Updated: Mon, 15 Sep 2025 03:22 PM (IST)
1967 में सूर्यगढ़ा से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के भागवत प्रसाद मेहता मात्र 2500 रुपये में विधायक बने थे। उन्होंने जीप किराया ईंधन और चार कार्यालयों पर खर्च किया। मेहता के अनुसार पहले नेता जनसेवा के लिए चुनाव लड़ते थे पर अब धनोपार्जन के लिए। राजनीति शास्त्र में एमए करने के बाद उन्होंने प्रोफेसर की नौकरी छोड़ चुनाव लड़ा था।
संवाद सहयोगी, लखीसराय। सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार भागवत प्रसाद मेहता मात्र 2,500 रुपये (दो हजार पांच सौ रुपये) खर्च कर विधायक बन गए थे। वर्तमान परिदृश्य में यह सुनने में भले ही अटपटा एवं आश्चर्यजनक प्रतीत होता है परंतु यह सोलह आने सच है। चुनाव खर्च के नाम पर भागवत प्रसाद मेहता ने एक जीप का किराया, उसके ईंधन तथा चार चुनाव कार्यालय पर ही राशि खर्च की।
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वर्ष 1967 में सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल करने वाले भागवत प्रसाद मेहता अपने समय के चुनावी खर्च को याद कर वर्तमान को कोसने लगते हैं।
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उन्होंने बताया कि उनके समय के नेता जनसेवा एवं क्षेत्र के विकास का संकल्प लेकर चुनाव लड़ते थे, परंतु वर्तमान समय के नेता धनोपार्जन के उद्देश्य से चुनाव लड़ते हैं। यही कारण है कि चुनाव में खर्च की कोई सीमा ही नहीं रह गई है। वर्तमान समय में उम्मीदवार चुनाव में करोड़ों रुपये खर्च करते हैं।
उन्होंने बताया कि राजनीति शास्त्र से एमए करने के बाद वे चतरा (झारखंड) स्थित शंकर दयाल सिंह कॉलेज में प्रोफेसर थे। उस समय काफी कम वेतन मिलता था। इस कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी। घर आने के बाद वे विधानसभा का चुनाव लड़ने की ठान ली। वर्ष 1962 में वे राजा गोपालाचार्या की स्वतंत्र पार्टी से सूर्यगढ़ा विधानसभा से चुनाव लड़े जिसमें उनकी हार हो गई।
कांग्रेस के राजेश्वरी प्रसाद सिंह की जीत हुई। वर्ष 1964 में मुंगेर लोकसभा चुनाव में उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार मधु लिमये के लिए काम किया। इसी दौरान वे जमुई के श्री कृष्ण सिंह के संपर्क में आए। वर्ष 1967 में श्री कृष्ण सिंह ने उन्हें पटना बुलाकर बताया कि उन्हें सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का उम्मीदवार बनाया जा रहा है।
य ह सुनते ही वे आश्चर्यचकित हो गए परंतु ऐन मौके पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने भाकपा को समर्थन देने की जिद पकड़ ली। उन्हें बहुत दुख हुआ परंतु वे निराश नहीं हुए। फिर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर वे चुनाव मैदान में कूद गए। उन्हें कार्यालय से ही पोस्टर एवं पंपलेट आदि मिल गया। नामांकन कराने के बाद चुनाव प्रचार के लिए उन्होंने किराए पर एक जीप ली।
इसके अलावा पूरे विधानसभा क्षेत्र में चार चुनाव कार्यालय खोला। उस समय दस रुपये में एक गैलन पेट्रोल तथा दस रुपये मन चावल मिलता था। जीप का किराया, पेट्रोल एवं चुनाव कार्यालय में रहने वाले कार्यकर्ताओं के खाना के लिए चावल, दाल आदि पर राशि खर्च हुई। उस समय के कार्यकर्ताओं में पैसे की भूख नहीं होती थी बल्कि अपने प्रत्याशी को जीत दिलाने की ललक होती थी। यही कारण है कि कार्यकर्ता पैदल घूम-घूमकर चुनाव प्रचार करते थे।
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