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    प्रयोग करें और विज्ञान का आनंद लें : डॉ.वियोगी

    By Edited By:
    Updated: Mon, 31 Aug 2015 12:14 AM (IST)

    दरभंगा। प्रयोग के बिना विज्ञान प्रमाणिक नहीं होता, विज्ञान का मतलब होता है प्रयोग। विज्ञान का कोई भी ...और पढ़ें

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    दरभंगा। प्रयोग के बिना विज्ञान प्रमाणिक नहीं होता, विज्ञान का मतलब होता है प्रयोग। विज्ञान का कोई भी सिद्धंत क्यों न हो, जब तक उसे प्रयोग की कसौटी पर जांचा नहीं जाता उस सिद्धांत को मान्यता नहीं मिलती। उक्त बातें प्रसिद्ध वैज्ञानिक व मधुबनी निवासी डॉ. योगेन्द्र पाठक वियोगी ने कही। एमएलएसएम कॉलेज में रविवार को भौतिकी विभाग द्वारा साइंस प्रैक्टिकल : सम न्यू डायरेक्शन विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार को डॉ. वियोगी बतौर संसाधन पुरूष संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रयोग से ही भौतिकी के सारे नियम बने हैं। छात्रों को सावधान करते हुए कहा कि हिग्स के बारे में चालीस वर्षों से खोज चल रही है।

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    इसे गॉड पार्टिकल्स भी भ्रमवश कह दिया जाता है। पर इसे भूल से भी ऐसा नहीं कहें। अगर गॉड हैं तो वह इससे काफी उपर हैं। उन्होंने कहा कि बिना प्रयोग के सारे विज्ञान के सिद्धांत भुला दिए जाएंगे। छात्रों को कहा कि जो आंकड़े मिलते हैं उसको यथावत लिखें। किसी प्रकार का मैनिपुलेशन नहीं करें। प्रायोगिक किताबों में अव्यवाहारिक बातें भी प्रयोगिक होती है उससे सभी को बचना चाहिए। विज्ञान के किए गए खोज और उससे बने सिद्धांतों की चर्चा करते हुए कई उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रान का प्रयोग जेज थामसन ने किया, फिर असका प्रयोग लार्ड रदर र्फोंड ने किया और ऑटोमिक न्यूक्लियर का अविष्कार हो गया। उन्होंने बताया कि डिस्कवरी दो प्रकार की होती है। पहला जिसके बारे हमें कुछ पता होता है। दूसरा एक्सडेंटल डिस्कवरी। उन्होंने विज्ञान पर चर्चा करते हुए कहा कि विज्ञान में प्रैक्टिकल के दो रूप प्रचलित हैं। पहला पाठक्रम के अनुसार व दूसरा आनवाले नए आइडिया मॉडल तैयार करना, जांचना, निरतंर सुधार, नया मॉडल आदि। उन्होंने छात्रों को कहा कि आईएसईएफ में पूर्वोंतर क्षेत्र के छात्र प्रतियोगिता में भाग ले सकते हैं। उन्होंने प्रयोगशाला को सरलीकरण करने की बात कहते हुए सभी छात्रों को कहा कि प्रयोग करो और विज्ञान का आनंद लो। प्रोजेक्टर के माध्यम से छोटे-छोटे घरेलू खिलौने पर कई शोध को प्रमाणिक कर बताया। पांच दस रुपये में जो काम हो सकता है उस पर हजारों रुपये खर्च करने से मना किया। उन्होंने पेंडुलम का प्रयोग सरलीकरण कर बताया। वहीं ओम के नियमों का सत्यापन कराया। कहा- फराडे के 150 वर्षों का प्रयोग अभी भी चल रहा है। जबकि, इसका सरल विकल्प है। शिक्षकों से कहा कि अग्रेन साहब के जमाने का नकल आज भी चल रहा है। क्यों सरल प्रयोग पर ध्यान नहीं दिया। मौके पर लनामिविवि के इंस्पेक्टर ऑफ कॉलेज विज्ञान डॉ. अजीत कुमार चौधरी ने कहा कि बहुत दिनों के बाद ऐसा लगता है कि फिर से विश्वविद्यालय में एकेडमिक कार्यक्रमों का पुनर्जागरण हुआ है। छात्रों से अपील करते हुए कहा कि जो संसाधन है, उसे उपयोग- प्रयोग करें। वहीं प्रसिद्ध वैज्ञनिक व रसायन विभागाध्यक्ष डॉ. प्रेम मोहन मिश्रा ने विज्ञान की शिक्षा में प्रयोग की कमी पर ¨चता जताई। प्रधानाचार्य डॉ. डीसी चौधरी की अध्यक्षता व डॉ. शौकत अंसारी के संचालन में आयोजित सेमिनार में अतिथियों का स्वागत डॉ. लक्ष्मीकांत झा ने किया। स्वागत गान ममता ठाकुर व कृष्णानंद झा ने किया।