य लक्ष्मण चौबे कहते हैं कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ उदित होता है। पृथ्वी पर अमृत वर्षा करता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन माता लक्ष्मी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। उनकी पूजा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
शरद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त कब है?
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्र दर्शन का शुभ समय रात 08:30 बजे से लेकर प्रातःकाल तक है। विशेष रूप से रात 11:30 बजे से 12:30 बजे का समय चंद्र पूजन और दर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दिन चंद्रोदय शाम 05:27 बजे होगा।
शरद पूर्णिमा में खीर कब रखें?
शरद पूर्णिमा पर खीर बनाकर चांदनी में रखने की परंपरा है। अगले दिन इस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का आशीर्वाद मिलता है।
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 06 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर।
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 07 अक्टूबर 2025 को सुबह 09 बजकर 16 मिनट पर।
- चंद्रोदय का समय (शरद पूर्णिमा के दिन): 06 अक्टूबर 2025 को शाम 05 बजकर 27 मिनट पर।
स्वास्थ्य और आयुर्वेदिक महत्व
आयुर्वेद के अनुसार शरद पूर्णिमा के आसपास मौसम बदलता है। यानी वर्षा ऋतु का अंत और शरद ऋतु का प्रारंभ। इस समय चंद्रमा की किरणें अत्यंत शुद्ध और शीतलता लिए होती हैं, जो शरीर और मन को शांत करने में मदद करती हैं। चांदनी में रखी गई खीर को औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है।
शरद पूर्णिमा का दूसरा नाम क्या है?
कोजागर पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा
देवी लक्ष्मी का प्राकट्य: पौराणिक कथाओं के अनुसार धन की देवी मां लक्ष्मी का जन्म समुद्र मंथन के दौरान इसी पूर्णिमा तिथि को हुआ था। इसलिए इसे मां लक्ष्मी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
'को जागृति' का अर्थ: इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। मान्यता है कि इस रात मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं और पूछती हैं, "को जागृति?" (अर्थात: कौन जाग रहा है?)। जो लोग रात भर जागकर (जागरण करके) उनकी पूजा और भक्ति करते हैं, मां लक्ष्मी उन पर अपनी विशेष कृपा और धन-समृद्धि का आशीर्वाद बरसाती हैं।
रास पूर्णिमा या महारास
ब्रज क्षेत्र और वैष्णव परंपरा में, इस दिन को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। माना जाता है कि इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में अपनी गोपियों के साथ महारास रचाया था, जो दिव्य प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।
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