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    Bihar Politics: इस बार सीमांचल में दिलचस्प होगा मुकाबला, महागठबंधन का खेल बिगाड़ेगी PK की जनसुराज?

    Updated: Mon, 14 Jul 2025 05:38 PM (IST)

    किशनगंज में आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी तेज है। एनडीए और महागठबंधन के बीच एआईएमआईएम के प्रवेश ने खेल बदल दिया है। अब प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी समेत कई छोटी पार्टियां मैदान में हैं जो महागठबंधन का खेल बिगाड़ सकती हैं। इन पार्टियों की वजह से चुनावी समीकरण प्रभावित होने की संभावना है। देखना होगा कि ये पार्टियां मतदाताओं को कितना प्रभावित कर पाती हैं।

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    सीमांचल में विधानसभा चुनाव में चौथा कोण बनकर मैदान में उतरेगा जनसुराज। (जागरण)

    चन्द्र भूषण सिंह, बहादुरगंज (किशनगंज)। मतदाता विशेष पुनरीक्षण के बीच बिहार विधानसभा चुनाव की तपिश गर्म है। कई दशक तक एनडीए एवं महागठबंधन के ईद-गिर्द राजनीतिक खेल के बीच पिछले विधानसभा चुनाव 2020 में एआईएमआईएम का सीमांचल में पदार्पण हुआ।

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    जहां महागठबंधन का खेल बिगाड़ते हुए सीमांचल के पांच सीटों पर सफलता अर्जित की। उनके चार विधायक बाद में महागठबंधन के राजद के साथ जा मिले। वहीं, इस बार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एक ओर जहां बड़े दल सीटों के बंटवारे को लेकर अब तक अंतिम निर्णय नहीं कर पाए हैं।

    वहीं, छोटी-छोटी राजनीतिक पार्टियां बिहार के 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर महागठबंधन का खेल बिगाड़ने पर आमदा हैं। जिसमें असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम, प्रशांत किशोर की जनसुराज, पशुपति पारस की एलजेपी सहित शिवदीप लांडे की हिन्द सेना, मायावती की बहुजन समाज पार्टी, अरविंद केजरीवाल की आप जैसी पार्टी शामिल है।

    लोगों की जुबान पर पहुंच रहा जनसुराज का नाम

    सीमांचल में एआईएमआईएम अपना पैर जमा चुकी है। वहीं, जनसुराज पार्टी की चर्चा भी धीरे-धीरे गांवों तक पहुंचने लगी है। ऐसे में क्या प्रशांत किशोर की पार्टी सीमांचल में चौथा राजनीतिक पार्टी धीरे-धीरे लोगों के जुबान पर तैरने लगा है।

    यदि देखा जाय तो सीमांचल के किशनगंज जिला जो मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण अबतक एनडीए को आशा अनुरूप अभी तक सफलता नहीं मिली है। वर्ष 1995 के विधान सभा चुनाव में अपवाद के रूप में बहादुरगंज से अवध बिहारी सिंह एवं ठाकुरगंज से सिकन्दर सिंह जरूर जीत गए। मगर मुसलमानों के लिए इतना काम करने के बावजूद नीतीश कुमार की जदयू और एनडीए गठबंधन अब तक किशनगंज जिला के किसी भी सीट पर कभी सफलता नहीं मिली है।

    ओवैसी की पार्टी का दबदबा

    उधर पिछली बार परिवर्तन के हवा में महागठबंधन एवं एनडीए को मात देते हुए असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल के कुल पांच सीटों पर सफलता अर्जित की, जिसमें से किशनगंज का बहादुरगंज एवं कोचाधामन विधानसभा सीट भी शामिल है।

    मगर विधानसभा चुनाव बाद बिहार में तत्काल महागठबंधन की सरकार नहीं बन पाने के कारण मुसलमानों को काफी अफसोस करना पड़ा था। वहीं, इस बार फिर चुनावी सरगर्मी तेज होने लगी है।

    पहली बार निर्दलीय विधायक बन विधानसभा पहुंचे तौसीफ आलम बाद में तीन बार कांग्रेस के भी विधायक रहे। इस बार पाला बदलकर पतंग के सहारे विधान सभा का उड़ान भरना चाहते हैं।

    वहीं, महागठबंधन की ओर से वर्तमान राजद विधायक अंजार नईमी अपने कुशल व्यवहार एवं क्षेत्र में किये कार्यों के बदौलत फिर से विधानसभा पहुंच कर एनडीए को बिहार से बेदखल कर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का हुंकार भर रहे हैं।

    उपचुनाव में बिगाड़ा खेल

    वहीं, दो साल तक लंबी पदयात्रा के बाद प्रशांत किशोर जनसुराज पार्टी बनाकर चार सीटों पर हुए उपचुनाव में अपना प्रत्याशी उतारा। जहां दस प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल हुए। जनसुराज चुनाव जीतने में सफल नहीं हो पाई। मगर चुनावी समीकरण बिगाड़ने के कारण एनडीए ने चारों सीटों पर बाजी जरूर मार लिए।

    जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर लोगों को अपने बच्चों को शिक्षा एवं रोजगार दिलाने के लिए वोट देने की बात करते हैं। आगामी 15 जुलाई को प्रशांत किशोर बिहार बदलाव सभा के तहत बहादुरगंज में आम सभा करने जा रहे हैं।

    इस मुस्लिम बाहुल्य इलाके में वे लोगों को अपनी बातों से कितना प्रभावित कर आने वाले दिनों में वोट के रूप में तब्दील कर पाएंगे, यह तो समय ही बताएगा।

    भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का गृह जिला है किशनगंज

    वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप जायसवाल का गृह जिला किशनगंज होने के कारण सीमांचल सहित खास किशनगंज में भाजपा ही नहीं एनडीए के जीत हार पर विशेष ध्यान रहेगा।

    उधर, शिवदीप लांडे का हिन्द सेना, पशुपति पारस की एलजेपी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी, मुकेश सहनी की वीआईपी सहित अन्य किसी भी पार्टी का उस रूप में क्षेत्र में चर्चा अब तक नहीं है।

    वैसे बिहार में महागठबंधन और एनडीए के बीच ही मुख्य रूप से चुनावी टक्कर होने की संभावना है। मगर ये छोटी-छोटी पार्टियां चुनावी परिणाम को प्रभावित कर सकती हैं।

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