फाइलों में उलझा 'खेल' बिहार-झारखंड और बंगाल को जोड़ने वाली 'सुपर हाईवे' कब बनकर होगी तैयार?
बिहार में एनएच-333-ए का निर्माण फाइलों में उलझा हुआ है, जिससे जमुई जिले में भूमि अधिग्रहण और मुआवजा वितरण में देरी हो रही है। वन विभाग की मंजूरी और भू ...और पढ़ें

प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)
संवाद सूत्र, सिमुलतला (जमुई)। एक ओर सरकार वर्ष 2026 के अंत तक बिहार, झारखंड और बंगाल को जोड़ने वाली एनएच-333-ए को ‘सुपर हाईवे’ में तब्दील कर निर्माण कार्य शुरू करने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत सरकारी फाइलों में ही उलझकर रह गई है।
जमुई जिले में प्रस्तावित 89 हेक्टेयर वन भूमि का हस्तांतरण और भूमि अधिग्रहण से जुड़ा मुआवजा आज भी एक जटिल पहेली बना हुआ है।
फाइलों में फंसा ड्रीम प्रोजेक्ट
बरबीघा से शुरू होकर शेखपुरा, सिकंदरा, जमुई, झाझा होते हुए पंजवारा तक जाने वाले करीब 118 किलोमीटर लंबे एनएच-333-ए को अपग्रेड करने की योजना है। प्रस्ताव के तहत इसे दो लेन (पेव्ड शोल्डर के साथ) और कुछ हिस्सों में चार लेन बनाने की तैयारी है, लेकिन सबसे बड़ी बाधा वन विभाग की मंजूरी और भूमि अधिग्रहण की ऊंची लागत बनी हुई है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार, जमुई जिले में सड़क चौड़ीकरण और नए बाईपास के लिए लगभग 89 हेक्टेयर वन भूमि की आवश्यकता है। सिमुलतला और झाझा क्षेत्र के पहाड़ी व जंगली इलाकों के कारण पर्यावरणीय स्वीकृति की प्रक्रिया बेहद धीमी गति से चल रही है।
वहीं, जमुई बाईपास के लिए निर्धारित भूमि का मुआवजा करीब 92 करोड़ रुपये आंका गया, जिसे केंद्र सरकार ने अत्यधिक बताते हुए पुराने एलाइनमेंट पर आपत्ति जता दी। इससे परियोजना की समयसीमा पूरी तरह गड़बड़ा गई।
डेथ जोन बन चुका है सोनो-झाझा-सिमुलतला मार्ग
प्रशासनिक देरी की सबसे बड़ी कीमत आम लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है। सड़क की जर्जर हालत और अनियंत्रित भारी वाहनों की आवाजाही ने एनएच-333 और 333-ए के संगम को ‘डेथ जोन’ में बदल दिया है।
दिसंबर 2025 का महीना इस मार्ग के लिए खासा भयावह रहा। 19 दिसंबर को पंचपहाड़ी के समीप हुई भीषण सड़क दुर्घटना में एक ही बाइक पर सवार दो युवकों की दर्दनाक मौत हो गई, जबकि एक युवक गंभीर रूप से घायल हो गया।
इसके कुछ ही दिन बाद 22 दिसंबर को झाझा के हथिया पुल के समीप एक और दुर्घटना हुई, जिसमें एक जनप्रतिनिधि घायल हो गए। संकरी, घुमावदार सड़क, जगह-जगह गड्ढे और क्षतिग्रस्त पुलिया वाहन चालकों के लिए लगातार खतरे की घंटी बजा रही हैं। बीते एक वर्ष में इस मार्ग पर दर्जनों दुर्घटनाएं हो चुकी हैं।
मुआवजे के लिए भटक रहे रैयत
सड़क निर्माण में देरी का एक बड़ा कारण भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी भी है। जमुई और बांका जिले की सीमा पर कई किसान व रैयत उचित मुआवजे की मांग को लेकर असमंजस में हैं। प्रशासन द्वारा कैंप लगाने की बात कही गई है, लेकिन जमीनी स्तर पर अब भी कई पेंच फंसे हुए हैं।
स्थानीय ग्राम भारती सर्वोदय आश्रम के संचालक कुमार विमलेश, जिला पार्षद प्रतिनिधि आलोक राज, जिला सरपंच संघ अध्यक्ष मनोरंजन प्रसाद, गजानंद चौधरी और निर्मल चौधरी का कहना है कि जब तक मुआवजे की स्पष्ट और संतोषजनक व्यवस्था नहीं होती, वे एक इंच भी जमीन देने को तैयार नहीं हैं।
इस संबंध में एनएच-333-ए के कार्यपालक अभियंता से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनके मोबाइल पर संपर्क नहीं हो सका।

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