Updated: Wed, 08 Oct 2025 03:36 PM (IST)
कटिहार के कदवा विधानसभा से 1980 में निर्दलीय विधायक बने मांगन इंसान एक ईमानदार नेता थे। वे गरीबों के लिए आवाज उठाते थे। 1972 में मुखिया बनने के बाद भी उनके परिवार ने मजदूरी की। 1980 में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को हराया। वे गले में टीन टांगकर चुनाव प्रचार करते थे। 1980 में वे 36 वोटों से जीते थे। विधायक बनने के बाद भी उनका रहन-सहन सरल था।
संजीव मिश्रा, कदवा(कटिहार)। कदवा विधानसभा से 1980 में निर्दलीय चुनाव जीते मांगन इंसान का गरीबों के प्रति आवाज उठाने वाले ईमानदार एवं फक्कड़ स्वभाव के नेता की पहचान रही।
उनकी ईमानदारी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 1972 में उनसो पचागाछी पंचायत से मुखिया का चुनाव जितने के बाद भी उसकी पत्नी एवं बच्चे झौआ रेलवे पुल निर्माण के समय एप्रोच बनाने में मजदूरी करते थे।
पहली बार उन्होंने कदवा विधानसभा से 1977 में निर्दलीय चुनाव लड़ कर दूसरे स्थान पर रहे थे, फिर 1980 में बतौर निर्दलीय मैदान में उतरे और कांग्रेस प्रत्याशी को पराजित कर जीत का परचम लहराया।
अनोखा चुनाव प्रचार
कम पढ़ा लिखा होने के बाद भी बेबाकी से बोलने में स्व. मांगन इंसान को महारत हासिल था। वे गले में टीन टांग कर चुनाव प्रचार में नंगे पैर पैदल निकल जाते थे। हाथ में टीन की बनी भोंपू से लोगों के समक्ष अपनी बात रखते थे।
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खासकर वे सभा करने की बजाय खेतों में काम करने वाले मजदूरों एवं किसानों के बीच पहुंच कर अपनी बात रखते थे। वहीं गांव की गलियों में गुजरते हुए गले में टंगी टिन को बजा कर लोगों को इकठ्ठा करते थे।
जनता को उनका प्रचार का ढंग खूब भाया था। लोग उन्हें चुनाव खर्च के लिए बिन मांगे चंदा देते थे। आज भी चुनाव के समय क्षेत्र में इस बात कि चर्चा खूब होती है।
36 वोटों से जीते थे चुनाव
1980 में उनका मुकाबला कांग्रेस के प्रत्याशी प्रोफेसर उस्मान गनी से हुआ। बताया जा रहा है कि चुनाव मतगणना में धांधली कर उन्हें पराजित कर कांग्रेस प्रत्याशी को विजय घोषित कर दिया गया था।
इस बात को लेकर मतदान केंद्र पर जम कर बवाल हुआ था। स्व इंसान का साथ उस समय काउंटिंग में लगे होमगार्ड के जवान ने खूब साथ दिया था। पहले मांगन इंसान होमगार्ड के जवान थे तथा संगठन के बड़े नेता थे।
बाद में मतगणना स्थल पर माहौल बिगरता देख तात्कालिक डीएम ने रिकाउंटिंग के बाद उन्हें 36 वोटों से विजयी घोषित किया था। कहा जाता है कि पहले विजय घोषित किए गए प्रत्याशी के गले से माला उतार कर उन्हें पहनाई गई थी।
हालांकि उस समय सरकार बनाने में उन्होंने कांग्रेस का समर्थन किया था। लेकिन समय समय पर वे सरकार के विरोध में बेबाकी से बोलते हुए धरना प्रदर्शन भी खूब करते थे।
झौआ सड़क पुल निर्माण है उनकी देन
विधायक बनने के बाद से हीं वे महानंदा के झौआ में सड़क पुल का मांग जोर शोर से उठाया। परिणाम स्वरूप 31 अक्टूबर 1984 को पुल का शिलान्यास तात्कालिक मुख्य मंत्री के हाथों होना था, लेकिन उस दिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से मुख्यमंत्री नहीं पहुंच पाए।
ऐसे शिलान्यास किया गया था। बाद में 1985 में कांग्रेस की टिकट पर प्राणपुर से चुनाव जीतने के बाद लाभा पुल का आवाज बुलंद कर तात्कालिक मुख्यमंत्री के हाथों शिलान्यास कराया था।
रहन सहन में नही आया कोई बदलाव
बताया जाता है कि दो बार विधायक बनने के बाद भी उनके रहन सहन में कोई बदलाव नहीं आया। फूस का घर में आजीवन रहे। लोगों से गांव गवाई वाले अंदाज में मिलना जुलना एवं स्थानीय भाषा में बात करना उसकी विशेषता थी।
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