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    मलुआ पहाड़ी का ऐतिहासिक शिलालेख को छेनी-हथौड़ी से किया क्षतिग्रस्त, धरोहर नष्ट होने के कगार पर

    Updated: Fri, 26 Dec 2025 01:43 PM (IST)

    कैमूर जिले के भगवानपुर में मलुआ पहाड़ी पर स्थित एक ऐतिहासिक शिलालेख को असामाजिक तत्वों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। सिद्धमातृका लिपि में अंकित शिलालेख को छ ...और पढ़ें

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    ऐतिहासिक शिलालेख को छेनी-हथौड़ी से किया क्षतिग्रस्त

    संवाद सूत्र, भगवानपुर। जिले के भगवानपुर प्रखंड में स्थित प्राचीन धरोहरों की रक्षा करने में प्रशासन और पुरातत्व विभाग पूरी तरह उदासीन नजर आ रहा है। इसका ताजा उदाहरण सिलसिला मौजा में स्थित मलुआ पहाड़ी की तलहटी में देखने को मिला, जहां हजारों वर्ष पूर्व सिद्धमातृका लिपि में अंकित एक महत्वपूर्ण शिलालेख को असामाजिक तत्वों द्वारा छेनी-हथौड़ी से नष्ट कर दिया गया है। 

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    मौके पर देखा गया कि प्राचीन सिद्धमातृका लिपि के अक्षरों को मिटाकर वहां हिंदी में कुछ शब्द लिख दिए गए हैं, जिससे ऐतिहासिक धरोहर को भारी क्षति पहुंची है। 

    नष्ट होने के कगार पर धरोहर

    स्थानीय बुजुर्गों और बुद्धिजीवियों का कहना है कि भगवानपुर प्रखंड के कसेर के देवरा पहाड़ी, जैदपुर कला की पहाड़ी, शिव मंदिर क्षेत्र, भगवानपुर-अधौरा सड़क के रोपड़ मौज तथा टोड़ी गांव में आज भी हजारों वर्ष पुरानी मूर्तियां और शिलालेख मौजूद हैं। लेकिन जिला प्रशासन, जनप्रतिनिधियों, सांसद और विधायकों द्वारा इनके संरक्षण को लेकर कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है। परिणामस्वरूप ये सभी धरोहरें नष्ट होने के कगार पर हैं। 

    स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि समय रहते शिलालेखों की घेराबंदी और सुरक्षा की व्यवस्था की गई होती, तो इस अमूल्य धरोहर को बचाया जा सकता था। वन विभाग के पदाधिकारी भी शिलालेख की सुरक्षा में असफल साबित हुए हैं।

    पूर्व मध्यकालीन है शिलालेख

    शोधकर्ताओं के अनुसार मलुआ पहाड़ी की तलहटी में स्थित यह शिलालेख पूर्व मध्यकाल का है। इतिहासकार डा. डी.डी. सरकार ने वर्ष 1960-61 में इस शिलालेख का अध्ययन किया था, जिसका उल्लेख उनकी पुस्तक एपिग्राफिका इंडिया में पृष्ठ 36 पर मिलता है। 

    उनके अनुसार यह शिलालेख सिद्धमातृका लिपि में अंकित था और दो भागों में विभाजित था। उत्तरी भाग के अक्षर पहले ही मिट चुके थे, जिनमें देवी के लिए वराह बलि देने का उल्लेख था। दक्षिणी भाग अत्यंत महत्वपूर्ण था, जिसमें विक्रम संवत 1162 (1105-1106 ई.) का उल्लेख मिलता है। 

    शिलालेख के अनुसार वाराणसी राज्य सीमा के अंतर्गत कसरमोला पतला के अमरगढ़ गांव में नायक अंग सिंहा द्वारा अपनी भूमि स्थानीय शिव मंदिर को दान दी गई थी। इस भूमि का उपयोग मंदिर की देखरेख और पूजा-पाठ के लिए किया जाना था।