Bihar News: 'जिस आंगन में खेले-बढ़े, अब कहते... ये तुम्हारा घर नहीं', वनवासियों का छलका दर्द; ठंड के बीच धरने पर डटे
Bihar News हम वनवासी वन छोड़कर कहां रहे। यह दर्द घुटन और बेबसी चकाई प्रखंड के सुदूर जंगली क्षेत्रों में रहने वाले वनवासियों की है। ये वनवासी पिछले चार दिनों से चकाई प्रखंड मुख्यालय पर अपनी बेबसी बताने और जिम्मेदारों से सहायता की उम्मीद से धरना पर बैठे हैं। ठंड की रात जब लोग रजाई में बीता रहे ये लोग अलाव की सहायता से टेंट में रात काट रहे हैं।

आशीष सिंह चिंटू, जमुई। जिस आंगन में खेले-बढ़े, मां का दुलार और पिता की डांट खाई, गिर कर जिस मिट्टी ने हमें चलना सिखाया, शीतलहर-लू, सर्दी-गर्मी से जिस दीवारों ने हमें बचाया, अब कहा जाता कि वो तुम्हारा घर नहीं। जिस खेत ने हमारे पूर्वजों और अबतक हमलोगों का पेट भरा, कहा जाता कि वो तुम्हारा खेत नहीं। फिर साहेब, हमारा क्या और कहां है। बताए हमारे पूर्वज यहां रहे, हम कहां जाए।
हम वनवासी वन छोड़कर कहां रहे। यह दर्द, घुटन और बेबसी चकाई प्रखंड के सुदूर जंगली क्षेत्रों में रहने वाले वनवासियों की है। ये वनवासी पिछले चार दिनों से चकाई प्रखंड मुख्यालय पर अपनी बेबसी बताने और जिम्मेदारों से सहायता की उम्मीद से धरना पर बैठे हैं।
प्रखंड के घोर जंगल में अवस्थित पचकठिया, हिंडला, सिमराढाब, बाराटांड, खुटमो, बरमोरिया, फरियत्ताडीह, दुलुमपुर, चरका, मंझली, रामसिंहडीह, पिपराटाड, बाराटाड, मुडली, खोरी, गोबरदाहा, सुरंगी, दोतना, बाघलोतवा, नौकाडीह, झोसा समेत दो दर्जन से अधिक गांवों के वनवासी रात दिन टेंट में बीता अपनी फरियाद और दर्द सुना रहे हैं।
ठंड की रात जब लोग रजाई में बीता रहे ये लोग अलाव की सहायता से टेंट में रात काट रहे हैं। अपने साथ लाए चावल और आलू से कभी खिचड़ी तो कभी नमक-भात खा पेट भर रहे हैं।
पूर्वज रहे यहां, हम जाए कहां
बोंगी के रमेश सोरेन, रंजीत सोरेन, कंझली मरांडी, बड़की किस्को, बाघलोतवा की तालो हांसदा, मुडली के शीतत मुर्मू, झोसा के भैरा, मंझली की शांति सोरेन, पिपराटाड के बुधू, बाराटाड की कुसुम हांसदा ने कहा कि उन लोगों के पूर्वज एक सौ साल से अधिक समय से इस जगह पर रह रहे हैं। छोटा-छोटा खेत बनाकर खेती कर जीवनयापन किए। अब कहा जा रहा कि यह जमीन-घर तुम्हारा नहीं।
आवास योजना से मिले आवास का काम लिंटर तक पहुंचने पर रूकवा दिया गया। जिम्मेदारों द्वारा हमें जमीन छोड़कर चले जाने को कहा जाता है। बताया कि बोंगी से 60 से 70 परिवार की ऐसी स्थिति है। इसके अलावा अन्य गांवों में कई परिवार ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं।
हमें हमारी जन्म भूमि से हटाया जा रहा है। उस घर आंगन से दूर होने कहा जा रहा है जहां से हमारी यादें जुटी हैं।
स्कूल के लिए नहीं मिल रही जमीन
पचकठिया की छोटकी हांसदा, लखी टूड्डू, छोटकी हांसदा, तालो हांसदा, मिलना मरांडी ने कहा कि हमारे बच्चे पेड़ के नीचे पढ़ाई करते हैं। स्कूल के भवन के लिए जमीन नहीं दी जा रही है। हमलोगों ने जिला मुख्यालय पर सड़क किनारे स्कूल लगा अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट कराया। आश्वासन मिला लेकिन फिर हम भुला दिए गए।
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