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Bihar Politics: 'मांझी Vs मांझी' की सियासी जंग में कौन मारेगा बाजी? हर बार चौंकाते हैं इस हॉट सीट के परिणाम

कुछ ही दिनों में लोकसभा चुनाव के तारीखों की घोषणा कर दी जाएगी। बिहार के गया सीट पर प्रथम चरण में चुनाव होने की उम्मीद है। ऐसे में एनडीए और महागठबंधन अपने-अपने उम्मीदवारों का नाम तय करने की तैयारी तेज कर दी है। विश्वस्त सूत्र बताते है कि वर्तमान सांसद और पूर्व में गया संसदीय सीट पर चुनाव लड़ चुके उम्मीदवार को कोई गठबंधन अपना उम्मीदवार नहीं बनाएगी।

By neeraj kumar Edited By: Mohit Tripathi Published: Fri, 08 Mar 2024 06:36 PM (IST)Updated: Fri, 08 Mar 2024 06:36 PM (IST)
'मांझी Vs मांझी' की सियासी जंग में कौन मारेगा बाजी। (फाइल फोटो)

नीरज कुमार, गया। देश की आजादी के बाद वर्ष 1957 में गया संसदीय सीट का गठन हुआ। उस वक्त गया संसदीय सीट पर प्रथम सांसद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ब्रजेश्वर प्रसाद रहे। इनका कार्यकाल 1962 तक रहा। यही कार्यकाल सामान्य जाति के लिए रहा। उसके बाद गया संसदीय सीट को सुरक्षित कर दिया गया।

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इसके बाद से 2019 तक अनुसूचित जाति के उम्मीदवार ही गया संसदीय सीट से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व मांझी समाज का रहा। जबकि दूसरे स्थान पासवान समाज का आता है। जो गया जैसे धार्मिक, ऐतिहासिक नगरी से लोकसभा में प्रतिनिधि किए हैं।

सांसदों ने गया को अबतक क्या दिया ?

गया से प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवारों का कार्यकाल निरंतर बढ़ता गया। लेकिन कोई भी बड़ा कार्य गया संसदीय क्षेत्र में नहीं दिखता है। सबसे बड़ी बात है कि गया शहरी क्षेत्र और राष्ट्रीय राजमार्ग पर आज भी कई तरह की समस्या है। गया शहरी क्षेत्र की आबादी बढ़ी। लेकिन देश की आजादी के बाद फ्लाई ओवर नही बन सकता है।

नतीजतनदूसरे देश व प्रदेश से आने वाले पर्यटकों को जाम की समस्या से जूझना पड़ता है। सांसदों के प्रयास से यहां कोई रोजगार का साधन उपलब्ध नहीं कराया गया है। इसका प्रतिफल है कि दूसरे प्रदेशों में रोजगार खोजने के लिए युवा पलायन करते है। यहां विकास की कोई बड़ी लकीर नहीं खींचा गया है।

कब-किसके सिर सजा ताज?

गया संसदीय सीट से सबसे पहले सांसद ब्रजेश्वर प्रसाद 1957 से 1962 तक रहे। जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के थे। इसी तरह 1967 में रामघनी दास रहे। पहली बार भारतीय जनसंघ -जनता पार्टी ने गठन के बाद 1971 में ईश्वर चौधरी को उम्मीदवार बनाया। उन्होंने जीत दर्ज की। जो 1977 तक रहे।

इसके बाद गया सीट पर परिवर्तन की लहर देखी गई। पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आई के रामस्वरूप राम ने 1980 में प्रतिनिधित्व किया। जो 1984 तक रहे। जनता दल गठन के बाद एक बाद फिर 1989 में ईश्वर चौधरी, 1991 में राजेश कुमार सांसद रहे।

1996 में पहली महिला भगवती देवी सांसद रही। 1998 में भाजपा के कृष्ण कुमार चौधरी, 1999 में रामजी मांझी, राजद के 2004 में राजेश कुमार मांझी, 2009 से 2014 तक भाजपा के हरि मांझी और 2019 से जदयू के विजय मांझी गया संसदीय सीट का प्रतिनिधि किए हैं।

2024 के उम्मीदवार पर टिकी निगाहें

कुछ ही दिनों में लोकसभा आम निर्वाचन की घोषणा होगी। गया संसदीय सीट पर चुनाव प्रथम चरण में होने की उम्मीद है। ऐसे में एनडीए, महागठबंधन अपनी-अपनी उम्मीदवार का नाम तय करने में हर स्तर पर पड़ताल शुरु की है। दोनों गठबंधन चुनाव मैदान में उतारेगी, यह अभी संशय के घेरे में है।

विश्वस्त सूत्र बताते है कि वर्तमान सांसद और पूर्व में गया संसदीय सीट पर चुनाव लड़ चुके उम्मीदवार को कोई गठबंधन अपना उम्मीदवार नहीं बनाएगी। यानि एनडीए और महागठबंधन से नये उम्मीदवार आने की उम्मीद है। यह उम्मीदवार अनुसूचित जाति के किसी भी समाज से हो सकता है।

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