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    28 फीसदी कीट-व्याधि निगल जाएंगे धान

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    Updated: Fri, 04 Sep 2015 07:14 PM (IST)

    कटिहार । कोसी क्षेत्र में धान की खेती बड़े भू-भाग में की जाती है। बंगाल से सटे क्षेत्र के लोगों के लि

    कटिहार । कोसी क्षेत्र में धान की खेती बड़े भू-भाग में की जाती है। बंगाल से सटे क्षेत्र के लोगों के लिए धान की खेती नगदी फसल के तौर पर की जाती है। कटिहार जिले में ही 70 हजार हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है। अनुकूल जलवायु के कारण यह क्षेत्र धान की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। लेकिन हाल के कुछ दिनों में धान के उत्पादन में कमी आयी है। इसका मुख्य कारण कीट-व्याधि का बढ़ता प्रकोप है। कीटों के प्रकोप के कारण उत्पादन में 28 फीसदी तक का नुकसान होता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार शुरूआती प्रबंधन से कीट-व्याधि के प्रकोप को कम किया जा सकता है।

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    इन कीटों से धान की फसल को होता है नुकसान :

    तना छेदक कीट - इसका वैज्ञानिक नाम योलोस्टेम बोरर है। धान की फसल को यह सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है। यह धान के पौधे के विकास को प्रभावित करता है। इसका प्रकोप खेतों में होने को सफेद बाली कहते हैं। यह कीट तना के अन्दर घुस जाता है और उसे धीरे धीरे काटना शुरू करता है। इससे पौधे मध्य तना से सूखने लगते हैं। जिसे मृत शिरा कहा जाता है। इससे निकलने वाली बाली सफेद होती है। इसमें दाने नहीं होते उसे सफेद बाली कहते हैं। दाना नही होने से उत्पादन प्रभावित होता है। इसका प्रकोप हाल के वर्षो में काफी बढ़ गया है।

    कैसे करें इस कीट का प्रबंधन :

    तना छेदक कीट से बचने के लिए

    - खेतों में 8 से 10 फेरोमेन ट्रेप लगाये

    - खेतों में बर्ड पर्चर लगायें

    - कार्बाफ्यूरान 3 जी दानेदार का दस किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की सतह पर प्रयोग करें।

    - देरी होने और प्रकोप बढ़ने की स्थिति में एसिफेट 75 फीसदी एसपी का 1 ग्राम प्रति लीटर का घोल बनाकर छिड़काव करें।

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    पत्ती लपेटक कीट : - बौनी एवं अधिक उपज देने वाले प्रभेदों में इसका प्रकोप सर्वाधिक होता है। शुरूआती दौर में इससे नुकसान कम होता था। लेकिन अब यह फसलों को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। यह पत्तियों के दोनों किनारे को अपने लार से बंद कर देता है और हरी पत्तियों को खाते हैं। इससे पत्ती जालीनुमा दिखाई देती है। धूप से सूख जाती है। इसके कारण पौधे भोजन बनाने के अभाव में कमजोर हो जाते है। इसका असर सीधा उत्पादन पर होता है।

    क्या है इस कीट का प्रबंधन :

    - खेतों की ग्रीष्मकालीन जुताई करनी चाहिए।

    - काटार्प हाइड्रोक्लोराइड 4 जी दानेदार का दस किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें।

    - इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एसएल का एक एमएल प्रति तीन लीटर का घोल बनाकर छिड़काव करें।

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    खरीफ में धान की फसल के उत्पादन पर कीट-व्याधि का व्यापक असर होता है। इसके कारण पैदावार 28 फीसदी तक कम हो जाती है। यहां तना छेदक और पत्ती लपेटक कीट का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। शुरूआती प्रबंधन एवं समय पर देखभाल करने से कीट से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।

    पंकज कुमार, कृषि वैज्ञानिक, कटिहार ।