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    63 साल पहले जमुई जिले के पहले और आखिरी मुस्लिम विधायक बने थे शाह मुस्ताक, इस बार क्या होगा?

    Updated: Thu, 25 Sep 2025 03:07 PM (IST)

    जमुई जिले में मुस्लिम आबादी लगभग 12% होने के बावजूद 1962 के बाद से उन्हें विधानसभा में प्रतिनिधित्व का मौका नहीं मिला है। 1962 में शाह मुस्ताक अंतिम मुस्लिम विधायक थे। इसके बाद कई प्रयास हुए पर सफलता नहीं मिली। 2025 के चुनाव में क्या मुस्लिम समाज को प्रतिनिधित्व मिलेगा यह देखना होगा। जमुई विधानसभा क्षेत्र से शमशाद आलम की दावेदारी है पर अन्य मजबूत चेहरे कम दिख रहे हैं।

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    63 साल पहले जमुई जिले के पहले और आखिरी मुस्लिम विधायक बने थे शाह मुस्ताक

    अनुराग कुमार, सोनो (जमुई)। जिले में अल्पसंख्यक आबादी तकरीबन 12 प्रतिशत है। सिकंदरा और झाझा विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या सिर्फ ठीक-ठाक ही नहीं, बल्कि जीत और हार तय करने की स्थिति है। इसके बावजूद जिले में मुस्लिम समाज को प्रतिनिधित्व का अवसर 1962 के बाद कभी नहीं मिला।

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    साल 1962 का ही चुनाव था जिसमें जमुई जिले से पहले और आखिरी मुसलमान विधायक के रूप में कांग्रेसी दिग्गज तारिक अनवर के पिता शाह मुस्ताक चुने गए थे। 1967 में सिकंदरा विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हो गया। लिहाजा शाह मुस्ताक को सिकंदरा से रुखसत होना पड़ा।

    इसकी भरपाई के लिए तब कांग्रेस पार्टी ने झाझा से मोहम्मद कुद्दूस को उतारा था, लेकिन 712 मतों से उनकी हार ने जिले से दूसरा मुस्लिम विधायक बनने का मौका छीन लिया। इसके बाद लंबे समय तक जिले के किसी भी विधानसभा क्षेत्र से पार्टियों ने अल्पसंख्यक बिरादरी को मौका ही नहीं दिया।

    वर्ष 2000 के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल को मिली करारी शिकस्त के बाद उसने 2005 में फरवरी और नवंबर के चुनाव में मोहम्मद रशीद को लालटेन का टिकट थमा कर प्रयोग किया, लेकिन वह लड़ाई में जदयू के दामोदर रावत से काफी पीछे रह गए। तब वहां एमवाई समीकरण पूरी तरह दरक गया था।

    लालू प्रसाद के स्वजातीय मतदाता रविंद्र यादव के साथ खड़े थे। इसके बाद 2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जमुई विधानसभा क्षेत्र से जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष मो इरफान पर दांव खेला, लेकिन यहां भी अल्पसंख्यक बिरादरी को निराशा हाथ लगी।

    इसके बाद लगातार दो चुनाव में दोनों प्रमुख गठबंधन में से किसी ने भी मुस्लिम उम्मीदवार उतारना मुनासिब नहीं समझा। इस बीच 2020 के चुनाव में जमुई विधानसभा क्षेत्र में जन अधिकार पार्टी से मैदान में उतरे शमशाद आलम ने अपनी ताकत का एहसास कराया तो राष्ट्रीय जनता दल की लुटिया डूब गई और 2005 वाली झाझा विधानसभा क्षेत्र की जमुई में पुनरावृत्ति हो गई।

    63 साल बाद एक बार फिर से विधानसभा चुनाव सामने है। इस बार भी किसी गठबंधन से मुस्लिम समाज को प्रतिनिधित्व मिलता है या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।

    वैसे इसकी संभावना कम ही दिख रही है। जमुई विधानसभा क्षेत्र से शमशाद आलम की दावेदारी को छोड़ दें तो दोनों प्रमुख गठबंधन में से जिले के किसी विधानसभा क्षेत्र से मुस्लिम समाज का कोई मजबूत चेहरा टिकट की रेस में नहीं है।