जन्मजात विकृति की पहचान से नवजात को मिल सकता है नया जीवन
पेज पांच- - आशा घर-घर जाकर जन्मजात विकृति की कर रही पहचान - फैसिलिटी एवं समुदाय दोनों स्तरों पर की जा रही पहचान - चिह्नित बच्चों का एसएनसीयू में इलाज की सुविधा उपलब्ध जासं भभुआ नवजात को जन्म के ही समय कुछ विकृतियां हो सकती है। सही समय पर विकृतियों की पहचान कर नवजात को न
नवजात को जन्म के ही समय कुछ विकृतियां हो सकती है। सही समय पर विकृतियों की पहचान कर नवजात को नया जीवन दान भी दिया जा सकता है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा फैसिलिटी एवं समुदाय दोनों स्तरों पर ऐसे नवजातों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं। सिविल सर्जन डॉ. अरुण कुमार तिवारी ने बताया कि जन्मजात विकृतियों की सही समय पर पहचान करना जरुरी होता है। नवजात को समुचित इलाज प्रदान कर उनकी विकृति को दूर किया जा सकता है। समुदाय स्तर पर आशा घर-घर जाकर जन्मजात विकृति वाले नवजातों की पहचान करती है। इसके लिए आशाओं का क्षमतावर्धन भी किया गया है। फैसिलिटी स्तर पर भी संस्थागत प्रसव के बाद नवजातों में जन्मजात विकृति की पहचान की जाती है। चिह्नित नवजातों को विशेष इलाज प्रदान कराने के लिए जिले में स्थित सिक न्यू बोर्न यूनिट(एसएनसीयू) में रेफर किया जाता है। एसएनसीयू में ऐसे बच्चों के लिए पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि जन्मजात विकृतियों में कई जटिलताएं शामिल होती है। जिसमें मल त्याग करने के रास्ते का नहीं बनना, श्वास नली में अधिक समस्या, पैरों का मुड़ा होना, सर का आकर सामान्य से अधिक हो जाना, ह्रदय में छिद्र या ह्रदय संबंधित गंभीर समस्या का होना एवं स्पाइनल कोर्ड विकृति जैसे अन्य रोग भी शामिल है।
गंभीर स्थिति में मेडिकल कॉलेज रे़फर करने का प्रावधान:
समुदाय एवं फैसिलिटी स्तर से जन्मजात विकृति वाले बच्चों को चिह्नित कर सर्वप्रथम एसएनसीयू भेजा जाता है। एसएनसीयू में विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में इलाज होता है। लेकिन यदि स्थिति अधिक नाजुक होती है तब एसएनसीयू से नवजात को नजदीकी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में रेफर करने का भी प्रावधान किया गया है। इसके लिए सभी जिलों के एसएनसीयू को राज्य की तऱफ से निर्देशित भी किया गया है।
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