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    रेणु जी की रचनाओं में लोक जीवन की व्‍यापक अभिव्‍यक्ति, यथार्थ के साथ धड़कता है ग्रामीण जीवन

    By Vyas ChandraEdited By:
    Updated: Sat, 06 Mar 2021 03:38 PM (IST)

    अमर कथाशिल्‍पी फणीश्‍वरनाथ रेणु की जन्‍मशताब्‍दी पर औरंगाबाद के आइएमए भवन में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें वक्‍ताओं ने कहा कि रेणु जी की रचनाओं में ग्रामीण जीवन की धड़कनें हैं। इसमें सामाजिक जीवन का यथार्थ है।

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    रेणु जन्‍मशताब्‍दी समारोह में उपस्थित साहित्‍यप्रेमी। जागरण

    जागरण संवाददाता, औरंगाबाद। फणीश्‍वर नाथ रेणु की जन्मशताब्दी के आलोक में समकालीन जवाबदेही परिवार, बतकही एवं हिंदी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय शनिवार को आइएमए हाॅल में जयंती समारोह का आयोजन किया गया। इसमें 'इस  यांत्रिक युग में भी रेणु की प्रासंगिकता'  विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता नगर के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. रामाशीष सिंह ने की। संचालन किया प्रो. संजीव रंजन ने।

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    रेणु जी की हर रचना है अमर

    जय प्रकाश सिंह ने कहा कि रेणु की रचनाओं में रूप, रंग, रस, गंध, ध्वनि एवं स्वाद के सुंदर संयोजन का साक्षात्कार होता है। डॉ. सुरेंद्र प्रसाद मिश्र ने उनकी कहानी 'तीसरी कसम 'पंच लाइट, लाल पान की बेगम एवं आंचलिक उपन्यास 'मैला आंचल' का संदर्भ दिया। कहा कि आंचलिकता की मिठास से लबरेज ग्राम्य -बोध संबंधी तेवर रेणु को गाते हुए गद्य के लेखक के रूप में प्रतिस्थापित करते हैं। अपने संबोधन में प्रो. रामाधार सिंह ने कहा कि फणीश्वर नाथ रेणु ने परिवेश की खूबियों एवं खामियों को अत्यंत खरेपन, सहजता एवं सरलता से रेखांकित किया है। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं।

    रेणु जी ने आंचलिकता को दी साहित्‍य में जगह

    बतौर मुख्य वक्ता प्रो. सिद्धेश्‍वर प्रसाद सिंह ने कहा कि रेणु के साहित्य में लोक जीवन की जो व्यापक अभिव्यक्ति मिली है, उसमें केवल सामाजिक यथार्थ की ही नहीं, ग्रामीण जीवन की धड़कनें भी बोलती हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ रामाशीष सिंह ने रेणु को एक ऐसे कथाकार के रूप में चित्रित किया, जहां 'धूल धानी धूसर' में जीवन की धड़कनें गहरे तक पैवस्त हैं। उनके स्पंदन को सहज ही महसूस किया जा सकता है। साहित्यकार डा. हेरंब मिश्र, महाराणा प्रताप सेवा संस्थान के पूर्व सचिव अनिल कुमार सिंह, केडी पांडेय, शिक्षक उज्जवल रंजन, कवि धनंजय जयपुरी एवं लव कुश प्रसाद सिंह ने भी संगोष्ठी को संबोधित किया। इस मौके पर पुरुषोत्तम पाठक, चक्रपाणि जी, शिक्षक चंदन कुमार, शिक्षक श्रवण कुमार सिंह, बैजनाथ सिंह सहित ने अपनी सक्रिय सहभागिता निभाई। अंत में आगत विद्वान अतिथियों के प्रति कवि धनंजय जयपुरी ने आभार व्यक्त किए।