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    बांग्लादेश में हो रही हिंसा से परेशान नेपालगढ़वासी, रिश्तेदारों की हो रही है चिंता

    Updated: Thu, 25 Dec 2025 02:27 PM (IST)

    किशनगंज के नेपालगढ़ में रहने वाले लोग बांग्लादेश में हिंसा के कारण चिंतित हैं। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बांग्लादेश से आए हिंदू परिवारों को ...और पढ़ें

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    बांग्लादेश में फैली है हिंसा। (जागरण)

    सुभजीत शेखर, किशनगंज। बांग्लादेश में पिछले सप्ताह से जारी हिंसा व हिंदू युवक की हत्या के बाद शहर के नेपालगढ़ में रह रहे लोग बांग्लादेश में रह रहे अपने रिश्तेदारों के लिए काफी चिंतित हैं।

    पिछले कई दिनों से उनका फोन पर संपर्क नहीं हो रहा है। जिस कारण यहां रह रहे लोग हिंदुओं पर हो रहे हिंसा से परेशान हैं।

    बांग्लादेश के लोगों को किशनगंज में किया गया था पुर्नवासित

    शहर के नेपालगढ़ कॉलोनी में 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद से ही बांग्लादेश से हिंदू पलायन कर भारत में प्रवेश किए थे। विभिन्न कैंपों में रहने के बाद सरकार ने शहर के नेपालगढ़ कॉलोनी में शरणार्थी के तौर पर बांग्लादेश से आए लोगों को रहने के लिए पुनर्वासित कर रोजगार के लिए उस समय ऋण तक मुहैया कराया था।

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    हालांकि, इनके कई रिश्तेदार आज भी बांग्लादेश में रह रहे हैं। इनलोगों का रिश्तेदार के घर आना-जाना तो कम होता है। लेकिन अक्सर फोन पर उनकी बातचीत कर लोग हालचाल लेते रहते थे। लेकिन बांग्लादेश में हो रही हिंसा के बाद अपने रिश्तेदारों से संपर्क नहीं कर पाने से काफी परेशान हैं।

    क्या कहते हैं स्वजन

    नेपालगढ़ कॉलोनी शक्ति दत्त ने बताया उनका जन्म स्थान बांग्लादेश के कोमिल्ला जिला में हुआ था। जब आठ साल के साथ तो पिता धीरेष चंद्र दत्त व मां हेमा प्रभा दत्त के साथ 1964 में बांग्लादेश से भाग कर भारत में शरणार्थी के तौर पर आए थे। त्रिपुरा के फूल कुमारी कैंप में शरणार्थी के तौर पर रहने के बाद 1965 में सहरसा के शरणार्थी कैंप में भेज दिया गया था।

    वहां से 1967 में पूर्णिया व 1969 को किशनगंज भेज दिया गया। उनलोगों का पुनर्वास कराया और आज सभी भारतीय नागरिकता प्राप्त कर चुके हैं।

    शक्ति दत्ता ने बताया कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार पहले से हो रहा है। किसी हिंसा को लेकर हिंदुओं को टारगेट किया जाता है। उन्होंने बताया उनका कई रिश्तेदार बांग्लादेश में है उनके मामा का घर भी बांग्लादेश में है।

    दरअसल, त्रिपुरा से 16 किलोमीटर की दूरी पर कोमिला जिला के मोहनपुर में पूरा परिवार रहता था। लेकिन उनलोगों से इन दिनों संपर्क नहीं हो रहा है। 82 वर्ष के शोलोबाला भट्टाचार्य बताती है उनका जन्म पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश में हुआ था। बांग्लादेश आजाद होने से पहले पश्चिमी पाकिस्तान पूर्वी पाकिस्तान पर शासन करता था और उस समय हिंदुओं को परेशान किया जाता था।

    उनके घर में आग लगा दिया जाता था। 12 साल की उम्र में पूरे परिवार के साथ भारत आ गये थे। बताया मेरे कई रिश्तेदार बांग्लादेश में रहते हैं लेकिन पहले चिट्ठी आना-जाना होता था। फिर कभी-कभी फोन में बात होता था लेकिन कई दिनों से संपर्क नहीं हुआ है।

    उन्होंने बताया कि वर्तमान में बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार बढ़ गया है। चितरंजन शर्मा ने बताया उनके दादा सूर्यकांत शर्मा 1965 में बांग्लादेश से भाग कर भारत आए थे। उनके बुआ का लड़का बांग्लादेश के रतनपुर हबीबगंज सबडिवीजन सिलेट जिला में रहता है। कुछ दिनों पूर्व बात हुई थी। लेकिन अभी संपर्क नहीं हो रहा है।

    स्थनीय लोगों ने रखा नेपालगढ़ कॉलोनी

    स्थानीय लोगों ने बताया कि उनलोगों को जब पुर्नवासित किया गया था उस समय इसे रिफ्युजी कॉलोनी कहा जाता था। लेकिन किशनगंज में सभी समुदाय के लोग रहते हैं। जब वो लोग भारत के नागरिक हो गये तो उनलोगों ने खुद यहां का नाम नेपालगढ़ कॉलोनी रखा था।

    अब सरकारी दस्तावेज में भी इसे नेपालगढ़ कॉलोनी कहा जाता है। बताया जाता है कि उस समय नेपालगढ़ कॉलोनी में बांग्लादेश की सिलेट जिला, चट्टग्राम, ढाका,जसोर, दिनाजपुर सहित कई जगह से शरणार्थी किशनगंज आए थे।