ऐतिहासिक थावे दुर्गा मंदिर गोपालगंज में आस्था का प्रतीक, भक्त की पुकार पर आई थीं माता; नवरात्र में बंद नहीं होते कपाट
गोपालगंज के थावे में स्थित ऐतिहासिक थावे दुर्गा मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर तीन ओर से वन प्रदेश से घिरा हुआ है जो इसे एक रमणीय स्थल बनाता है। मंदिर में प्रवेश व निकास के लिए एक-एक द्वार हैं और सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध हैं। मान्यता है कि मां के दर्शन मात्र से लोगों की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
प्रदीप कुमार, थावे (गोपालगंज)। ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर गोपालगंज जिले के थावे में स्थित है। इस मंदिर की दूरी गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर है।
राष्ट्रीय राजमार्ग 531 के किनारे स्थित मंदिर सिवान जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर है। गोपालगंज जिला मुख्यालय से प्रत्येक पांच मिनट पर आटो व बस की सुविधा है।
इसके अलावा थावे जंक्शन पर पटना, सिवान, छपरा व गोरखपुर से आने के लिए ट्रेन की सुविधा है। मंदिर के समीप स्थित देवी हाल्ट पर सभी ट्रेन रुकती है।
काल
जनश्रुतियों के मुताबिक यह मंदिर चेरो वंश काल की है। 1714 ई. के पूर्व यहां चेरों वंश के राजा मनन सेन का साम्राज्य हुआ करता था।
इस क्रूर राजा के दबाव डालने पर भक्त रहषु स्वामी की पुकार पर मां भवानी कामरूप कामाख्या से चलकर थावे पहुंचीं। यह मंदिर उसी समय का बताया जाता है।
विशेषता
ऐतिहासिक थावे दुर्गा मंदिर तीन ओर से वन प्रदेश से घिरा हुआ है। वन प्रदेश से घिरे होने के कारण पूरा मंदिर परिसर रमणीय दिखता है।
मंदिर में प्रवेश व निकास के लिए एक-एक द्वार हैं। यहां सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध हैं। मान्यता है कि मां के दर्शन मात्र से लोगों की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
वास्तुकला
मंदिर का गर्भ गृह बहुत पुराना है। इस मंदिर का हाल के दिनों में काफी विकास कार्य किया गया है। मंदिर के आसपास नए निर्माण हुए हैं। इसके बावजूद गर्भ गृह में कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।
इतिहास
शक्ति पीठ का इतिहास भक्त रहषु स्वामी तथा चेरों वंश के क्रूर राजा की कहानी जुड़ी हुई है। 1714 के पूर्व यहां चेरों वंश के राजा मनन सेन का साम्राज्य हुआ करता था।
इस क्रूर राजा के दबाव डालने पर भक्त रहषु स्वामी की पुकार पर मां भवानी कामरूप कामाख्या से चलकर थावे पहुंचीं।
उनके थावे पहुंचने के साथ ही राजा मनन का महल खंडहर में तब्दील हो गया और भक्त रहषु के सिर से मां ने अपना कंगन युक्त हाथ प्रकट कर राजा को दर्शन दिया।
देवी दर्शन के साथ ही राजा मनन के प्राण भी पखेरू हो गए। तब से यहां मां की अराधना होती आ रही है।
महत्व
यहां सालों भर मां की दिन में दो बार आरती होती है। नवरात्र को छोड़ अन्य दिनों में रात्रि की आरती के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं। लेकिन नवरात्र के दौरान कपाट बंद नहीं होते।
नवरात्र की सप्तमी व अष्टमी को यहां मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। सप्तमी को महाप्रसाद का वितरण किया जाता है।
मंदिर के आसपास के लोगों के अनुसार यहां के लोग किसी भी शुभ कार्य के पूर्व और उसके पूर्ण हो जाने के बाद यहां आना नही भूलते।
यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते है। करीब तीन सौ साल पूर्व स्थापित यह जाग्रत प्राचीन शक्ति पीठ में से एक है।
प्रति वर्ष नवरात्र के समय यहां बिहार ही नहीं सीमावर्ती यूपी व नेपाल के भक्त हजारों की संख्या में आते हैं और माता का दर्शन करते हैं।
आदि काल से यहां मां की पूजा अर्चना की जाती है। यहां मां भगवती भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं। यहां पूजा अर्चना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
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