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    Muzaffarpur News: भारतीय बच्चों को गोद लेने के लिए विदेशी उत्सुक, कतार में इन देशों के माता-पिता

    By meera kumariEdited By: Ajit kumar
    Updated: Thu, 03 Jul 2025 03:56 PM (IST)

    Muzaffarpur News उत्तर बिहार के अनाथ बच्चों को विदेशी माता-पिता का प्यार मिल रहा है। पिछले सात वर्षों में 45 बच्चों को अमेरिका इटली सऊदी अरब जैसे देशों के दंपतियों ने गोद लिया है। इन बच्चों को जाति धर्म से ऊपर उठकर अपनाया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय बच्चे जेनेटिकली ब्राइट होते हैं जिसके कारण विदेशी दंपतियों में इन्हें गोद लेने की रुचि बढ़ी है।

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    समस्तीपुर के सामाजिक सुरक्षा कोषांग के सहायक निदेशक से बच्चा ग्रहण करते अमेरिकी दंपती। फाइल फोटो

    मीरा सिंह, मुजफ्फरपुर। जिस बचपन को अपनों ने ठुकरा दिया। उसे विदेशी माताओं की ममता सींच रही। लोग जहां विदेश की धरती पर पैर रखने के सपने देखते हैं, वहीं विदेशी धरा पर इनका बचपन अपनी किस्मत पर खिलखिला रहा है। जाति, धर्म, रंग-भेद से ऊपर उठकर विदेशी दंपती इन बच्चों को गोद लेने को आगे बढ़ रहे हैं।

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    विदेशी माता-पिता की छांव

    कल तक जो बच्चे अपनी पहचान को मोहताज थे, आज विदेशी माता-पिता की छांव में उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर हैं। उत्तर बिहार के विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्थानों से बीते सात वर्षों में 45 बच्चे विदेशी दंपत्तियों की गोद में डाले गए हैं। इन बच्चों को अमेरिका, इटली, सऊदी अरब, फ्रांस, स्पेन, कतर, सिंगापुर और जार्जिया ने गले लगाया है। कई कतार में हैं।

    छह बच्चे विदेश भेजे गए

    भारतीय बच्चों को गोद लेने के लिए विदेशी कितने ख्वाहिशमंद रहते हैं, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि मुजफ्फरपुर के खबरा स्थित विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्थान से 2016 से अब तक छह बच्चे विदेशी धरा पर भेजे गए। इनमें दो बच्चे अमेरिका, दो इटली, एक कतर और एक सिंगापुर के दंपती ने अपनाया है।

    मधुबनी के तीन बच्चें को विदेशी ने गोद लिया

    समस्तीपुर से अभी तक अमेरिका के साथ इटली, फ्रांस, अरब और स्पेन के नागरिकों ने बच्चों को गोद लेने का आवेदन किया है। अब तक स्पेन में चार, फ्रांस में दो और अमेरिका, अरब व इटली में एक-एक बच्चे गए हैं। मधुबनी से तीन बच्चों को विदेशी दंपती ने गोद लिया।

    पश्चिम चंपारण से 18 बच्चे गए

    इसी तरह पूर्वी चंपारण के तीन बच्चों को जार्जिया, मलेशिया व स्पेन के दंपती ने अपनी ममता की छांव दी। सीतामढ़ी से छह बच्चे जार्जिया, कोलोराडो व जर्जिया गए। वहीं, पश्चिम चंपारण से 18 बच्चे गए हैं। इन्हें यूएसए, लग्जमबर्ग, स्पेन, इटली, कनाडा, बहरीन व अरब के दंपत्तियों ने अपनाया है।

    जेनेटिकली ब्राइट होते हैं भारतीय बच्चे

    डा. भीमराव आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के समाजशास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो. आर्य प्रिया कहते हैं कि विदेशी दंपती द्वारा अनाथ बच्चों को गोद लेना सराहनीय कदम है। भारतीय बच्चों की तरफ विदेशी दंपती के आकर्षण के पीछे कई कारण हैं। एक तो यहां बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया विदेश के मुकाबले थोड़ी सरल है।

    बच्चों ने अपनी मेधा से पहचान बनाई

    दूसरा यहां अनाथ बच्चों की संख्या भी ज्यादा है। इन सबसे इतर सबसे बड़ा कारण जेनेटिकली ब्राइट होना है। समाजशास्त्र की भाषा में इसे न्यूरो सोसियोलाजी कहते हैं। भारतीय बच्चों ने विदेश में हर क्षेत्र में अपनी मेधा से पहचान बनाई है। इससे भारतीय बच्चों के प्रति पश्चिमी देशों में आकर्षण बढ़ा है।

    बच्चा सौंपने से पहले तैयार होती होम स्टडी रिपोर्ट

    समस्तीपुर विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्थान के सौरभ कुमार बताते हैं कि बच्चे को गोद लेने के की प्रक्रिया को सरकार ने काफी सरल बना दिया है। इसके लिए इच्छुक दंपती दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भारत सरकार की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।

    कोर्ट में आवेदन देना जरूरी

    रजिस्ट्रेशन के बाद एजेंसी के सदस्य संबंधित दंपती की पूरी होम स्टडी रिपोर्ट तैयार करते हैं। इसके बाद उसे कारा की साइट पर अपलोड किया जाता है। इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद दंपती से बच्चे का मिलान कराया जाता है। उसके बाद उन्हें बच्चा प्री एडाप्शन में दिया जाता है। फिर कोर्ट में आवेदन देकर कानूनी रूप से बच्चे को उन्हें सौंप दिया जाता है। गोद लेने वाले दंपती बच्चे की परवरिश किस तरह कर रहे हैं संस्था की इस पर भी नजर रहती है।