Bihar Police: अपराधियों से पुलिस कैसे ले लोहा, मौके पर कारतूस दे रहा धोखा; ट्रेनिंग और हथियार मेंटेनेंस पर उठे सवाल
Bihar News बिहार पुलिस इन दिनों एक बड़ी मुश्किल से जूझ रही है। पुलिस अपराधियों से जब लोहा लेने जाती है तो मौके पर कारतूस धोखा दे रहा है। जान की बाजी लगाने वाले पुलिस कर्मचारी हथियारों के मामले में अपराधियों से पिछड़ते जा रहे हैं। ऐसे कई घटनाएं सामने आई हैं जब पुलिस कर्मचारी बदमाशों पर फायर करते हैं। लेकिन कारतूस धोखा दे देता है।
जागरण संवाददाता, दरभंगा। पुलिस को हाइटेक किया जा रहा है। अत्याधुनिक हथियार मुहैया कराए जा रहे हैं। एक से बढ़कर एक उपकरण की खरीद भी हो रही है। ताकि बदमाशों का समूल सफाया किया जा सके। इस संकल्प के साथ पुलिस पदाधिकारी व पुलिस कर्मी भी बदमाशों से लोहा लेने में पीछे नहीं हट रहे हैं। जान की बाजी लगाकर सामना करते हैं। इसके बावजूद, बदमाश भारी पड़ रहे हैं।
दरअसल, पुलिस वालों को कारतूस ही धोखा दे रहा है। समस्तीपुर जिले में 14 अगस्त 2023 की रात्रि में मवेशी तस्करों को पकड़ने के दौरान हुई मुठभेड़ में मोहनपुर ओपी प्रभारी नंद किशोर यादव बलिदान हो गए। मवेशी तस्करों ने उनके सिर और आंख के बीच में गोली मार दी। लेकिन ओपी प्रभारी के पिस्टल से गोली नहीं चल पाई।
बंदूकें नहीं उगल रही गोलियां
अब इससे पुलिस महकमा सबक लेता उससे पहले शनिवार की रात मधुबनी जिले के साहरघाट बाजार के नेताजी चौक स्थित दवा व कपड़ा व्यवसायी राजकुमार गामी के घर हुई डकैती दौरान पुलिस पुलिस की बंदूकें गोलियां उगलने में नाकामयाब रहीं। हालांकि, जवान ट्रिगर तो दबा रहे थे, मगर गोलियां सारी मिसफायर हो जा रही थीं।
ऐसी स्थिति में हालात पुलिस के लिए फजीहत कराने और मजाक उड़ाने वाले थे। पुलिसिया व्यवस्था भी कटघरे में आ गई। बताया जाता है कि हथियार चलाने की ट्रेनिंग, बंदूकों के मेंटेनेंस और एक्सपायर्ड कारतूस के प्रति गंभीर नहीं होने के कारण ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, दरभंगा में 2021 के बाद से अब तक फायरिंग प्रैक्टिस नहीं कराई गई है। जानकार बताते हैं कि 2021 में मुजफ्फरपुर के सीआरपीएफ कैंप में सिपाही से लेकर पुलिस पदाधिकारियों को बारी-बारी से फायरिंग कराई गई थी।
फायरिंग कराने से पुराने कारतूस की होती खपत व जांच
रिटायर्ड डीआइजी बहेड़ी निवासी अरविंद ठाकुर ने बताया कि प्रति वर्ष जिला पुलिस की ओर से फायरिंग रेंज में सिपाही से लेकर वरीय पदाधिकारियों को प्रैक्टिस कराई जाती है। इसमें जिनके पास जो हथियार होता है उससे 20 राउंड फायरिंग कराई जाती है। यह वहीं कारतूस होता है जो हथियार के साथ उपलब्ध कराया जाता है। इससे पुराने कारतूस की खपत ही नहीं होती बल्कि, चेक भी हो जाता है।
उन्होंने बताया कि मिस फायर होने की स्थिति में उस बैच के कारतूस को हटा दिया जाता है। फायरिंग रेंज की तिथि का निर्धारण संबंधित जिले के एसपी तय करते हैं। इससे हथियार और कारतूस के साथ-साथ निशाने को चेक किया जाता है। उन्होंने कहा कि पुराना कारतूस मिस फायर होता है। इसके अतिरिक्त पुलिस लाइन के मेजर की जिम्मेदारी होती है कि वह थानास्तर पर आर्मेचर हवलदार व जमादार को भेजकर हथियार को चेक कराएं।
अब सवाल उठता है कि सारा काम पुलिस अधिनियम के साथ होता है अथवा की नहीं। इसे लेकर समय-समय पर एसपी और आइजी इसका निरीक्षण करते हैं। इसमें खराब हथियार, एक्सपायर्ड कारतूस, प्रैक्टिस आदि को चेक किया जाता है।
पुलिस को चुस्त-दुरूस्त रखने के लिए कई प्रावधान
हथियार चलाने के प्रशिक्षण बाद ही पुलिस पदाधिकारियों व जवान को जिला पुलिस लाइन से सेफ्टी और विधि व्यवस्था को लेकर हथियार मुहैया कराया जाता है। पुलिस पदाधिकारियों को पिस्टल और रिवॉल्वर दिया जाता है, उपलब्धता के आधार पर यह मुहैया कराया जाता है। हालांकि, कुछ को च्वाइस के आधार पर भी हथियार दिया जाता है। पिस्टल अथवा रिवॉल्वर के साथ कारतूस क्षेत्र के हिसाब से दिया जाता है।
शांत जगह में 40 और उग्रवाद अथवा नक्सली क्षेत्र में अधिक कारतूस दिया जाता है। जिले में योगदान के साथ पुलिस लाइन में हथियार आवंटन के लिए आवेदन करते हैं। तबादला होने पर अपने जिला पुलिस लाइन में हथियार जमा करना होता है, जिसका एनओसी मिलता है। इसी आधार पर योगदान देने वाले जिले में हथियार मिलता है।
हथियार उपलब्ध कराने से पूर्व ट्रायल किया जाता है। औसतन छह माह पर पुलिस लाइन से कोट हवलदार की अलग-अलग टीम थाना पर जाकर हथियार को चेक करते हैं। हथियार में कोई खराबी अथवा तकनीकी समस्या आने पर तत्काल संबंधितों को पुलिस लाइन के आर्मेचर में जाकर जांच कराने का प्रावधान है। इसमें हथियार के साथ छेड़छाड़ पाए जाने पर जुर्माना का भी प्रावधान भी है। अगर छेड़छाड़ नहीं पाया गया तो उसे मरम्मत कर अथवा दूसरा हथियार मुहैया करा दिया जाता है।
कारतूस के पैकेट पर अंकित रहती है एक्सपायरी डेट
कारतूस के पैकेट पर एक्सपायरी तिथि अंकित रहती है। जबकि, कारतूस पर नंबर होता है। जिसे रजिस्टर पर अंकित किया जाता है। अमेरिकन कंपनी का कारतूस दस वर्षों के लिए वैध रहता है। जबकि, इंडियन कंपनी की एक्सपायरी डेट अलग-अलग होती है। किसी में पांच तो किसी में सात और दस वर्ष भी होती है। कारतूस को नमी और उच्च तापमान से बचाना होता है।
दोनों ही स्थिति में कारतूस के खराब होने की बात कही जाती है। इसलिए इसे ड्राक रूम में एयर टाइट स्टोरेज कंटेनर में रखा जाता है। इसकी अनदेखी करने से कारतूस की स्पीड कम हो सकती है, मिस फायर अधिक होती है। दरअसल, नमी और अधिक तापमान रहने के कारण गन पाउडर में रिएक्शन होता है, जिससे उसकी क्षमता कम अथवा समाप्त हो जाती है।
कई बार मिल चुका है धोखा
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगरन्नाथ मिश्र के निधन के सम्मान में जब 21 अगस्त 2019 को उनके पैतृक गांव बलुआ में जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया तो एक भी बंदूक से गोली नहीं चल सकी। सभी बंदूकें धोखा दे गईं। फरवरी 2020 में बलिदान हुए सीआरपीएफ जवान रमेश रंजन का जब अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव भोजपुर जिले के जगदीशपुर में हुआ तो श्रद्धांजलि देने के दौरान पुलिस की बंदूकें गोलियां उगलने में नाकामयाब रहीं।
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