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    सुनिए स्वास्थ्य मंत्री जी! बिहार के इस सरकारी अस्पताल में छेनी-हथौड़ी से होता है पोस्टमॉर्टम, एक्सपर्ट डॉक्टरों की भी कमी

    बिहार में सरकारी अस्पतालों में पोस्टमॉर्टम को लेकर बीते लंबे समय से सवाल उठ रहे हैं। कई अस्पतालों की जांच-पड़ताल में सामने आया है कि पोस्टमॉर्टम के लिए पर्याप्त उपकरण नहीं हैं। साथ ही कई सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भी काफी कमी है। इसी कड़ी में दैनिक जागरण की टीम गया के मेडिकल कॉलेज पहुंची। यहां भी हालात बेहद खराब हैं।

    By Vishwanath prasadEdited By: Rajat MouryaUpdated: Mon, 09 Oct 2023 03:08 PM (IST)
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    सरकारी अस्पताल में छेनी-हथौड़ी से होता है पोस्टमॉर्टम, एक्सपर्ट डॉक्टरों की भी कमी

    जागरण संवाददाता, गया। Bihar Government Hospital Postmortem जिले में किसी की हत्या होने, आत्महत्या करने, दुर्घटना में मौत होने या पानी में डूबकर मरने पर पुलिस द्वारा पोस्टमॉर्टम कराया जाता है। इसकी व्यवस्था अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के फोरेंसिक विभाग में है। लेकिन हैरानी की बात है कि यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की काफी कमी है।

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    शव की सफाई करने एवं चीर-फाड़ करने वाला एक भी सरकारी कर्मी नहीं है। किसी तरह निजी कर्मी से काम चलाया जा रहा है। शव के पोस्टमॉर्टम करने के दौरान बोनकटर, सिजर, कैंची आदि की जरूरत पड़ती है। यह सभी उपकरण काफी पुराने हो चुके हैं। इनमें से ज्यादातर उपकरण काम भी नहीं करते हैं।

    ऐसे में मजबूरन यहां के कर्मी बोनकटर की जगह छेनी-हथौड़ी का प्रयोग करते हैं। पत्थर तोड़ने में उपयोग होने वाले छेनी-हथौड़ी से शव का पोस्टमॉर्टम किया जाता है।

    शीतगृह में सुरक्षित नहीं रहता शव

    अज्ञात व्यक्ति का शव पोस्टमॉर्टम कर पहचान के लिए शीतगृह (Cold Storage) में 72 घंटा के लिए रखा जाता है। ताकि शव सुरक्षित रहे। लेकिन यहां का शीतगृह भी खराब है। आपको जानकर हैरानी होगी की कर्मचारी स्वजनों के संतोष के लिए शव को शीतगृह में रख देते हैं। लेकिन हकीकत में वह सुरक्षित नहीं रहता।

    फोरेंसिक विभाग के कर्मचारी बताते हैं कि शीतगृह में एक बार चार शव रखे जाते हैं। अगर एक-दो शव और आ गए तो शीतगृह के बाहर ही रखना पड़ते हैं। वहां इससे ज्यादा जगह नहीं है।

    सात एक्सपर्ट डॉक्टरों की जरूरत, लेकिन...

    फोरेंसिक मेडिसिन विभाग में शव का पोस्टमॉर्टम और एमबीबीएस छात्र की पढ़ाई होती है। दोनों कार्य को बेहतर तरीके से करने लिए सात विशेषज्ञ डॉक्टरों की जरूरत है। लेकिन यहां पर विभागाध्यक्ष सहित मात्र दो ही डाक्टर तैनात हैं।

    पोस्टमॉर्टम में बाधा उत्पन्न नहीं हो इसके लिए दूसरे विभाग से दो डॉक्टरों को स्थानांतरित कर लाया गया है। जिससे किसी तरह पोस्टमॉर्टम के कार्य किए जा रहे हैं। लेकिन मौत का कारण पता लगाने में दूसरे विभाग के डॉक्टरों को काफी परेशानी होती है। उन्हें विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह लेने पड़ती है।

    क्या बोले विभागाध्यक्ष डॉ. राजीव रंजन?

    फोरेंसिक मेडिसिन विभाग में विशेषज्ञ डॉक्टर और पोस्टमॉर्टम अटेंडेंड सहित अन्य कर्मियों की काफी कमी है। यहां प्रतिदिन करीब पांच-छह शव पोस्टमॉर्टम के लिए जाते हैं। एमबीबीएस छात्रों की पढ़ाई भी होती है। दो विशेषज्ञ और दो दूसरे विभाग के स्थानांतरित डॉक्टरों से किसी तरह काम चलाया जा रहा है। पोस्टमॉर्टम करने वाले यंत्रों की भी काफी कमी है। जो है भी वो काफी पुराने हैं। जिससे पोस्टमॉर्टम करने में काफी परेशानी होती है। - डॉ. राजीव रंजन, विभागाध्यक्ष

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