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    प्राकृतिक संसाधनों के दोहन रोकने को ठोस कदम आवश्यक

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    Updated: Fri, 20 Apr 2012 08:03 PM (IST)

    किशनगंज, जाप्र : प्राकृतिक संसाधन दिए जल, वायु ,मिट्टी पर्वत, नदी, झील, झरना, सागर खनिज सम्पदा वन सम्पदा आदि के दोहन रोकने से ही कल्याण संभव है। बालू एवं पत्थर के अवैध उत्खनन, जल सम्पदा का दुरुपयोग, नदियों को बांधने की प्रक्रिया परिणाम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। बढ़ती आबादी एवं नित्य कुकुरमुत्ते की भांति उभर रहे उद्योग कल कारखानों एवं बड़ी बड़ी नदी योजनाओं को कार्य रूप दिया जा रहा है। वनों को काटकर आबादी बसाई जा रही है। पहाड़ों को काट कर पत्थर खनन किया जा रहा है। मिट्टी को अधिकाधिक उपजाऊ बनाने के लिए रसायनिक खादों का कर रहे हैं प्रयोग करने से मिट्टी दूषित हो रही है। अवैध ईट भट्टों, विद्युत तापगृहों से जिस प्रकार केन्द्रों की जहरीली गैस का उत्सर्जन हो रहा है उससे वायु मंडल प्रदूषित होता जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का ही परिणाम है कि कई जीव जंतु विलुप्त होते जा रहे हैं कहीं नदियां सुखती जा रही है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित हो रही है तो कहीं नदियां अनियंत्रित होती जा रही है। पर्वत दरकते जा रहे हैं। भू स्खलन हो रहा है। कहीं सुनामी का कहर दिखाई पड़ता है तो कहीं तूफान का तो कहीं भूकंप का। आबादी पर हो रहे नियंत्रण, वनों के उन्मूलन पर लगे कड़ी रोक, वनों को विस्तारित करने पर दिया जाय विशेष ध्यान, मिट्टी संरक्षण हेतु रसायनिक खादों का उपयोग बंद करने, जैविक एवं हरित खाद का हो अधिकाधिक उपयोग, जहरीली गैस के उत्सर्जन पर रोक, उपकरण पत्थरों एवं बालू का अबाधित उत्खनन पर हो नियंत्रण विलुप्त हो रहे जीव जंतुओं के पोषण एवं संरक्षण पर दिया जाय।

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