खुदीराम बोस का चिताभूमि अब तक उपेक्षित, बलिदान स्थल पर नहीं जा पाते आमलोग
मुजफ्फरपुर में शहीद खुदीराम बोस से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों की स्थिति अभी भी चिंताजनक है। बलिदान के 117 वर्ष बीत जाने के बाद भी उनके बलिदान स्थल पर आम लोगों का प्रवेश नहीं हो पाता है और उनकी चिताभूमि उपेक्षित है। शहीद पार्क बनाने की योजना कागजों में ही अटकी हुई है। स्थानीय संगठन इन स्थलों के विकास के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं ।

अमरेंद्र तिवारी, मुजफ्फरपुर। अमर बलिदानी खुदीराम बोस से जुड़े ऐतिहासिक स्थल अब भी उपेक्षा के शिकार हैं। उनके बलिदान हुए 117 वर्ष बीत गए। उनके बलिदान स्थल पर आम लोग अब भी प्रवेश नहीं कर पाते। वहीं उनकी चिताभूमि भी वर्षों से उपेक्षित है। यहां शहीद पार्क बनाने की योजना कागजों में ही अटकी है।
अमर बलिदानी खुदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को करीब 19 वर्ष की उम्र में फांसी दी गई थी। उनको जहां फांसी दी गई उसका नाम अमर शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा हो गया।
इसे एक दिन के लिए उनके बलिदान दिवस पर खोला जाता है। इस दिन प्रशासनिक अधिकारियों व चुनिंदा लोगों को यहां प्रवेश मिलता है। आम लोग इसे दर्शनीय स्थल बनाने की मांग वर्षों से करते आ रहे हैं। इसे पर्यटन स्थल बनाने की मांग हो रही है।
स्थानीय संगठन कर रहे पहल
अमर शहीद खुदीराम बोस चिताभूमि बचाओ समिति के संस्थापक शशि रंजन शुक्ल ने बताया यहां पहले एक शौचालय बना दिया गया था। इसे स्थानीय लोगों ने तोड़ दिया। उनकी समिति 2012 से लगातार इस स्थल के विकास के लिए पहल कर रही है।
2014 में विकास की मांग को लेकर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री तक पत्र भेजा गया। मानव शृंखला बनाई गई और मशाल जुलूस निकाला गया, जिसके बाद प्रशासन का ध्यान इस ओर गया। समिति ने वहां पर समाधि स्थल का निर्माण कराया, जहां प्रतिवर्ष श्रद्धांजलि दी जाती है।
उन्होंने कहा श्मशान घाट की भूमि की घेराबंदी होनी चाहिए और यहां शहीद पार्क का निर्माण होना आवश्यक है। 2017 से दो-तीन साल तक जिला प्रशासन की ओर से यहां सलामी दी गई, लेकिन अब कोई अधिकारी नहीं आते। समिति और समाज के लोग ही श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
बीआरएबीयू के सीनेटर डा.शब्बीर अहमद ने बताया जदयू नेता सतीश पटेल ने खुदीराम बोस स्मारक समिति बनाकर हर साल केंद्रीय कारा में पूरी टीम के साथ श्रद्धांजलि दी।
उनकी पहल पर कंपनीबाग में अमर शहीद खुदीराम बोस व प्रफुल्लचंद चाकी की प्रतिमा स्थापित हुई, जिसका अनावरण मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया। साथ ही रेलवे जंक्शन के एक गेट का नाम खुदीराम बोस द्वार रखा गया। उनकी मांग थी कि बलिदान स्थल तक जाने के लिए अलग गेट बनाने की मांग की गई है।
अमर बलिदानी से जुड़े प्रमुख स्थल
खुदीराम बोस स्मारक स्थल पार्क रेडक्रास भवन के पास स्थित है। यहां पर खेल मैदान व पार्क है। शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा, चिताभूमि व फांसी स्थल। केंद्रीय कारा के जिस सेल में खुदीराम बोस रहे वह सेल व जहां पर फांसी हुई वह सुरक्षित है।
फांसी के बाद बूढ़ी गंडक के किनारे सोडा गोदामा चंदवारा के पास खुदीराम बोस का अंतिम संस्कार किया गया था। इस स्थान को घेरकर और रंग-रोगन करके, साथ ही उनका चित्र बनाया गया है। यहां पर उनके बलिदान दिवस पर लोग आकर श्रद्धांजलि देती हैं। पहले यहां नीम का पेड़ था जो गिर गया।
हंसते-हंसते चूम लिया था फांसी का फंदा
मुजफ्फरपुर : अमर बलिदानी खुदीराम बोस का जन्म तीन दिसंबर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ। किशोरावस्था से ही वे क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हो गए थे। वे अनुशीलन समिति से जुड़े और अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ संघर्ष में कूद पड़े।
मुजफ्फरपुर में 30 अप्रैल 1908 को उन्होंने साथी प्रफुल्ल चाकी के साथ अंग्रेज जज किंग्सफोर्ड को मारने के उद्देश्य से बम हमला किया। हालांकि गाड़ी में जज की जगह दो अंग्रेज महिलाएं थीं, जिनकी मृत्यु हो गई। घटना के बाद खुदीराम को गिरफ्तार किया गया। उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। उन्होंने हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया। उनका यह बलिदान युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया।
बलिदानी खुदीराम बोस स्वतंत्रता आंदोलन में युवाओं के क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा स्रोत रहे। बलिदान स्थल समेत उनसे जुड़े स्थलों को विकसित किया जाएगा।
डा.राजभूषण चौधरी, जल शक्ति मंत्री एवं मुजफ्फरपुर सांसद
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