महाबोधि मंदिर में वर्षावास के बाद हुआ कठिन चीवरदान, विदेशी बौद्ध भिक्षुओं ने ऐसे देखा आयोजन
बोधगया स्थित महाबाेधि मंदिर में कठिन चीवरदान संपन्न किया गया। इसमें विदेशी बौद्ध श्रद्धालुआें ने वर्चुअल माध्यम से शिरकत की। हर वर्ष वर्षावास के बाद इसका आयोजन किया जाता है। इसका बौद्ध धर्म में काफी अहम स्थान माना जाता है।

जेएनएन, गया। बोधगया (Bodhgaya) स्थित विश्व धरोहर महाबोधि मंदिर (Mahabodhi Temple) में वर्षावास के बाद सोमवार को कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन किया गया। लॉकडाउन के कारण विदेशियों के आने पर रोक लगी है। इसलिए विदेशी धर्मावलंबियों की उपस्थिति नहीं रही। ऐसे में थाईलैंड के लोगों की मदद से अॉनलाइन इस समारोह का आयोजन किया गया।
बीटीएमसी के केयर टेकर भिक्षु दीनंदक ने बताया कि इस समारोह के लिए थाईलैंड के बौद्ध सदस्यों ने दान दिया था। इसके बाद बोधगया स्थित विभिन्न विदेशी मोनेस्ट्री के लगभग एक सौ भिक्षुओं को आमंत्रित कर यहां परंपरा का अनुसरण करते हुए बोधिवृक्ष की छांव में विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया। उसके बाद सभी को एक निजी होटल में संघ दान यानी भोजन दान दिया गया। बता दें कि लॉकडाउन के कारण इस वर्ष चीवरदान समारोह भी फीका रहा।
वर्षावास में एक ही जगह रहकर ध्यान और पूजा-अर्चना करते हैं बौद्ध भिक्षु
मालूम हो कि वर्षावास का बौद्ध भिक्षुओं में बहुत अहम स्थान है। चार महीने का वर्षावास काल काफी महत्व रखता है। वर्षावास में बौद्ध भिक्षु एक स्थान पर रहकर ही ध्यान और पूजा अर्चना करते हैं। यह बौद्ध कालीन परंपरा है । इस बार विभिन्न अधिक मास होने के होने के कारण वर्षा वास काल से तिथि भी बदल गई और कोरोना के कारण सभी मोनेस्ट्री में कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन नही हो सका है। उन्होंने कहा कि बताया कि भले ही इस समारोह में दानदाता यहां उपस्थित नहीं हुए हो लेकिन उन्हें वर्चुअल माध्यम से कार्यक्रम को दिखाया गया है। कहा जाता है कि वर्षावास भगवान बुद्ध ने भी किया था। इसका उद्देश्य यह है कि वर्षाकाल में जन्म लेने वाले कीड़े-मकोड़े किसी भिक्षु के पांव के नीचे नहीं आ जाएं। वर्षावास समाप्त होने के बाद चीवर दान किया जाता है। इसे ही कठिन चीवरदान कहा जाता है।विश्वशांति के लिए सामूहिक प्रार्थना भी की गई।
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