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    बिहार का वो मंदिर जहां माता की अनुमति से होता है कलश का विसर्जन, शेर शाह सूरी से भी कनेक्शन

    Updated: Wed, 24 Sep 2025 02:57 PM (IST)

    बरारी का भगवती मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है। नवरात्रि में सजावट भक्तों को आकर्षित करती है। किंवदंती है कि नरसिंह सिंह ने बलि प्रथा का विरोध किया जिसके बाद यह बंद हो गई। दुर्गा पूजा में कलश विसर्जन माता की अनुमति से होता है। दरभंगा महाराज ने मंदिर को जमीन दान की थी और शेरशाह सूरी के सेनापति ने यहां जीत की मन्नत मांगी थी।

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    यहां माता की अनुमति से होता है कलश का विसर्जन

    भूपेन्द्र सिंह, बरारी (कटिहार)। अपनी ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्ता को समेटे नगर पंचायत बरारी की भगवती मंदिर अपनी अलौकिक शक्तियों के लिए प्रसिद्ध है। नवरात्र को लेकर इसके रंग रोहन व साज सज्जा से यह श्रद्धालुओं को दूर से आकर्षित करता है। प्रखंड मुख्यालय से महज पांच सौ मीटर की दूरी एवं ऐतिहासिक गंगा दार्जिलिंग सड़क के किनारे बरारीहाट पर अवस्थित इस मंदिर से कई किदवंती जुड़ी है।

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    मंदिर का इतिहास:

    सैकड़ों वर्ष पूर्व जब इस मंदिर में माता की मूर्ति स्थापित की जा रही थी। उस समय आसपास सहित दूरदराज से पहुंचे भीड़ की मौजूदगी में माता के एक भक्त व अहिंसा के पुजारी स्व. नरसिंह सिंह ने बलि प्रथा का कड़ा विरोध करते हुए बलिवेदी पर यह कहकर अपना सिर रख दिया कि अगर ऐसा होता है तो सबसे पहले माता की चरणों में उसका सिर होगा। तभी से यहां बलि प्रथा बंद है और यह मंदिर क्षेत्र में वैश्नवी मंदिर के रूप में विख्यात है।

    मंदिर की विशेषता

    दुर्गापूजा के नवरात्रा पर यहां खास व आश्चर्यचकित करने वाली परंपरा है। यहां मंदिर में स्थापित कलश का विसर्जन माता की अनुमति अर्थात फुलाईश (कलश पर फूल चढ़ाया जाता है और पूजा की जाती है जब उक्त फूल कलश से नीचे गिर जाता है तभी विसर्जन के लिए अनुमति मानी जाती है) से होता है।

    बताया जाता है सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां पिंड की पूजा होती थी। फिर इसके विकास व जीर्णोद्धार को लेकर स्थानीय कुछ प्रबुद्ध श्रद्धालुओं में स्व. अवधबिहारी सिंह, स्व. मिठ्ठन मर्रर, स्व.रामदहिन भारती, स्व. बबुजन झा, स्व. नेनाय यादव, स्व.सेठ चुन्नीलाल आदि ने अटूट श्रद्धा दिखाई थी।

    धार्मिक न्यास से संबंध व क्षेत्र में अलौकिक शक्ति के लिए प्रसिद्धि के कारण दरभंगा महाराज द्वारा मंदिर के नामित काफी जमीन भी दान में दी गयी थी। यहां मंदिर का अपना धर्मशाला है। जिसमें लग्न के समय वर वधु पक्ष ठहराव कर माता के समक्ष शादी के रस्म को पुरा करते है। वही यहां के महाविद्यालय का नाम भी इसी पर रखा गया है।

    बंगाल फतह को ले शेर शाह सूरी के सेनापति ने मांगी थी जीत की मन्नत

    बंगाल पर चढ़ाई के दौरान यहां के गंगा-दार्जिलिंग सड़क से गुजरने के दौरान शेर शाह सूरी के हिंदू सेनापति ब्रह्मजीत गौड़ द्वारा माता से जीत की मन्नत मांगी गई थी। मुराद पुरी होने पर उनके द्वारा मंदिर के नामित जमीन दी गई थी।

    माता की अलौकिक शक्तियों क जितनी भी बखान किया जाए कम है। -  विश्वजीत भगवती उर्फ पंकज यादव,  सचिव, मंदिर प्रबंध समिति।

    यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद माता पूरी करती है। जब तक फुलाईश नहीं होता है तब तक मां की पूजा जारी रहती है। -  बबलू झा, पुजारी