मुफलिसी में जी रहा शहीद जुब्बा सहनी का परिवार, दाने-दाने को मोहताज हुई बहु
देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर शहीद जुब्बा सहनी का परिवार गरीबी में जी रहा है। दाने-दाने को मोहताज है।
पटना [जेएनएन]। 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशा होगा...।' हर साल लोग उनके शहादत दिवस पर उनकी चिताओं के पास आते हैं और उन्हें याद करते हैं। लेकिन शायद ही कोई उनके परिवार के बारे में भी सोचता है। किसी के पास यह सोचने की फुर्सत नहीं है कि देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वालों का परिवार किस तरह से जी रहा है।
11 मार्च को पूरे देश में जुब्बा सहनी की शहादत को याद किया जाएगा। घोषणाओं की बरसात होगी। लेकिन, शहीद जुब्बा सहनी के गांव चैनपुर (मुजफ्फरपुर) में स्थिति दूसरी है। शहीद की बहु मुनिया दाने-दाने को मोहताज है। उसके हाथ-पैर ने काम करना बंद कर दिया है। आखिरी सांसें गिन रही मुनिया ने खाना-पीना भी छोड़ दिया है।
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स्वतंत्रता आंदोलन में देश के लिए फांसी पर झूल जाने वाले बिहार के अमर शहीद जुब्बा साहनी के परिवार की हालत बदहाल है। उनकी बहू लगातर बीमार रह रही है। इलाज के लिए पैसे नहीं है। ऐसा नहीं है कि इस परिवार की हालत आज खराब हुई, हो सालों से इतनी हालत जस की तस है। जुब्बा साहनी के नाम पर वोट बटोरने वालों ने कभी इनके परिवार की सुध नहीं ली । परिवार का गुजारा भी जैसे तैसे चल रहा है। जब सेहत ठीक थी तो वो मजदूरी कर अपना और परिवार का पेट पाल रही थी।
मुनिया अब अपने परिवार की सबसे बड़ी सदस्य है। बीमार है। घर में इतने पैसे नहीं कि इलाज हो सके। खाना-पीना तक छोड़ चुकी हैं। स्थिति दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है। परिवार में मुनिया की बहू गीता, नाती गया और पोती रिंकू कुमारी तीनों सेवा में लगे हैं। लेकिन अब उनकी भी उम्मीद टूटने लगी है। कहते हैं, अब अम्मा नहीं बचेंगी।
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बेटे ने आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या कर लिया था
मुनिया का बेटा बिकाउ सहानी ने पैसों की तंगी से परेशान होकर पहले ही सुसाइड कर चुका है। गांव वाले बताते हैं कि उसे तंगी में अपनी बेटी के हाथ पीले करने की चिंता हमेशा सालती थी और इसी कारण उसने मौत को गले लगा लिया था
जुब्बा साहनी के नाम पर है शहर में पार्क
मुजफ्फरपुर शहर में अमर शहीद जुब्बा साहनी के नाम पर पार्क बनाया गया है पर इनके परिवार का सुध लने वाला आज कोई नहीं है। न तो प्रसाशन को इसके परिवर की कोई चिंता दिखती है न ही उन राजनेताओं को जो चुनाव के समाय वोट बैंक मजबूत करने के लिए मेंच से जुब्बा साहनी के नाम पर देश को बदलने की बात करते हैं।
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11 मार्च को है जुब्बाे साहनी का शहादत दिवस
11 मार्च को जुब्बा साहनी का शहादत दिवस मनाया जाता है। इसा दिन जुब्बा साहनी को फांसी दी गई थी । इस दिन पुरा देश उन्हें नमन करता है। जुब्बा साहनी का नाम बिहार के अग्रगण्य स्वतंत्रता सेनानियों में शुमार है। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जुब्बा साहनी ने 16 अगस्त 1942 को मीनापुर थाने के अंग्रेज इंचार्ज लियो वालर को आग में जिंदा झोंक दिया था। बाद में पकड़े जाने पर उन्हें 11मार्च 1944 को फांसी दे दी गयी।
वर्तमान में शहीद जुब्बा सहनी के भाई बांगुर सहनी की पुत्रवधू मुनिया देवी (70 वर्ष), मुनिया देवी की पुत्रवधू गीता देवी (45 वर्ष), गीता देवी का पुत्र गया सहनी (25 वर्ष) और चार नाबालिग पुत्रियां व गया सहनी की पत्नी उनके परिवार के सदस्य के रूप में शामिल हैं। गया सहनी अपने रिश्तेदार के साथ दूसरी जगह रहकर मजदूरी करते हैं। इससे परिवार का भरण-पोषण होता है।
इस बाबत मुजफ्फरपुर के डीएम धमेंद्र सिंह ने कहा था कि शहीद जुब्बा सहनी के परिवार के सदस्यों को स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी पेंशन योजना के तहत पेंशन के लिए सरकार को विशेष प्रस्ताव भेजा जाएगा। इसके साथ ही गया सहनी को रोजगार और प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ दिलाया जाएगा।
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