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    बिहार का मखाना तालाब से टेबल तक, वैज्ञानिक प्रबंधन से आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं किसान

    By Arun Kumar Pathak Edited By: Dharmendra Singh
    Updated: Thu, 25 Dec 2025 05:42 PM (IST)

    दरभंगा जिले में मखाना की खेती किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत कर सकती है। मखाने की बढ़ती मांग को देखते हुए वैज्ञानिक प्रबंधन जरूरी है। बिहार मखाना का स ...और पढ़ें

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    जाले में मखाना के खेत में लहलहाता मखाना। जागरण

    संवाद सहयोगी, जाले (दरभंगा)। मखाना की खेती कर किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं। मखाने की बढ़ती मांग को देखते हुए यह इसका वैज्ञानिक रूप से प्रबंधन जरूरी है। भारत ही नहीं विश्व में मखाना का सबसे बड़ा उत्पादक बिहार है।

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    यह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों की मांग को पूरा कर रहा है। वर्ष 2025 में कई राज्यों को मिलाकर मखाना की खेती लगभग 13,000 हेक्टेयर से बढ़कर 35,000 हेक्टेयर में फैल गई है।

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    देश ने हाल के वर्षों में लगभग 12,000 मीट्रिक टन मखाना निर्यात

    बिहार मखाना का प्रमुख उत्पादक होने के नाते प्रसंस्कृत मखाना के कुल उत्पाद का लगभग 80 प्रतिशत उत्पादन करता है, जो अकेले दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया और कटिहार जिलों से आता है। देश ने हाल के वर्षों में लगभग 12,000 मीट्रिक टन मखाना निर्यात किया है।

    कृषि विज्ञान केंद्र जाले के विज्ञानी डा. प्रदीप कुमार विश्वकर्मा ने बताया कि मखाना का वैज्ञानिक प्रबंधन नर्सरी अवस्था से ही शुरू करना होता है। इस अवस्था में तालाब और और नर्सरी वाले खेत दोनों में खर पतवार जैसे पानी साग, पैनिक बरसींम, सेमर, हाइड्रिला, जलीय मोथा और बमभूली आदि घास बहुत तेजी से उगना प्रारंभ कर देती है।

    जिससे मखाने के पौधे उगने के पश्चात विकास नहीं कर पाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए नर्सरी के लिए बीज बोआई से पहले 50 किलोग्राम करंज की खली, 50 किलोग्राम अरंडी की खली तथा 30 किलोग्राम चूना प्रति 500 वर्गमीटर में खेत की तैयारी करते समय डाल देना चाहिए ताकि नर्सरी में यह खरपतवार ना उगे।

    इसके अतिरिक्त पाराक्वाट नामक रसायन का नौ सौ ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से तालाब में छिड़काव करके खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। खरपतवार के अतिरिक्त कीट एवं बीमारी भी लगती है जिसमें माहूं या भुनगा प्रमुख कीट है जिसको नीम के तेल की तीन मिली लीटर मात्रा एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर देना चाहिए।

    कभी कभी मखाना के पौधों में फफूंदीजनक झुलसा रोग भी लग जाता है उसकी रोकथाम के लिए डाईथेन एम 45 की 0.3 प्रतिशत का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए। अगर नर्सरी में पौधा स्वस्थ रहेगा तभी किसान को अच्छी उपज मिल सकती है। इसीलिए नर्सरी की हर अवस्था में किसानों को निगरानी रखना बहुत आवश्यक है।