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    बिहार में खेत की खोदाई में मिलीं भगवान बुद्ध की 1000 साल पुरानी दो प्राचीन मूर्तियां, यहां जानें क्या है खास बात?

    Updated: Tue, 29 Apr 2025 09:23 PM (IST)

    Bihar News Hindi बिहार के लखीसराय के कबैया क्षेत्र में खेत की खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध की दो प्राचीन मूर्तियाँ मिली हैं। काले पत्थर से बनी ये मूर्तियां पाल काल का प्रतिनिधित्व करती हैं। दोनों मूर्तियाँ ललितासन में धम्मचक्र प्रवर्तन की उपदेश मुद्रा में हैं। इन्हें ठाकुरबाड़ी में सुरक्षित रखा गया है और जल्द ही लखीसराय संग्रहालय लाया जाएगा।

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    खेत की खोदाई में मिलीं भगवान बुद्ध की दो प्राचीन मूर्तियां

    संवाद सहयोगी, लखीसराय। लखीसराय शहर के कबैया क्षेत्र में खेत की खोदाई के दौरान भगवान बुद्ध की दो मूर्तियां मिलीं। काले पत्थर से बनीं दोनों मूर्तियां पाल काल का प्रतिनिधित्व करती हैं।

    दोनों मूर्तियों का आकार और स्वरूप एकसमान है। ये करीब तीन फीट लंबी और सवा दो फीट चौड़ी हैं। इनमें भगवान बुद्ध ललितासन में धम्मचक्र प्रवर्तन की उपदेश मुद्रा में हैं। 

    स्थानीय लोगों के अनुसार वार्ड-32 कबैया मोहल्ला से सटे किऊल नदी तट किनारे विनायक कुमार बिट्टू के खेत में जेसीबी की सहायता से मिट्टी निकाली जा रही थी। इसी दौरान भगवान बुद्ध की दोनों मूर्तियां मिलीं।

    एक मूर्ति में भगवान बुद्ध का एक हाथ क्षतिग्रस्त है। जिस जगह पर मूर्तियां मिली हैं, उस जगह से राजकीय पुरास्थल लाली पहाड़ी काफी नजदीक है। यह पहाड़ी बौद्ध विहार के रूप में चिह्नित है।

    सूचना मिलने पर पहुंचे कबैया थानाध्यक्ष अमित कुमार ने तत्काल दोनों मूर्तियों को हसनपुर गांव स्थित ठाकुरबाड़ी में सुरक्षित रखवा दिया।

    लखीसराय संग्रहालय अध्यक्ष डॉ. सुधीर कुमार यादव ने बताया कि खोदाई में मिली दोनों मूर्तियों में भगवान बुद्ध धम्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा में हैं। दोनों मूर्तियों को ठाकुरबाड़ी से संग्रहालय लाया जाएगा।

    इसके लिए अनुमंडल पदाधिकारी से बात हुई है। वहीं, भागलपुर के पूर्व संग्रहालय अध्यक्ष और मूर्ति विशेषज्ञ ओपी पांडेय का कहना है कि ये दोनों मूर्तियां पाल शासक देवपाल (लगभग नौवीं-दसवीं सदी) के समय की प्रतीत हो रही हैं।

    बुद्ध की ललितासन में धम्मचक्र प्रवर्तन की उपदेश मुद्रा, पैरों के पास कमल और सिर पर उष्णीष इनकी विशेषता है। 

    क्या है धम्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा

    धम्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा भगवान बुद्ध का सारनाथ में दिए पहले उपदेश का प्रतीक रूप है। इसमें दोनों हाथों को वक्ष के सामने रखा जाता है, बाएं हाथ का हिस्सा अंदर की ओर और दाएं हाथ का हिस्सा बाहर की ओर रहता है। दोनों हाथों का अंगूठा और तर्जनी एक वृत्त बनाने के लिए स्पर्श करते हैं, जो धम्म चक्र का प्रतीक है।

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