Bihar Politics: राजनीति में माननीयों के पुत्र, पुत्रियों और पत्नी का जलवा बरकरार; यहां तगड़ी होगी फाइट!
जमुई जिले में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर विरासत की राजनीति गरमाई हुई है। कई नेता अपने पुत्र-पुत्रियों को चुनावी मैदान में उतार रहे हैं। जमुई और झाझा विधानसभा क्षेत्रों में कई पूर्व मंत्रियों और विधायकों के बच्चे अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। चकाई में भी पारिवारिक वर्चस्व देखने को मिल रहा है जबकि सिकंदरा में स्थिति कुछ अलग है।

डॉ. विभूति भूषण, जमुई। जिले की राजनीति में विधानसभा चुनाव को लेकर विरासत की सियासत तेजी से हावी हो रही है। इसको लेकर पूर्व में ही कई माननीयों के पुत्रों, पुत्री और पत्नी की एंट्री हो चुकी है। कुछ तो अपने पुत्र और पुत्री को फिलहाल वर्तमान चुनावी राजनीति में सेट करने की जुगत में हैं, ताकि लंबे समय तक जिले की राजनीति में उनका दबदबा कायम रहे।
विरासत की सियासत को आगे बढ़ते हुए जमुई विधानसभा क्षेत्र से बिहार सरकार के पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के मंझले पुत्र अभय सिंह 2005 में जीत हासिल कर चुके हैं। वहीं, उनके बड़े सुपुत्र अजय प्रताप भी 2010 में जीत हासिल कर चुके हैं। हालांकि, 2015 और 2020 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव के छोटे भाई विजय प्रकाश भी में वर्ष 2000 से लगातार अपना भाग्य आजमा रहे हैं। हालांकि, 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्हें विधायक बनने का अवसर मिला। इस दौरान उन्होंने कुछ दिनों तक बिहार सरकार के श्रम मंत्री के पद को भी सुशोभित किया। वर्ष 2016 से 2021 तक विजय प्रकाश की पत्नी विनीता प्रकाश भी जिला परिषद अध्यक्ष रही।
झाझा विधानसभा से इनके चुनाव लड़ने की चर्चा पूर्व में काफी तेज थी। पूअर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय दिग्विजय सिंह और बांका की पूर्व सांसद पुतुल सिंह की छोटी पुत्री गोल्डन गर्ल के नाम से मशहूर श्रेयसी सिंह फिलहाल जमुई से विधायक हैं और दूसरी बार जीत हासिल करने की फिराक में हैं।
इसी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष त्रिपुरारी सिंह के पुत्र शांतनु सिंह और पूर्व विधायक नरदेव प्रसाद के पुत्र प्रकाश कुमार भगत भी चुनाव लड़ने को लेकर लगातार प्रयासरत हैं। इसके अलावा, झाझा विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक शिवनंदन यादव के पुत्र डॉ. रविंद्र यादव दो बार विधायक और एक बार विधान पार्षद भी रह चुके हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव अपनी पुत्री दिव्य प्रकाश को झाझा से चुनाव मैदान में उतारने को लेकर लगातार जनसंपर्क अभियान कर चला रहे हैं। चकाई विधानसभा क्षेत्र के श्रीकृष्ण सिंह ने जीत हासिल किया था।फि र उनके पुत्र नरेंद्र सिंह ने तीन बार विधायक के तौर पर प्रतिनिधित्व किया।
नरेंद्र सिंह ने 2010 में स्वयं चुनाव नहीं लड़कर अपने छोटे पुत्र सुमित कुमार सिंह को मैदान में उतारा था। उन्हें जीत भी मिली। फिलहाल सुमित सिंह दूसरी बार एकमात्र निर्दलीय विधायक के रूप में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और बिहार सरकार में विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री भी हैं। वह फिर से जीत हासिल करने को लेकर प्रयासरत हैं।
इसी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक फाल्गुनी प्रसाद यादव की पत्नी सावित्री देवी ने उनके राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए 2015 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर चुकी हैं। फिलहाल वह भी क्षेत्र में लगातार जन समस्याओं के निष्पादन को लेकर सक्रिय हैं, क्योंकि अधिकांश समय चकाई की राजनीति नरेंद्र सिंह और फाल्गुनी प्रसाद यादव के परिवार के बीच ही घूमती रही है।
बांका सांसद गिरधारी यादव भी अपने छोटे पुत्र चाणक्य को इस बार विधानसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि, सिकंदरा विधानसभा का राजनीतिक परिदृश्य इससे बिल्कुल ही अलग है। यहां विरासत की सियासत कोई असर नहीं डाल पा रही है।
अब देखने योग्य सबसे बड़ा दिलचस्प पहलू यह है कि विरासत की सियासत को आगे बढ़ाते हुए इस बार के विधानसभा चुनाव में कितने माननीय के परिजन मैदान मार पाते हैं। यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा।
विरासत की सियासत
- पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की पुत्री गोल्डन गर्ल श्रेयसी सिंह जमुई से हैं विधायक
- बिहार सरकार के पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के मंझले पुत्र अभय सिंह 2005 में और बड़े पुत्र अजय प्रताप 2010 में जमुई से रह चुके हैं विधायक
- पूर्व केंद्रीय मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव के छोटे भाई विजय प्रकाश 2015 में रह चुके हैं विधायक
- चकाई में तीन पीढ़ी से कायम है विरासत की सियासत
- पहले श्रीकृष्ण सिंह ,उसके बाद नरेंद्र सिंह और अब उनके छोटे पुत्र सुमित सिंह चकाई से दूसरी बार हैं विधायक
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