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    Fisheries: खगड़िया में बढ़ेगा मछलियों का व्यापार, 3 लाख मछुआरों की बदल जाएगी किस्मत; सरकार ने निकाली गजब की योजना

    खगड़िया जिले में नदी पुनर्स्थापन कार्यक्रम शुरू किया गया है जो नदियों की स्वच्छता और मछुआरों के लिए जीविका के अवसर प्रदान करने पर केंद्रित है। इससे नदियों की गुणवत्ता में सुधार होगा मछली उत्पादन बढ़ेगा और मछुआरों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। जिले में लगभग 3 लाख मछुआरे हैं और 7 मत्स्यजीवी सहयोग समितियां हैं जिनके 35000 सदस्य हैं।

    By Amit Jha Edited By: Mukul Kumar Updated: Tue, 17 Dec 2024 06:02 PM (IST)
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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

    जागरण संवाददाता, खगड़िया। सरकारी स्तर पर प्राकृतिक जल संपदा को बचाने, मछुआरों काे जीविका का साधन उपलब्ध कराने और विलुप्त हो रही मछलियों के पुनर्स्थापन को लेकर आरंभ की गई नदी तंत्र में नदी पुनर्स्थापन कार्यक्रम जिले की नदियों के साथ-साथ मछुआरों के लिए वरदान से कम नहीं है।

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    इससे जहां नदियां निर्मल होगी, वहीं मछली उत्पादन बढ़ने और मछुआरों को जीविका का साधन जुटाने में सुलभता होगी। जिससे इनका पलायन भी कुछ हद तक रुकेगा।

    खगड़िया जिले में मछुआरों की आबादी तीन लाख है। सात मत्स्यजीवी सहयोग समितियां हैं। जिसके सदस्यों की संख्या लगभग 35 हजार है। जिले में सालाना 36 हजार मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन होता है।

    गंगा, बूढ़ी गंडक और बागमती में गिराए गए मत्स्य अंगुलिकाएं

    • रिवर रैंचिंग कार्यक्रम के तहत खगड़िया में चयनित गंगा, बागमती और बूढ़ी गंडक में मत्स्य अंगुलिकाएं मतलब जीरा गिराए गए हैं। गत वर्ष भी जिले के विभिन्न नदियों में योजना के तहत 12 लाख 82 हजार मत्स्य अंगुलिकाएं गिराए गए थे।
    • इस वर्ष यह कार्य जारी है। विभागीय स्तर पर इस बार लक्ष्य के अनुसार 11 लाख 46 हजार मत्स्य अंगुलिकाएं नदियों में गिराए गए हैं। जबकि विभिन्न हैचरी द्वारा 77 हजार अंगुलिकाएं गिराए गए हैं।

    लुप्त हो रही देसी मछलियों की संख्या बढ़ेगी

    योजना के तहत लुप्त हो रही देसी मछलियों की संख्या बढ़ानी है। जो नदियों को शुद्ध करने में सक्षम होती है। योजना के तहत मत्स्य अंगुलिकाएं गिराने से धीरे-धीरे ये प्रजनक के रूप में विकसित होंगे।

    नदियों में मछलियों की संख्या बढ़ेगी। इससे मछुआरों के रोजगार में जहां वृद्धि होगी, वहीं नदी पर्यावरण के संरक्षण-संवर्धन को बल मिलेगा। बाहर की मछली पर निर्भरता में कमी आएगी।

    रेहू, कतला व नैनी प्रजाति की मछलियां नदी के तल में जमे कचरे को साफ करती हैं

    सरकारी स्तर पर चलाई जा रही रिवर रैंचिंग कार्यक्रम के कई स्तर पर फायदे हैं। नदियों में प्रदूषण कम करने के साथ मत्स्य जैव संतुलन बनाने का प्रयास करना है। विलुप्त हो रही मछलियों व प्राकृतिक जल संपदा का संरक्षण भी उद्देश्य है। नदियों में मछली के प्रजनन दर को बढ़ाना है। ताकि इसकी संख्या निरंतर बढ़ती रहे।

    आठ से 10 वर्ष तक नदियों में जीरा गिराए जाने की योजना है। ताकि नए जीरे के साथ पूर्व की मछलियों के प्रजनन होने से संख्या निरंतर बढ़ती रहे। विशेषज्ञों के अनुसार रेहू, कतला व नैनी प्रजाति की मछलियां नदी के तल में जमे कचरे को साफ करती है। जो भी खतरनाक गैसें कचरे में दबी होती है, वह बुलबुला बनकर बाहर निकल जाती हैं।

    नाइट्रोजन सहित अन्य गैसों को पानी में घुलने से रोकती है। मछलियां कचरों को भोजन के रूप में ग्रहण कर साफ करती है। जिससे कचरे खत्म होते हैं। इन मछलियों की संख्या बढ़ने के साथ नदियां भी निर्मल बनेगी।

    रिवर रैंचिंग कार्यक्रम विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति को लेकर आरंभ की गई है। उद्देश्य है कि नदियों में मछलियों की संख्या बढ़े। मछलियों की संख्या बढ़ने से नदियों का प्रदूषण कम होगा। प्रदूषण कम होने से मछली के साथ अन्य जलीय जीवों का संरक्षण होगा। जैव मत्स्य संतुलन बनेगा। अगुवानी गंगा डाल्फिन क्षेत्र है। इससे डाल्फिनों का भी संरक्षण होगा। मछुआरों को मछलियां आसानी से उपलब्ध हो सकेगी। जिससे उनके आय में वृद्धि होगी।-लाल बहादुर साफी, जिला मत्स्य पालन पदाधिकारी खगड़िया।

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