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    राजपुर विधानसभा सीट: भाजपा के साथ जुड़कर नेता बने विश्वनाथ राम, कांग्रेस ने बनाया विधायक

    Updated: Wed, 08 Oct 2025 02:56 PM (IST)

    बक्सर जिले के राजपुर विधानसभा सीट का इतिहास दिलचस्प है। विश्वनाथ राम जो पहले भाजपा में थे 2020 में कांग्रेस में शामिल हुए और विधायक बने। उनके पिता भी भाजपा से विधायक रहे थे। 2015 में भाजपा-जदयू गठबंधन टूटने पर विश्वनाथ को टिकट मिला पर वे हार गए। 2020 में राजपुर सीट जदयू को मिली और कांग्रेस ने विश्वनाथ को उम्मीदवार बनाया जिससे वे पहली बार विधायक बने।

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    भाजपा के साथ जुड़कर नेता बने विश्वनाथ राम, कांग्रेस ने बनाया विधायक (फाइल फोटो)

    शुभ नारायण पाठक, बक्सर। जिले की राजपुर (अनुसूचित जाति सुरक्षित) विधानसभा सीट की राजनीतिक कहानी बेहद रोचक रही है। परिसीमन के बाद यह सीट 1977 में अस्तित्व में आई। मौजूदा विधायक विश्वनाथ राम शुरुआती दिनों से भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता रहे, जिनका पारिवारिक रिश्ता भी भाजपा और संघ से जुड़ा रहा है।

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    बदले राजनीतिक समीकरणों में पांच अक्टूबर 2020 को उन्होंने भाजपा छोड़कर अचानक कांग्रेस का दामन थाम लिया। तीन दिन बाद, आठ अक्टूबर को कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया और वे पहली बार विधायक बन गए।

    उनके पिता राम नारायण राम 1980 से 1995 तक लगातार भाजपा के उम्मीदवार रहे। 1985 और 1990 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की, जब बिहार में पार्टी की स्थिति बेहद कमजोर थी। यह बक्सर जिले की मौजूदा सीमा में वह पहली सीट थी, जहां भाजपा को जीत मिली थी।

    वर्ष 2000 में जब सीट एनडीए में समता पार्टी को दी गई, तो वे निर्दलीय चुनाव लड़े लेकिन पांचवें स्थान पर रहे। विश्वनाथ राम तब भी भाजपा से जुड़े रहे, पर एनडीए की सीट-बंटवारे की व्यवस्था में राजपुर लगातार समता पार्टी और बाद में जदयू के हिस्से में जाती रही।

    पार्टी को थी उम्मीदवार की तलाश, नेताजी को चाहिए था टिकट

    2015 में भाजपा-जदयू गठबंधन टूटने पर पहली बार विश्वनाथ को भाजपा का टिकट मिला, हालांकि वे जदयू (राजद समर्थित) उम्मीदवार संतोष निराला से हार गए।

    इसके बावजूद वे इस सीट के लिए मजबूत दावेदार के रूप में स्थापित हो गए। 2020 में जब भाजपा और जदयू फिर साथ आए, तो राजपुर सीट एनडीए में जदयू को मिल गई।

    वहीं, राजद ने कमजोर मानी जाने वाली सीटें सहयोगियों को सौंप दीं और राजपुर कांग्रेस को मिली। कांग्रेस के पास यहां कोई प्रभावशाली चेहरा नहीं था। ऐसे में दोनों की जरूरतें मेल खा गईं, कांग्रेस को उम्मीदवार मिला और विश्वनाथ राम को मंच।

    परिणामस्वरूप वे पहली बार विधायक बन गए। कांग्रेस 1980 के बाद दूसरी बार यहां जीती। राजद यहां कभी नहीं जीत सका है।

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