विप में राज्यपाल कोेटे से मनोनयन: मुजफ्फरपुर के नेताओं के 'तीर' निशाने से चूके..चूके..रे
बिहार विधानपरिषद के लिए राज्यपाल कोेटे से मनोनयन का बहुप्रतिक्षित काम भी पूरा हो गया। इसमें भी मुजफ्फरपुर को निराशा ही हाथ लगी है। इस तरह से राज्य मंत्रिमंडल में स्थान पाने की जो बची हुई उम्मीद थी वह भी धूमिल हो गई।
मुजफ्फरपुर, ऑनलाइन डेस्क। राज्यपाल कोटे से बिहार विधानपरिषद के 12 सदस्यों के मनोनयन का काम बुधवार को पूरा हो गया। इसमें भी मुजफ्फरपुर को निराशा ही हाथ लगी। इसकी वजह से घोर निराशा है। खासकर भाजपा के खेमे में, क्योंकि अपेक्षा बहुत अधिक थी। दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान नगर विधानसभा सीट पर चौंकाने वाले परिणाम सामने आने और भाजपा कोटे की जिले की दो सीटें वीआइपी को दिए जाने से जो असंतुलन कायम हो गया था, माना जा रहा था इसके माध्यम से उसकी भरपाई की कोशिश होगी। मगर, ऐसा हुआ नहीं। थोड़ी निराशा जदयू खेमें में भी देखी जा सकती है। विगत विधानसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन और चुनाव से पहले संगठन के स्तर पर मची भगदड़ के कारण कमजोर हुए संगठन को संजीवनी देने की उम्मीद पार्टी की जिला इकाई को थी।
दरअसल, विगत राज्य मंत्रिमंडल विस्तार के समय भी जिले को काफी अपेक्षाएं थीं। एनडीए के दोनों प्रमुख घटक दलों ने इस दिशा में प्रयास किया भी था, लेकिन अंतिम समय में निराशा ही हाथ लगी थी। ऐसे में इस मनोनयन से नेताओं और जिलेवासियों को काफी उम्मीदें थीं। इसमें प्रतिनिधित्व नहीं मिलने के बाद जिले के राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी तेज हो गई है कि सूबे के मंत्रिमंडल में जिले को और अधिक प्रतिनिधित्व मिलने की उम्मीद भी खत्म हो गई है।
यूं तो पार्टी आलाकमान के इस फैसले के बारे में भी दोनो प्रमुख दलों से कोई भी नेता आधिकारिक रूप से अपनी प्रतिक्रिया देने से बच रहे हैं। लेकिन, आफ द रिकॉर्ड में इन नेताओं का मानना है कि भाजपा के प्रदेश स्तर के नेतृत्व में जो विधानसभा चुनाव के बाद बदलाव हुआ है, उसके साथ स्थानीय जिला इकाई अभी खुद को समायोजित नहीं कर सकी है। यही वजह है कि जिला को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका है। देखने वाली बात होगी कि आने वाले दिनों में इस निराशा के माहौल को कैसे खत्म किया जाता है? क्योंकि भाजपा ने तो आगामी पंचायत में अपनी सक्रिय भागीदार की पूर्व में ही घोषणा कर रखी है। ऐसे में कार्यकर्ताओं के मनोबल को बनाए रखना जरूरी है।
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