उर्स को लेकर अमरथ दरगाह पर उमड़े श्रद्धालु
जमुई। शहर स्थित प्रसिद्ध अमरथ दरगाह में प्रत्येक वर्ष 22 फरवरी को धूमधाम से उर्स का आयोजन किया जाता है।
जमुई। शहर स्थित प्रसिद्ध अमरथ दरगाह में प्रत्येक वर्ष 22 फरवरी को धूमधाम से उर्स का आयोजन किया जाता है। यहां लोग अपनी मुराद मांगने के लिए आते हैं। उर्स को लेकर 20 फरवरी से ही दूर-दराज से लोगों का आना शुरू हो जाता है। इस दरगाह पर सभी समुदाय के लोग अपनी मन्नतें लेकर पहुंचते हैं। जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर पश्चिम सदर प्रखंड के अमरथ गांव में सैयद अहमद खान गाजी जाजमेरी का मजार है। ऐसी मान्यता है कि लगभग 700 वर्ष पहले बादशाह अकबर के जमाने में तुगलक खानदान के सैयद अहमद खान गाजी जाजमेरी उर्फ अमरथ बाबा के पूर्वज थे और कई दशकों पहले अमरथ गांव आए थे। जब उन्होंने यहां अपना बसेरा डाला तो देखा कि लोगों के बीच पेयजल की भारी किल्लत है। इस किल्लत को देखते हुए उन्होंने यहां तालाब खुदवाया। गाजी बाबा की मृत्यु के बाद उन्हें यहीं पर दफनाया गया जो आज भी एक मजार के रूप में है। यहां पहले मोजावर के रूप में मु. कुदरत अंसारी को प्रतिनियुक्त किया गया था। इस दरगाह पर पहले मरीज के रूप में रामावतार ¨सह आए थे जिनका पागलपन जाता रहा। इलाके के लोग बताते हैं कि बहुत पहले यहां सैय्यद कमरूज्जमा रिजवी नामक एक बड़े पुलिस अधिकारी शिकार खेलने के लिए आए थे। उन्होंने इमली के पेड़ पर बैठे पक्षी पर दो गोलियां दागी जो विफल रही। तीसरी गोली पक्षी की ओर जाने की बजाय पीछे की ओर चली गयी। तभी उन्हें लगा कि जरूर यहां पर कोई अलौकिक शक्ति है। तब से वे उन्हें मानने लगे।
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सौ वर्ष पहले उर्स मेले की हुई थी शुरुआत :
उसके बाद उर्स की शुरुआत अमरथ गांव के रहने वाले खान बहादुर अब्दुल मोजीब ने की थी। लगभग 100 वर्ष पहले केवल अब्दुल मोजीब ही कौवाल को ला कर ढोल बाजा के साथ चादर चढ़ाते थे और खुद ही अकेला मानते थे। इसी ढोल-बाजा और कौवाली को देख लोगों का भीड़ जुटना शुरू हो गया और धीरे धीरे लोग इस परंपरा को बढ़ावा दिए और आज यह परंपरा जोर शोर से हिन्दू और मुस्लिम दोनो समाज के लिए भक्ति और श्रद्धा की मिसाल बन गया। प्रत्येक सोमवार, गुरुवार और शुक्रवार को भी विशेष कार्यक्रम होता है।
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