Gopalganj News: ढैंचा की खेती कर किसान बढ़ा सकते हैं खेतों की उर्वरा शक्ति, पढ़ लीजिए फार्मिंग का आसान तरीका
Gopalganj News किसान फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहे हैं। रासायनिक खाद का अधिक प्रयोग से भले तात्कालिक रूप से उत्पादन में थोड़ी बहुत वृद्धि होती है पर जमीन को भारी नुकसान होता है। ज्यादा रासायनिक खाद का प्रयोग तैयार फसल स्वास्थ्य के लिए भी प्रतिकूल होता है। लेकिन किसान अगर ढैंचा की खेती करेंगे तो जमीन की उर्वरा शक्ति तुरंत बढ़ेगी।

मनोज कुमार राय, जागरण, कुचायकोट (गोपालगंज)। Gopalganj News: फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खाद का प्रयोग कर रहे हैं। रासायनिक खाद ज्यादा प्रयोग से भले तात्कालिक रूप से उत्पादन में थोड़ी बहुत वृद्धि होती है पर मृदा को भारी नुकसान होता है। ज्यादा रासायनिक खाद का प्रयोग तैयार फसल स्वास्थ्य के लिए भी प्रतिकूल होता है।
स्थिति यह है कि पहले कम रासायनिक खाद के प्रयोग से जितना उत्पादन फसल का हो पता था, उसकी तुलना में ज्यादा रासायनिक खाद दिए जाने के बाद भी उत्पादन नहीं बढ़ रहा है। इसके पीछे मृदा की उर्वरा शक्ति क्षय होना प्रमुख कारण बताया जाता है।
ढैंचा की फसल लगाएं और भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाएं
मृदा की उर्वरा शक्ति प्राकृतिक रूप से बढ़ाने को लेकर वैज्ञानिक नए-नए शोध कर रहे हैं। कृषि विज्ञानियों के अनुसार, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए हरी खाद का प्रयोग किसानों के लिए एक वरदान है। हरी खाद के रूप में ढैंचा की फसल से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होती है। इससे फसल का उत्पादन बढ़ता है और भूमि की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है।
हरी खाद के रूप में ढैंचा के प्रयोग से मिट्टी में पोषक तत्व कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होती है। ढैंचे की फसल में 20 से 25 दिनों के बाद से पौधों में गांठें बननी शुरू हो जाती हैं। इससे नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता है। फसल की 45 दिन की अवस्था होने पर इसकी जड़ों में बनीं गांठों की संख्या अधिकतम होती है।
ऐसे में किसानों को कृषि वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि जब ढैंचा की फसल 40 से 45 दिन की हो जाए, उस समय फसल को मिट्टी में मिला देना चाहिए। यही सर्वोत्तम समय होता है। खेतों में रबी फसल की कटाई और खरीफ फसल की बोआई के बीच का समय ढैंचा की हरी खाद के लिए सर्वोत्तम होता है। इस दौरान खेत अमूमन खाली रहते हैं तथा किसान आसानी से इसकी खेती कर खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ा सकते हैं।
प्रति एकड़ 12 किलोग्राम बीज की दर से करें बोआई
कृषि विज्ञान केंद्र सिपाया के प्रक्षेत्र प्रबंधक और कृषि विज्ञानी रविकांत कुमार ने बताया कि ढैंचे की जड़ों में बनी गांठ में बड़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ पाए जाते हैं, जो फसलों के लिए बेहद उपयोगी होते हैं। इससे मृदा में जीवांश पदार्थ एवं उपलब्ध नाइट्रोजन की मात्रा में भी वृद्धि होती है। उन्होंने बताया कि ढैंचा की खेती से भूमि की जल धरण की क्षमता में भी वृद्धि होती है। किसान प्रति एकड़ 12 किलोग्राम बीज की दर से ढैंचा की बोआई खेतों में कर सकते हैं।
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